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This Article is From Sep 12, 2015

कोटा के कोचिंग सेंटरों की सफलता के पीछे चौंकाने वाली स्याह हकीकत

कोटा के कोचिंग सेंटरों की सफलता के पीछे चौंकाने वाली स्याह हकीकत
कोटा: हिमांशु अभी सिर्फ 16 साल का है और सुबह 6 बजे उसका दिन शुरू हो जाता है। कोचिंग से शुरू होकर उसका दिन स्कूल, दोपहर में सुधारात्मक पाठ और अंत में शाम को एक और कोचिंग राउंड के साथ रात करीब 8 बजे खत्म होता है।

हिमांशु मध्य प्रदेश के इंदौर शहर का मूल निवासी है और परिवार से दूर राजस्थान के कोटा शहर में एक प्राइवेट हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा है। यह उसके हाई स्कूल का अंतिम साल है और साथ ही साथ वह आईआईटी के कठिन एंट्रेंस एग्जाम की भी तैयारी कर रहा है। अब हिमांशु इस व्यस्त और थकाऊ रुटीन का आदी हो चुका है।

लेकिन बहुत से छात्र ऐसे भी हैं जो इतना तनाव नहीं झेल पाते। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले तीन महीनों में ही सात छात्रों ने मौत को गले लगा लिया है। इसी साल अगस्त महीने में हिमांशु से एक साल सीनियर योगेश जोहरे ने खुद को आग लगा ली और अपने हॉस्टल की बिल्डिंग से कूद गया। पुलिस का कहना है कि योगेश की आत्महत्या का कारण एग्जाम से संबंधित तनाव हो सकता है। इसी साल जुलाई में 20 वर्षीय अविनाश ने भी हॉस्टल के कमरे में खुद को फांसी लगा ली थी।

कोटा में छात्रों के बीच इस तरह की डरावनी कहानियां आम हैं। बता दें कि पिछले एक दशक में कोटा इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी करने वाले छात्रों की कोचिंग के लिए तेजी से उभरा है। राज्य की राजधानी जयपुर से करीब 200 किमी दूर बसे इस छोटे से शहर के अखबारों के पहले पन्ने पर छात्रों की आत्महत्या की खबरें अक्सर मिल जाती हैं।
लेकिन कोटा की सड़कों पर इस तरह की डरावनी कहानियां जैसे कहीं गुम हो जाती हैं। यहां तो हर तरफ चमकदार, रंग-बिरंगे और सफलता की कहानियां बयां करते होर्डिंग दिखाई देते हैं। हालांकि इस तरह से छात्रों की आत्महत्या की लगातार बढ़ती घटनाएं अब परेशान करने लगी हैं। यहां के प्राइवेट कोचिंग सेंटरों का कहना है कि उनके पास छात्रों के लिए काउंस्लर भी हैं और वे उनकी मदद के लिए 24 घंटे की हेल्पलाइन भी चलाते हैं।

कोटा के एक मशहूर कोचिंग सेंटर एलेन इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर नवीन माहेश्वरी कहते हैं, 'कई बार ऐसा होता है कि बच्चे खुद को अकेला और दबाव में महसूस करते हैं। माता-पिता हमेशा उनकी मदद नहीं कर पाते। कोई हेल्पलाइन होनी चाहिए, जिस पर छात्र फोन कर सकें। हम सरकार के साथ मिलकर ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं।'

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