बाबरी मस्जिद विध्वंस केस (Babri Masjid Demolition Case) में 30 सितंबर यानी बुधवार को लखनऊ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने आखिरी फैसला सुना दिया है. इस केस में बीजेपी के वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और अन्य लोग मुख्य आरोपी थे, कोर्ट ने मामले सभी आरोपियों को बरी कर दिया है. 28 सालों तक खिंचे इस केस में एक के बाद एक कानूनी पेचीदगियां आई और इंसाफ में देरी होती रही. अब जब आखिरी फैसला आ गया है तो हम एक बार बाबरी विध्वंस के बाद से इस पूरे मामले के घटनाक्रम पर नजर डाल रहे हैं-
6 दिसंबर, 1992- उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई.
6 दिसंबर, 1992- विध्वंस को लेकर दो आपराधिक केस दर्ज किए गए. 197 नंबर के FIR में 'लाखों कारसेवकों' के खिलाफ केस दर्ज किया गया, जिसमें आईपीसी की धारा 153 A (धार्मिक आधार पर दुश्मनी फैलाना), 297 (श्मशान में अतिक्रमण करना), 332 (सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्य से डिगाने के लिए जानबूझकर चोट पहुंचाना), 337 (दूसरों की जिंदगी और निजी सुरक्षा को खतरे में डालना), 338 (जिंदगी खतरे में डालकर गंभीर चोट पहुंचाना), 395 (डकैती) और 397 (लूटपाट, मौत का कारण बनने की कोशिश के साथ डकैती) के तहत केस दर्ज है.
FIR नंबर 198 में आठ लोगों के नाम हैं- लाल कृष्ण आडवाणी, एमएम जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा और विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर और विष्णु हरि डालमिया का नाम है. इन नेताओं के खिलाफ आईपीसी की धाराओं- 153 A (धार्मिक आधार पर दुश्मनी फैलाना), 153-B (दंगा कराने के इरादे से भड़काऊ गतिविधियां करना) और 505 (जनता को भड़काने के लिए भड़काऊ बयान देने) के तहत केस दर्ज कराया गया है. इसके अलावा मामले 47 और एफआईआर फाइल किए गए, जिसके बाद कुल एफआईर की संख्या 49 है.
13 अप्रैल, 1993- यूपी के ललितपुर, जहां से सबसे पहले केस शुरू हुए थे, के स्पेशल मजिस्ट्रेट ने एफआईआर 197 में 'लाखों कारसेवकों' के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने (धारा 120 B) का आरोप भी जोड़ा.
8 सितंबर, 1993- यूपी सरकार ने एफआईआर संख्या 198, जिसमें बीजेपी और वीएचपी नेताओं के नाम थे, उसे छोड़कर बाकी मामलों को लखनऊ की स्पेशल कोर्ट को दे दिया. 198 केस का ट्रायल रायबरेली के एक कोर्ट को चला गया.
5 अक्टूबर, 1993- सीबीआई ने लखनऊ कोर्ट में 48 आरोपियों के खिलाफ एक संयुक्त चार्जशीट फाइल किया. इसमें शिवसेना के पूर्व प्रमुख बाल ठाकरे और यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह का नाम था.
8 अक्टूबर, 1993- यूपी सरकार ने 8 सितंबर की अधिसूचना में संशोधन किया, ताकि सारे 49 मामलों का ट्रायल लखनऊ कोर्ट में ही हो सके.
1996- सीबीआई ने एफआईआर संख्या 198 में आडवाणी सहित दूसरे आठ बीजेपी और वीएचपी नेताओं के खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट फाइल किया.
9 सितंबर, 1997- लखनऊ स्पेशल कोर्ट के स्पेशल जज ने एफआईआर संख्या 198 में सभी आरोपी नेताओं के खिलाफ भी आपराधिक साजिश का आरोप तय करने को कहा.
12 फरवरी, 2001- इलाहाबाद कोर्ट ने यूपी सरकार के अक्टूबर, 1993 की अधिसूचना को यह कहते हुए अवैध ठहराया कि एफआईआर संख्या 198 को लखनऊ कोर्ट 'बिना न्यायक्षेत्र' के भेजा गया.
4 मई, 2001- लखनऊ कोर्ट ने आडवाणी, जोशी, उमा भारती, बाल ठाकरे सहित 21 आरोपियों पर अपनी कार्रवाई रोक दी. केस को फिर रायबरेली के कोर्ट में शिफ्ट कर दिया गया.
28 सितंबर, 2002- सीबीआई ने 8 अक्टूबर, 1993 की अधिसूचना में न्याय-क्षेत्र से जुड़ी गलतियां सुधारने का आग्रह किया, जिसे यूपी सरकार ने खारिज कर दिया. सीबीआई ने यूपी सरकार के फैसले को चुनौती नहीं दी.
