अपने पिता मोटाराम और मां के साथ पाबुलाल।
जयपुर:
गरीबी के बीच मेहनत और कामयाबी की एक कहानी बाड़मेर में सामने आई है। यहां एक दिहाड़ी मजदूर का बेटा डॉक्टर बनने जा रहा है। पाबुलाल की एक कच्ची झोपड़ी है। पिता दिहाड़ी के मजदूर हैं, खेतों में काम करते हैं। पाबुलाल गांव की चौपाल में बैठकर लालटेन के सहारे पढ़ता रहा। उसने गांव से ही दसवीं पास की और उसकी लगन ने उसे एम्स तक पहुंचा दिया।
दूसरी बार की कोशिश से मिली सफलता
पाबुलाल ने बताया कि 'पहले साल में मैंने बहुत मेहनत की लेकिन परीक्षा के लास्ट टाइम में मेरे पैर में तकलीफ होने के कारण घर पर आना पड़ा। पढ़ाई रेगुलर नहीं हो पाई, फिर भी एआईपीएमटी में मेरी रैंक 13950 थी। फिर भी पापा ने मेहनत करके मुझे दोबारा भर्ती करवाया फिर दूसरे साल पूरी मेहनत की मैंने।'
हिंदी मीडियम के बादजूद मिली कामयाबी
यह बाड़मेर के एक छोटे से गांव चोखला की कहानी है। पिता ने बेटे के लिए पैसे जोड़े। दसवीं पास करने के बाद उसे कोचिंग के लिए कोटा भेजा। अपनी दूसरी कोशिश में पाबुलाल ने ओबीसी कैटेगरी में 116वां स्थान प्राप्त किया। अब वह दूसरों के लिए मिसाल है। पाबुलाल कहते हैं कि 'पहले लोग कहते थे कि एम्स (AIIMS) में हिंदी मीडियम से लड़के नहीं जा पाते ... बहुत मुश्किल होता है हिंदी मीडियम से सिलेक्शन। पहले एक-दो लड़के गए हैं हिंदी मीडियम से तो मैंने सोचा मैं भी जा सकता हूं। फिर मैंने पूरी मेहनत की।'
पिता ने पाई-पाई जोड़कर पढ़ाया
पाबुलाल के पिता मोटाराम ने कहा "मैंने कहा कि इतना खर्चा तो मैं नहीं कर सकता फिर भी मैंने कैसे न कैसे दो साल के पैसे जुटाए। थोड़ी बहुत खेती-मजदूरी लकड़ी का काम भी करता हूं।" मोटाराम ने लगभग 5 लाख रुपये खर्च कर दिए पाबुलाल की पढ़ाई पर। यह उनकी जिंदगी भर की कमाई है।
पढ़ाई के साथ पिता को मदद भी की
पढ़ाई के बीच पाबुलाल खेतों में जाकर पिता की मदद भी करता रहा। उसकी कामयाबी बताती है कि मेहनत ने उसे कामयाब बनाया है, बेशुमार सुविधाओं ने नहीं। दिल में लगन हो और कुछ करने की इच्छाशक्ति हो तो क्या नहीं हो सकता। बाड़मेर के चोखला गांव में एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे ने वह कर दिखाया कि वह एक छोटे झोपड़े में रहकर, मेहनत करके AIIMS का एग्जाम पास करके डॉक्टर बनने जा रहा है। उनके पिता ने जो सपना देखा था वह अब पूरा होगा।
दूसरी बार की कोशिश से मिली सफलता
पाबुलाल ने बताया कि 'पहले साल में मैंने बहुत मेहनत की लेकिन परीक्षा के लास्ट टाइम में मेरे पैर में तकलीफ होने के कारण घर पर आना पड़ा। पढ़ाई रेगुलर नहीं हो पाई, फिर भी एआईपीएमटी में मेरी रैंक 13950 थी। फिर भी पापा ने मेहनत करके मुझे दोबारा भर्ती करवाया फिर दूसरे साल पूरी मेहनत की मैंने।'
हिंदी मीडियम के बादजूद मिली कामयाबी
यह बाड़मेर के एक छोटे से गांव चोखला की कहानी है। पिता ने बेटे के लिए पैसे जोड़े। दसवीं पास करने के बाद उसे कोचिंग के लिए कोटा भेजा। अपनी दूसरी कोशिश में पाबुलाल ने ओबीसी कैटेगरी में 116वां स्थान प्राप्त किया। अब वह दूसरों के लिए मिसाल है। पाबुलाल कहते हैं कि 'पहले लोग कहते थे कि एम्स (AIIMS) में हिंदी मीडियम से लड़के नहीं जा पाते ... बहुत मुश्किल होता है हिंदी मीडियम से सिलेक्शन। पहले एक-दो लड़के गए हैं हिंदी मीडियम से तो मैंने सोचा मैं भी जा सकता हूं। फिर मैंने पूरी मेहनत की।'
पिता ने पाई-पाई जोड़कर पढ़ाया
पाबुलाल के पिता मोटाराम ने कहा "मैंने कहा कि इतना खर्चा तो मैं नहीं कर सकता फिर भी मैंने कैसे न कैसे दो साल के पैसे जुटाए। थोड़ी बहुत खेती-मजदूरी लकड़ी का काम भी करता हूं।" मोटाराम ने लगभग 5 लाख रुपये खर्च कर दिए पाबुलाल की पढ़ाई पर। यह उनकी जिंदगी भर की कमाई है।
पढ़ाई के साथ पिता को मदद भी की
पढ़ाई के बीच पाबुलाल खेतों में जाकर पिता की मदद भी करता रहा। उसकी कामयाबी बताती है कि मेहनत ने उसे कामयाब बनाया है, बेशुमार सुविधाओं ने नहीं। दिल में लगन हो और कुछ करने की इच्छाशक्ति हो तो क्या नहीं हो सकता। बाड़मेर के चोखला गांव में एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे ने वह कर दिखाया कि वह एक छोटे झोपड़े में रहकर, मेहनत करके AIIMS का एग्जाम पास करके डॉक्टर बनने जा रहा है। उनके पिता ने जो सपना देखा था वह अब पूरा होगा।
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