नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में एसडीएम कार्यालय में तैनात रहे एक राघवेंद्र अहिरवार के बारे में पता चला है कि वह पाकिस्तान के एजेटों को इस बात की भी जानकारी देता था कि कौन सी यूनिट कहां पर और किस अवधि में फायरिंग का अभ्यास करने जा रही है. उत्तर प्रदेश के आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) की जांच में दोषी पाये गये स्टेनो राघवेन्द्र अहिरवार का कृत्य 'शासकीय गोपनीयता कानून' के तहत अपराध है, जिसमें जेल की सजा का प्रावधान है. एटीएस उसके खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल करेगी. यह जानकारी एटीएस प्रवक्ता ने दी. प्रवक्ता के मुताबिक एटीएस ने भारतीय सेना से संबंधित प्रतिबंधित सूचनाएं जासूसी एजेंटों को दिये जाने की खुफिया सूचना पर जांच शुरू की और इस दौरान झांसी के एसडीएम कार्यालय के अधिकारी और कर्मचारियों से पूछताछ की. प्रवक्ता ने बताया कि एटीएस के अधिकारियों ने जुलाई 2009 से जुलाई 2017 तक कार्यालय में तैनात रहे स्टेनो राघवेन्द्र से जब सेना से संबंधित प्रतिबंधित जानकारी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को अथवा किसी अन्य को देने के संबंध में पूछा तो उसने बताया कि उसको 2009 से ही फोन करके एक व्यक्ति, जो अपने आपको बबीना में नियुक्त मेजर यादव बताता था, उक्त सूचना प्राप्त करता था.
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9 अंकों के मोबाइल नंबर से कॉल करता था 'मेजर यादव'
पूछताछ के दौरान स्टेनो ने बताया कि तथाकथित मेजर यादव बदल- बदल कर नौ अंकों के मोबाइल नंबर से काल करता था जिस पर काल बैक करने से काल नहीं लगती थी. राघवेन्द्र ने कभी भी ये पुष्टि नहीं की कि एक मेजर पद का व्यक्ति क्यों उससे सीधे बात कर सूचना ले रहा है और 2009 से अब तक एक ही रैंक पर क्यों है. प्रवक्ता के मुताबिक पत्र के ऊपर प्रतिबंधित यानी 'रिस्ट्रिक्टेड' लेटर लिखा रहता था. उसके बावजूद राघवेन्द्र उसमें अंकित सूचना कि कौन सी यूनिट कहां पर किस अवधि में फायरिंग अभ्यास करेगी, को अनधिकृत रूप से अनधिकृत व्यक्ति को देता था, ऐसा उसने स्वीकार किया.
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गोपनीयता अधिनियम का उल्लंघन
प्रवक्ता ने बताया कि प्रतिबंधित सूचना को वह बिना किसी अधिकारी के लिखित आदेश पर देता था जो कि शासकीय गोपनीयता अधिनियम के तहत अपराध बनता है. प्रवक्ता के मुताबिक बबीना फील्ड फायरिंग रेंज से संबंधित सेना के सूत्रों से गोपनीय तरीके से पता किया तो ज्ञात हुआ कि फायरिंग अभ्यास से संबंधित ऐसी कोई भी सूचना की सेना द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है और मेजर यादव नामक कोई व्यक्ति नहीं है जो 2009 से अब तक लगातार बबीना में नियुक्त रहा है. प्रवक्ता ने बताया कि राघवेन्द्र के मोबाइल के सीडीआर के विश्लेशण से भी यह ज्ञात हुआ है कि तथाकथित मेजर यादव जिस नंबर से बात करता था, वह इंटरनेट काल होती थी या सिम बाक्स के जरिए काल होती थी.
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एसडीएम की भूमिका की भी जांच
एटीएस महानिरीक्षक असीम अरूण ने कहा, 'आईएसआई के जासूसों द्वारा ऐसी कार्य प्रणाली पहले भी अपनायी जा चुकी है. इस प्रकरण में तो नौ साल से सूचनाएं लीक हो रही थीं. जरूरी है कि संवेदनशील पदों पर नियुक्त व्यक्तियों को सचेत किया जाए ताकि राष्ट्र की सुरक्षा के ऐसे नुकसान से बचा जा सके.' प्रवक्ता ने बताया कि इस बात की जांच की जा रही है कि इस अवधि में नियुक्त सभी एसडीएम की क्या भूमिका थी. यह भी देखा जा रहा है कि और कौन व्यक्ति हैं, जो इस काम में जुड़े हो सकते हैं. तकनीकी जांच भी की जा रही है, जिससे मालूम हो सके कि इंटरनेट कॉल कहां से आती थी.