2002- सीबीआई ने रायबरेली के कोर्ट में आडवाणी, जोशी, भारती और पांच अन्य के खिलाफ सप्लीमेंटी चार्जशीट दाखिल की. इसमें आईपीसी की धाराओं- 153 A (धार्मिक आधार पर दुश्मनी फैलाना), 153-B (दंगा कराने के इरादे से भड़काऊ गतिविधियां करना) और 505 (जनता को भड़काने के लिए भड़काऊ बयान देने) के अलावा 147 (दंगों के लिए दंड) और 149 (गैर-कानूनी सभा) करने के तहत केस दर्ज किया गया. हालांकि, इसमें आपराधिक साजिश की धारा का जिक्र नहीं था.
22 मई, 2010- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 21 आरोपियों के खिलाफ केस ड्रॉप करने के लखनऊ कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा कि मामले में दो तरह के आरोपी थे- डायस पर मौजूद नेता और दूसरे कारसेवक. कोर्ट ने कहा कि दोनों वर्गों के आरोपियों के खिलाफ अलग तरह के आरोप हैं और उनकी संलिप्तता अलग तरीकों के अपराधों में थी. कोर्ट ने यह भी कहा कि एफआईआर संख्या 198 में आठ आरोपियों के खिलाफ कभी आपराधिक साजिश का आरोप नहीं लगा.
19 अप्रैल, 2017- सुप्रीम कोर्ट ने अपराध संख्या 198/92 मामले को रायबरेली से लखनऊ ट्रांसफर कर दिया और लखनऊ कोर्ट को आडवाणी, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, मुरली मनोहर जोशी और विष्णु हरि डालमिया के खिलाफ आपराधिक साजिश का आरोप तय करने को कहा. शीर्ष अदालत ने सीबीआई के 5 अक्टूबर, 1993 के संयुक्त चार्जशीट में चंपत राय, नृत्य गोपाल दास, कल्याण सिंह और अन्य, जिनके भी नाम थे, उनके खिलाफ आपराधिक साजिश रचने का तय करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी विध्वंस मामले में रोजाना सुनवाई करने और अगले दो सालों में फैसला सुनाने का आदेश दिया.
30 मई, 2017- बीजेपी के वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी, उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी अन्य आरोपियों के साथ लखनऊ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट के सामने पेश हुए.
मई, 2019- स्पेशल जज ने केस के ट्रायल को निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से और छह महीने मांगे.
जुलाई, 2019- सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी विध्वंस केस की सुनवाई कर रहे स्पेशल सीबीआई जज का कार्यकाल फैसला आने तक बढ़ा दिया और ट्रायल पूरा करने के लिए नौ महीनों का वक्त दिया.
मई 2020- सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल सीबीआई जज से ट्रायल पूरा करने और अगस्त, 2020 तक केस में फैसला सुनाने को कहा.
2 जुलाई, 2020- बीजेपी नेता उमा भारती सीबीआई के स्पेशल जज के सामने पेश हुईं और बयान दर्ज कराया.
13 जुलाई, 2020- यूपी के पूर्व सीएम और बीजेपी नेता कल्याण सिंह सीबीआई कोर्ट में पेश हुए और बयान दर्ज कराया.
23 जुलाई, 2020- बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए केस में अपना बयान दर्ज कराया.
24 जुलाई, 2020- एलके आडवाणी ने भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सीबीआई कोर्ट में अपना बयान दर्ज कराया.
अगस्त, 2020- सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल सीबीआई कोर्ट से ट्रायल पूरा करने और 30 सितंबर तक फैसला सुनाने को कहा.
16 सितंबर, 2020- स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने बाबरी विध्वंस केस में आखिरी फैसला सुनाने के लिए 30 सितंबर, 2020 को आखिरी तारीख तय की.
30 सितंबर, 2020- कोर्ट ने आखिरी फैसला सुनाया. सभी आरोपियों को बरी किया गया. कोर्ट ने फैसले में कहा कि 'अराजक तत्वों ने ढांचा गिराया था और आरोपी नेताओं ने इन लोगों को रोकने का प्रयास किया था.' कोर्ट ने यह भी कहा कि 'आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं और सीबीआई की ओर से जमा किए गए ऑडियो और वीडियो सबूतों की प्रमाणिकता की जांच नहीं की जा सकती है. भाषण का ऑडियो क्लियर नहीं है.'
Video: अयोध्या में नई मस्जिद बाबर के नाम पर नहीं होगी
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