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This Article is From Aug 20, 2015

भिवंडी में थम गया पावरलूम का शोर, कारोबारी 15 दिन की हड़ताल पर

भिवंडी में थम गया पावरलूम का शोर, कारोबारी 15 दिन की हड़ताल पर
मुंबई: महाराष्ट्र के 'मैनचेस्टर' यानी भिवंडी में 69वें स्वतंत्रता दिवस के बाद से सन्नाटा पसरा है। इलाके में तकरीबन 12-14 लाख पावरलूमों का शोर थम गया है। कारोबारियों ने फिलहाल 15 दिनों की हड़ताल बुलाई है, लेकिन अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो हड़ताल बढ़ भी सकती है।

मुंबई से 50 किलोमीटर दूर बसा भिवंडी 1857 के दौर में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के कई बुनकरों की पनाह बना। दो बड़े नेशनल हाइवे-3 और 8 के दो राहे पर बसा भिवंडी आज भी दो राहे पर है, तरक्की जैसे इसे बस छूकर निकल गई हो। संकरे रास्ते, खराब सड़कें, सब कुछ बिखरा-बिखरा सा... इसी में दिन-रात शोर मचाते पावरलूम... लेकिन अब ये 16 अगस्त से बंद हैं।

भिवंडी में लगभग 12-15 लाख पावरलूम हैं, जिसमें 10 लाख से ज्यादा मज़दूर काम करते हैं। देश दुनिया को यहां से कपड़ा भेजा जाता है। 15 दिनों की बंद पर बात करते हुए भिवंडी पावरलूम एसोसिएशन के अध्यक्ष अब्दुल मन्नान सिद्दीकी ने कहा, "भिवंडी से पूरी दुनिया में कपड़े की सप्लाई की जाती है, लाखों मज़दूरों की दिहाड़ी पावरलूम से जुड़ी है इसलिए हम 8 महीने से चुप थे, लेकिन अब हम और नुकसान नहीं उठा सकते, इसलिए फिलहाल हमने 15 दिनों तक कारखाना बंद रखने का फैसला किया है।"

वैसे पावरलूम बंद होने से मोहताज सिर्फ कारोबारी नहीं हैं। पावरलूम बंद करने का जब ऐलान हुआ, तो कमीशन पर कपड़ा बनाने और इन कारखानों में दिन-रात पसीना बहाने वाले मज़दूरों की रोटी यकायक बंद हो गई। एनडीटीवी से बात करते हुए एआर टेक्सटाइल में काम करने वाले मोहम्मद शहज़ाद ने कहा, "3 दिनों से हम खाली बैठे हुए हैं। गांव भी पैसे नहीं भेज पाए हैं, अगर कारखाना नहीं खुलेगा तो हमें मजबूरन दूसरे बड़े शहरों में जाना होगा।"

मोहम्मद मुकादम का भी कुछ ऐसा ही कहना था। उन्होंने कहा " रोज़ हम 40-50 मीटर कपड़ा बनाते हैं, जिससे 300-400 की कमाई हो जाती है, लेकिन फिलहाल हम मजबूर हैं।"

देश में लगभग 22 लाख पावरलूम हैं, जिनमें से तकरीबन आधे भिवंडी में हैं। खेती के बाद वस्त्रोद्योग से लगभग 3.5 करोड़ लोगों की रोटी चलती है। लेकिन 80 के दशक से मुंबई जैसे शहरों में कपड़ा मिलें बंद होने लगीं, जिसका असर करघे को चला रहे और चलाने वाले हाथों पर पड़ा। हालात ये हैं कि भारत दुनिया में रेडिमेड कपड़ों के निर्यात में अपनी नंबर 2 हैसियत गंवा चुका है और इस पर बांग्लादेश ने कब्जा कर लिया है।

कारोबारियों का कहना है कि बिजली की दर में बढ़ोतरी और मंदी से पावरलूम उद्योग की स्थिति नाजुक हो गई है। कारोबारियों की एक और दिक्कत है कच्चे माल से लेकर मजदूरी और ढुलाई तक में बढ़ती लागत। साथ ही सूती धागे के दामों की अनिश्चितता। ऐसे में गोदामों में लाखों टन माल पड़ा है। व्यापारी कहते हैं कि और नुकसान उठाना उनके बस में नहीं है।

भिवंडी के पावरलूम फिलहाल 15 दिनों तक बंद रहेंगे, मांगें नहीं मानी गईं तो शायद और। लेकिन इन सबके बीच सबसे ज्यादा पिसेंगे मजदूर, जो 'मेड इन इंडिया' का हिस्सा हैं, जो 'शाइनिंग इंडिया' बना सकते हैं, लेकिन जिनके चूल्हे ठंडे पड़े रहेंगे।

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