इनपुट : भाषा
उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में एसडीएम कार्यालय में तैनात रहे एक राघवेंद्र अहिरवार के बारे में पता चला है कि वह पाकिस्तान के एजेटों को इस बात की भी जानकारी देता था कि कौन सी यूनिट कहां पर और किस अवधि में फायरिंग का अभ्यास करने जा रही है. उत्तर प्रदेश के आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) की जांच में दोषी पाये गये स्टेनो राघवेन्द्र अहिरवार का कृत्य 'शासकीय गोपनीयता कानून' के तहत अपराध है, जिसमें जेल की सजा का प्रावधान है. एटीएस उसके खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल करेगी. यह जानकारी एटीएस प्रवक्ता ने दी. प्रवक्ता के मुताबिक एटीएस ने भारतीय सेना से संबंधित प्रतिबंधित सूचनाएं जासूसी एजेंटों को दिये जाने की खुफिया सूचना पर जांच शुरू की और इस दौरान झांसी के एसडीएम कार्यालय के अधिकारी और कर्मचारियों से पूछताछ की. प्रवक्ता ने बताया कि एटीएस के अधिकारियों ने जुलाई 2009 से जुलाई 2017 तक कार्यालय में तैनात रहे स्टेनो राघवेन्द्र से जब सेना से संबंधित प्रतिबंधित जानकारी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को अथवा किसी अन्य को देने के संबंध में पूछा तो उसने बताया कि उसको 2009 से ही फोन करके एक व्यक्ति, जो अपने आपको बबीना में नियुक्त मेजर यादव बताता था, उक्त सूचना प्राप्त करता था.
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9 अंकों के मोबाइल नंबर से कॉल करता था 'मेजर यादव'
पूछताछ के दौरान स्टेनो ने बताया कि तथाकथित मेजर यादव बदल- बदल कर नौ अंकों के मोबाइल नंबर से काल करता था जिस पर काल बैक करने से काल नहीं लगती थी. राघवेन्द्र ने कभी भी ये पुष्टि नहीं की कि एक मेजर पद का व्यक्ति क्यों उससे सीधे बात कर सूचना ले रहा है और 2009 से अब तक एक ही रैंक पर क्यों है. प्रवक्ता के मुताबिक पत्र के ऊपर प्रतिबंधित यानी 'रिस्ट्रिक्टेड' लेटर लिखा रहता था. उसके बावजूद राघवेन्द्र उसमें अंकित सूचना कि कौन सी यूनिट कहां पर किस अवधि में फायरिंग अभ्यास करेगी, को अनधिकृत रूप से अनधिकृत व्यक्ति को देता था, ऐसा उसने स्वीकार किया.
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गोपनीयता अधिनियम का उल्लंघन
प्रवक्ता ने बताया कि प्रतिबंधित सूचना को वह बिना किसी अधिकारी के लिखित आदेश पर देता था जो कि शासकीय गोपनीयता अधिनियम के तहत अपराध बनता है. प्रवक्ता के मुताबिक बबीना फील्ड फायरिंग रेंज से संबंधित सेना के सूत्रों से गोपनीय तरीके से पता किया तो ज्ञात हुआ कि फायरिंग अभ्यास से संबंधित ऐसी कोई भी सूचना की सेना द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है और मेजर यादव नामक कोई व्यक्ति नहीं है जो 2009 से अब तक लगातार बबीना में नियुक्त रहा है. प्रवक्ता ने बताया कि राघवेन्द्र के मोबाइल के सीडीआर के विश्लेशण से भी यह ज्ञात हुआ है कि तथाकथित मेजर यादव जिस नंबर से बात करता था, वह इंटरनेट काल होती थी या सिम बाक्स के जरिए काल होती थी.
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एसडीएम की भूमिका की भी जांच
एटीएस महानिरीक्षक असीम अरूण ने कहा, 'आईएसआई के जासूसों द्वारा ऐसी कार्य प्रणाली पहले भी अपनायी जा चुकी है. इस प्रकरण में तो नौ साल से सूचनाएं लीक हो रही थीं. जरूरी है कि संवेदनशील पदों पर नियुक्त व्यक्तियों को सचेत किया जाए ताकि राष्ट्र की सुरक्षा के ऐसे नुकसान से बचा जा सके.' प्रवक्ता ने बताया कि इस बात की जांच की जा रही है कि इस अवधि में नियुक्त सभी एसडीएम की क्या भूमिका थी. यह भी देखा जा रहा है कि और कौन व्यक्ति हैं, जो इस काम में जुड़े हो सकते हैं. तकनीकी जांच भी की जा रही है, जिससे मालूम हो सके कि इंटरनेट कॉल कहां से आती थी.
इनपुट : भाषा