एक ही महीने के अंदर बीजेपी ने दो बड़े नेताओं को खो दिया है. 6 अगस्त की शाम पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के निधन से बीजेपी अभी उबर भी नहीं आई थी कि 24 अगस्त को पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का निधन हो गया है. बीजेपी आज भले ही सत्ता के शिखर पहुंच गई हो लेकिन बीजेपी के इन दो नेताओं ने पार्टी को उस समय संभाला था जब 2009 में लोकसभा चुनाव में हार के बाद कार्यकर्ताओं में निराशा थी. लोकसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर सुषमा स्वराज और राज्यसभा में अरुण जेटली ने मोर्चा संभाला था. उसके बाद 2 जी से लेकर कॉमनवेल्थ गेम्स, महंगाई जैसे मुद्दों पर दोनों नेताओं ने मनमोहन सिंह सरकार को चैन से नहीं बैठने नहीं दिया. विपक्ष में शानदार भूमिका निभाने वाले इन दो नेताओं ने तथ्यों और अपनी भाषण कला के दम पर संसद में जनता की आवाज बने. घपलों और घोटालों से घिरी यूपीए-2 की सरकार को इन नेताओं ने सड़क से लेकर संसद तक खूब छकाया. इस दौरान खास बात यह रही है कि दोनों नेताओं ने कभी कोई ऐसा बयान नहीं दिया जो विपक्षी दलों के लिए सिरदर्द बना हो. सुषमा स्वराज और अरुण जेटली दोनों ही पेशे से वकील थे और संसद में उनका सामना कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राम जेठमलानी जैसे बड़े वकीलों से बहस होती थी.
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इन दोनों नेताओं का रहना बीजेपी के लिए भी बड़ी चुनौती है क्योंकि दोनों ही बौद्धिक स्तर पर भी गंभीर योद्धा के तौर पर जाने जाते थे. बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति पर जब भी सवाल उठते तो सुषमा और जेटली बाखूबी इसका जवाब देते थे. खास बात यह है कि दोनों ही नेता आरएसएस की पृष्ठभूमि से नहीं आते थे. सुषमा स्वराज जहां बीजेपी में समाजवादी राजनीति से आई थीं तो जेटली की सोच उदारवादी और प्रगतिशील थी.
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इन दोनों नेताओं की पार्टी बीजेपी पीएम मोदी की अगुवाई में भले ही सत्ता के शिखर पर हो, लेकिन उनके सामने हताश हो चुके विपक्ष की कुर्सियों को सुषमा और अरुण जेटली जैसे नेता जरूर याद आएंगे.
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