Ayodhya Case: मुस्लिम पक्ष के वकील बोले- हमारी मांग है कि 5 दिसंबर 1992 में जैसा ढांचा था, वैसी ही हालत में मस्जिद सौंपी जाए

मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन ने केस की सुनवाई के दौरान केहा कि मुझे जवाब देने के लिए टाइम नहीं दिया गया है, जो समय सीमा तय की गई है वो काफी नहीं है. इस मामले में बहुत सारे तथ्यों व कानूनी पहलुओं को कोर्ट के सामने रखना है.

Ayodhya Case: मुस्लिम पक्ष के वकील बोले- हमारी मांग है कि 5 दिसंबर 1992 में जैसा ढांचा था, वैसी ही हालत में मस्जिद सौंपी जाए

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

अयोध्या मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में 38वें दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन ने कोर्ट से कहा कि दिलचस्प बात यह है कि इस केस की सुनवाई के दौरान सभी सवाल हमसे ही किये जाते हैं. कभी हिन्दू पक्ष से सवाल नहीं किया जाता. धवन के इस बयान पर हिंदू पक्षकारों ने आपत्ति जताई. इसके साथ ही राजीव धवन ने कहा कि हमने 6 दिसंबर 1992 को ढांचा गिराए जाने के बाद अपनी मांग बदली और हमारी यही मांग है कि हमें 5 दिसंबर 1992 की स्थिति में जिस तरह का ढ़ांचा था उसी स्थिति में हमें मस्जिद सौंपी जाए.

धवन ने केस की सुनवाई के दौरान कहा कि मुझे जवाब देने के लिए टाइम नहीं दिया गया है, जो समय सीमा तय की गई है वो काफी नहीं है. इस मामले में बहुत सारे तथ्यों व कानूनी पहलुओं को कोर्ट के सामने रखना है. राजीव धवन और हिंदू पक्षकारों के वकील सीएस वैद्यनाथन दोनों ने लिखित दलीलें कोर्ट को दीं. 

धवन ने कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं दिए गए केंद्रीय गुंबद के नीचे ही राम का जन्म हुआ. गुंबद के नीचे राम जन्म होने, श्रद्धालुओं के वहीं फूल प्रसाद चढ़ाने का कोई भी दावा सिद्ध नहीं किया गया. गुम्बद के नीचे तो ट्रेसपासिंग कर लोग घुस आए थे. जब वहां पूजा चल रही थी तो अंदर घुसने का मतलब क्या है? इसका मतलब पूजा बाहर ही हो रही थी.  कभी भी मन्दिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई. वहां लगातार नमाज़ होती रही थी.

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धवन ने कहा कि रीति-रिवाज कोई दिमागी खेल नहीं है. इसे विश्वास के साथ नहीं मिलाया जा सकता. हिंदू पक्ष ने सभी दलीलों को बिना किसी तथ्यात्मक आधार और स्पष्टीकरण के प्रस्तुत किया. 1989 तक हिंदुओं द्वारा जमीन पर मालिकाना हक का दावा नहीं किया. धवन ने कहा कि 1885 और 1989 के बीच हिंदू पक्ष द्वारा कभी जमीन के टाइटल का दावा नहीं किया गया. जबकि, 1854 से ही बाबरी मस्जिद के रखरखाव के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा अनुदान दिए जाते रहे.

धवन ने माना कि पुरातात्विक साक्ष्य को प्रमाणित किया जा सकता है. हालांकि, इससे पहले पुरातत्व को मुस्लिम पक्षकारों ने एक सामाजिक विज्ञान के रूप में माना था और उसे खारिज कर दिया था. धवन ने कहा कि ASI रिपोर्ट में कभी ये नहीं कहा गया कि मंदिर को तोडकर मस्जिद बनाई गई. इस जगह पर हमेशा मुस्लिमों का कब्जा रहा. हिंदुओं ने बहुत बाद में जमीन के टाइटल का दावा किया लेकिन उसे खारिज कर दिया गया. उन्होंने 1934 से प्रतिकूल कब्जे का दावा किया जिसके लिए कोई सबूत नहीं है.

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साथ ही उन्होंने कहा कि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं हैं कि वादी (हिंदू) विवादित भूमि का मालिक है. हिंदुओं को सिर्फ भूमि के उपयोग का अधिकार था. इसके अलावा कोई अधिकार हिंदुओं को नहीं दिया गया था. उन्हें पूर्वी दरवाजे से प्रवेश करने और प्रार्थना करने का अधिकार दिया गया, इससे ज्यादा कुछ नहीं. 

जस्टिस SA बोबडे और जस्टिस DY चन्द्रचूड़ ने कहा कि क्या मुसलमानों का एकमात्र अधिकार होने का दावा करना उनकी दलील को हल्का नहीं करेगा? जबकि हिंदुओं को बाहरी आंगन में प्रवेश करने का अधिकार था. धवन ने कहा कि इससे उन्हें अधिकार तो नहीं मिलता. जस्टिस DY चन्द्रचूड़ ने कहा कि कई दस्तावेज़ है जो दिखाते है कि वह बाहरी आंगन में रहते थे. 

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धवन ने कहा कि यह दिखाने के लिए उनके पास कोई सबूत नहीं है कि हिंदू बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि का मालिक है. एक भी ऐसा दस्तावेज नहीं है जो साबित करता हो कि हिंदुओं का वहां पर पहले कब्ज़ा रहा था. जस्टिस DY चन्द्रचूड़ ने राजीव धवन से हिंदुओं के बाहरी अहाते पर कब्ज़े के बारे में पूछा. जस्टिस DY चन्द्रचूड़ ने कहा कि 1858 के बाद के दस्तावेजों से पता चलता है कि राम चबूतरा की स्थापना की गई थी, उनके पास अधिकार था. 

इसके अलावा धवन ने कहा कि हिन्दू पक्ष के पास कोई मालिकाना हक का दस्तावेज़ नहीं है और ना ही था. यह अंग्रेजों के समय से वक्फ की संपत्ति है और यहां हिन्दुओं ने जबरन अवैध कब्जा किया. हिंदुओं को पूजा का और सेवादार होने का अधिकार दिया गया जबकि उनके पास मालिकाना हक नहीं था. 1885-86 तक अंग्रेजों ने प्रार्थना करने के लिए बाबरी परिसर को हिंदुओं के लिये पूर्वी द्वार को खोल दिया. इसका मतलब सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए था और इससे अधिक कुछ नहीं था. विश्वास, यात्रा वृत्तांत, स्कंद पुराण उन्हें जमीन का मालिकाना हक नहीं दे सकते. मुसलमानों का कब्ज़ा कभी संदेह में नहीं था. केवल एक चीज जिसे तय करने की आवश्यकता है, वह उनके बारे में है. उन्होंने प्रार्थना करने की अनुमति मांगी और अब उन्होंने टाइटल पर अपना दावा किया.

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