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This Article is From Mar 09, 2016

यमुना किनारे आर्ट ऑफ लिविंग की तैयारियां पर्यारण के नजरिए से 'तबाही' वाली : दिल्ली हाईकोर्ट

यमुना किनारे आर्ट ऑफ लिविंग की तैयारियां पर्यारण के नजरिए से 'तबाही' वाली : दिल्ली हाईकोर्ट
नई दिल्‍ली: यमुना के किनारे हो रहे आर्ट ऑफ लिविंग के समारोह पर खबरों का संज्ञान लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज कहा कि पारिस्थितिकी के लिहाज से यह 'तबाही' लगता है।

न्यायमूर्ति बीडी अहमद और न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की पीठ ने कहा, 'वह (एओएल का आयोजन) झाड़ियों और पेड़ों को हटाने की वजह से पारिस्थितिकी के नजरिए से तबाही वाला लगता है। इस क्षेत्र को चौरस किया गया है। आपने (सरकार) जलग्रहण क्षेत्र में बड़ा पंडाल लगाने के लिए अनुमति दे दी।' उन्होंने कहा, 'हम केवल अखबारों की खबरों का संज्ञान लेकर यह बात कह रहे हैं।' राष्ट्रीय राजधानी में जैतपुर और मीठापुर इलाकों में यमुना के किनारे अनधिकृत निर्माण कार्यों के मुद्दे पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय की पीठ ने यह टिप्पणी की।

अदालत ने कहा कि सरकार को भवन निर्माण के नियमों का पालन करते हुए निर्माण करने पर विचार करना चाहिए और अगर वहां अनधिकृत कालोनियों को नियमित किया जा रहा है तो सिस्मिक जोन 4 के नियमों का पालन किया जाना चाहिए।

पीठ ने कहा कि इन क्षेत्रों में नियमों का पालन करते हुए निर्माण कार्य करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि अगर दिल्ली में कोई भूकंप या बाढ़ आती है तो ये क्षेत्र सर्वाधिक संवेदनशील होंगे और बड़ी संख्या में लोगों की जान जा सकती है।

पीठ ने दिल्ली के उपराज्यपाल, दिल्ली विकास प्राधिकरण और नगर निगम समेत प्राधिकारों को उन बिल्डरों के खिलाफ कार्रवाई करने की सलाह दी, जिन्होंने उस क्षेत्र में घर खरीदने में कई गरीब लोगों को धोखा दिया।

पीठ ने कहा, 'अगर इमारतों को गिराया नहीं भी जाता तो भी पुलिस कार्रवाई होनी चाहिए।' डीडीए की ओर से अतिरिक्त सालिसिटर जनरल संजय जैन ने अदालत में कहा कि इस मुद्दे पर ध्यान देने के लिए गठित एक संयुक्त कार्यदल की हालिया बैठक में दोनों क्षेत्रों में आगे अनधिकृत निर्माण को रोकने का फैसला किया गया।

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