नई दिल्ली:
समझौता एक्सप्रेस के मुख्य आरोपी असीमानंद को जमानत मिल सकती है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने मंगलवार को लोकसभा को बताया कि उनकी बेल रद्द करवाने के लिए एनआईए आगे अपील नहीं करने जा रहा है।
फरवरी 2007 में समझौता एक्सप्रेस की दो बोगियों में बम फटे और 68 लोगों की मौत हो गई। अब 8 साल बाद इन धमाकों के मुख्य आरोपी असीमानंद के छूटने का रास्ता साफ होता नजर आ रहा है, क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्रालय उन पर मेहरबान है।
लोकसभा सांसद असदोद्दीन ओवैसी के एक सवाल का जवाब देते हुए सदन में गृह राज्य मंत्री हरिभाई पी चौधरी ने कहा कि पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने असीमानंद को 28 अगस्त, 2014 को बेल दे दी, लेकिन सर्टिफाइड ऑर्डर की कॉपी एक मई, 2015 को ही दी। एनआईए को सुप्रीम कोर्ट जाने का कोई आधार नहीं मिल रहा।
78 साल के असीमानंद को लेकर केंद्र फिर मानवीय आधार की दलील दे रहा है, इस तर्क के साथ कि वे पांच साल से जेल में हैं। इन धमाकों से जुड़े दूसरे आरोपियों को लेकर भी केंद्र मेहरबान दिखाई पड़ता है। मक्का मस्जिद के दो आरोपियों देवेंद्र गुप्ता और लोकेश शर्मा की भी जमानत को एनआईए ने चुनौती नहीं दी। विपक्ष का आरोप साफ है कि केंद्र सरकार अपनों को बचा रही है।
वैसे समझौता एक्सप्रेस पर गृह मंत्रालय के इस रुख का एक कूटनीतिक असर भी है। भारत जब 26/11 का मामला उठाता है, पाकिस्तान पलटकर समझौता एक्सप्रेस के इंसाफ़ की याद दिलाता है। पाकिस्तान कहता है, भारत में समझौता एक्सप्रेस की जांच मद्धिम है। मगर सवाल, पाकिस्तान की शिकायत का नहीं, इस असली फिक्र का है कि क्या सरकार वाकई अलग-अलग चश्मों से आतंकवाद को देख रही है? मालेगांव धमाकों की एक सरकारी वकील ये शिकायत कर चुकी है। अब यह नहीं लगना चाहिए कि सरकार आतंकवाद के भी एक चेहरे से समझौता कर रही है।
फरवरी 2007 में समझौता एक्सप्रेस की दो बोगियों में बम फटे और 68 लोगों की मौत हो गई। अब 8 साल बाद इन धमाकों के मुख्य आरोपी असीमानंद के छूटने का रास्ता साफ होता नजर आ रहा है, क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्रालय उन पर मेहरबान है।
लोकसभा सांसद असदोद्दीन ओवैसी के एक सवाल का जवाब देते हुए सदन में गृह राज्य मंत्री हरिभाई पी चौधरी ने कहा कि पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने असीमानंद को 28 अगस्त, 2014 को बेल दे दी, लेकिन सर्टिफाइड ऑर्डर की कॉपी एक मई, 2015 को ही दी। एनआईए को सुप्रीम कोर्ट जाने का कोई आधार नहीं मिल रहा।
78 साल के असीमानंद को लेकर केंद्र फिर मानवीय आधार की दलील दे रहा है, इस तर्क के साथ कि वे पांच साल से जेल में हैं। इन धमाकों से जुड़े दूसरे आरोपियों को लेकर भी केंद्र मेहरबान दिखाई पड़ता है। मक्का मस्जिद के दो आरोपियों देवेंद्र गुप्ता और लोकेश शर्मा की भी जमानत को एनआईए ने चुनौती नहीं दी। विपक्ष का आरोप साफ है कि केंद्र सरकार अपनों को बचा रही है।
वैसे समझौता एक्सप्रेस पर गृह मंत्रालय के इस रुख का एक कूटनीतिक असर भी है। भारत जब 26/11 का मामला उठाता है, पाकिस्तान पलटकर समझौता एक्सप्रेस के इंसाफ़ की याद दिलाता है। पाकिस्तान कहता है, भारत में समझौता एक्सप्रेस की जांच मद्धिम है। मगर सवाल, पाकिस्तान की शिकायत का नहीं, इस असली फिक्र का है कि क्या सरकार वाकई अलग-अलग चश्मों से आतंकवाद को देख रही है? मालेगांव धमाकों की एक सरकारी वकील ये शिकायत कर चुकी है। अब यह नहीं लगना चाहिए कि सरकार आतंकवाद के भी एक चेहरे से समझौता कर रही है।
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