भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे की सरेंडर करने के लिए और समय देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है. दोनों ने याचिका दाखिल करके कोरोना वायरस के चलते सरेंडर के लिए और वक्त मांगा था. दोनों की ओर से कहा गया कि दोनों एक्टिविस्ट 65 वर्ष से अधिक उम्र के हैं, दिल की बीमारी है. कोरोना वायरस के इस समय के दौरान जेल जाना "वस्तुतः मौत की सजा" है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध किया. उन्होंने कहा कि यह केवल समय खरीदने के लिए एक तंत्र है. दोनों पर गंभीर आरोप लगे हैं. जेल एक सुरक्षित स्थान है.
अदालत ने 16 मार्च को आरोपी गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर तीन हफ्ते में सरेंडर करने को कहा था. पीठ ने कहा था कि इसके बाद जमानत याचिका दाखिल कर सकते हैं आरोपी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत से इनकार कर दिया था लेकिन शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने तक उन्हें सुरक्षा प्रदान की थी.
एक जनवरी 2018 को पुणे जिले के कोरेगांव भीमा गांव में हिंसा के बाद नवलखा, तेलतुम्बडे और कई अन्य कार्यकर्ताओं को पुणे पुलिस ने उनके कथित माओवादी लिंक और कई अन्य आरोपों के लिए आरोपी बनाया था. पुणे पुलिस के अनुसार, 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गर परिषद के सम्मेलन में "भड़काऊ" भाषणों और "भड़काऊ" बयानों ने अगले दिन कोरेगांव भीमा में जातिगत हिंसा भड़का दी थी. पुलिस ने आरोप लगाया कि ये सम्मेलन माओवादियों द्वारा समर्थित था.
तेलतुंबडे और नवलखा ने उच्च न्यायालय में पिछले साल नवंबर में गिरफ्तारी से पहले जमानत की मांग की थी, जब पुणे की सत्र अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी. पिछले साल दिसंबर में उच्च न्यायालय ने उन्हें अपनी अग्रिम जमानत याचिका के लंबित निपटान से गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की थी. हालांकि पुणे पुलिस मामले की जांच कर रही थी, लेकिन केंद्र ने मामले की जांच को राष्ट्रीय जांच एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया था.
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