रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने सेना को तनी नई तोप प्रणाली सौंपी
नई दिल्ली:
30 साल के लंबे इंतेजार के बाद भारतीय सेना में दो तोपों को शामिल किया गया. इनमें एक अमेरिकन तोप है तो दूसरी कोरियन तोप. एम 777 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर और के 9 वज्र सेल्फ़ प्रोपेल्ड गन को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने देवलाली में सेना को सौंपा. बोफोर्स के बाद ये पहली 155 एमएम तोप है जो कि भारतीय सेना में शामिल हुई है. इससे आर्टिलरी की ताक़त में इज़ाफ़ा होगा. मारक क्षमता में बेजोड़ ये दोनों गन आने वाले दिनों में सेना के लिए गेम चेंजर साबित होंगे. एम 777 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर की मारक क्षमता 31 किलोमीटर की है. महज 30 सेकेंड में ये तीन राउंड फ़ायर कर सकता है. वजन में इस कैलिबर की बाकी गन से यह काफी हल्का है. इसे हेलिकॉप्टर या ट्रांसपोर्ट विमान के जरिए हाई ऑल्टिट्यूड एरिया में भी तैनात की जा सकती है. सेना के लिए कुल 145 एम 777 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर खरीदे गए हैं. ये हल्के तोप चीन से लगी सीमा पर तैनात किये जाएंगे. वहीं के-9 वज्र सेल्फ़ प्रोपेल्ड गन रेगिस्तान के लिए सबसे बढ़िया गन है. हूबहू टैंक की तरह दिखने वाली इस तोप की मारक क्षमता 38 किलोमीटर है. 15 सेकेंड में ये तीन राउंड फ़ायर करेगी. इसकी एक ख़ास बात ये भी है कि ये सड़क हो या रेगिस्तान दोनों जगह पर समान स्पीड 60 किलोमीटर प्रतिघंटे से ज़्यादा रफ़्तार से दौड़ सकती है. भारतीय सेना को ऐसी 100 गन मिलेंगी. मेक इन इंडिया के तहत दक्षिण कोरिया की कंपनी भारत की एलएंडटी के साथ 90 तोप बनाएगी, बकी 10 सीधे दक्षिण कोरिया से आएंगी.
इसकी पांच अलग अलग रेजिमेंट तैयार की जाएगी. उम्मीद यही है कि इसकी ज़्यादातर रेजिमेंट पश्चिमी सीमा पर ही तैनात की जाएगी. पाकिस्तान सीमा पर तैनात होने वाली इस तोप की ये भी खासियत है कि जरुरत पड़ने पर ये डायरेक्ट फायरिंग भी कर सकती है. एक किलोमीटर तक दुश्मन के टैंक और बंकर तबाह कर सकती है. भारतीय सेना के आर्टीलेरी रेजिमेंट के दो नए सूरमा 155 एमएम कैलिबर की तोप की ख़ासियत ही ये है कि वो किसी भी ऊंचांई पर छिप कर बैठे या फिर सरहद के उस पार साज़िश रचे तो ये दुश्मन को कभी भी निशाना बना सकता है.
थलसेना में शामिल की गई तीसरी तोप प्रणाली ‘कॉम्पोजिट गन टोइंग व्हीकल' है. 145 ‘एम-777' तोपों की खरीद के लिए भारत ने नवंबर 2016 में अमेरिका से 5,070 करोड़ रुपए की लागत का एक अनुबंध किया था. विदेशी सैन्य बिक्री कार्यक्रम के तहत यह अनुबंध किया गया था. इराक और अफगानिस्तान में इस्तेमाल हुए ‘एम-777' तोपों को हेलीकॉप्टरों द्वारा आसानी से ऊंचाई वाले इलाकों में ले जाया जा सकता है.
VIDEO: अमेरिकी तोप M-777 ट्रॉयल में फेल, भारतीय सेना में होना है शामिल
इसकी पांच अलग अलग रेजिमेंट तैयार की जाएगी. उम्मीद यही है कि इसकी ज़्यादातर रेजिमेंट पश्चिमी सीमा पर ही तैनात की जाएगी. पाकिस्तान सीमा पर तैनात होने वाली इस तोप की ये भी खासियत है कि जरुरत पड़ने पर ये डायरेक्ट फायरिंग भी कर सकती है. एक किलोमीटर तक दुश्मन के टैंक और बंकर तबाह कर सकती है. भारतीय सेना के आर्टीलेरी रेजिमेंट के दो नए सूरमा 155 एमएम कैलिबर की तोप की ख़ासियत ही ये है कि वो किसी भी ऊंचांई पर छिप कर बैठे या फिर सरहद के उस पार साज़िश रचे तो ये दुश्मन को कभी भी निशाना बना सकता है.
थलसेना में शामिल की गई तीसरी तोप प्रणाली ‘कॉम्पोजिट गन टोइंग व्हीकल' है. 145 ‘एम-777' तोपों की खरीद के लिए भारत ने नवंबर 2016 में अमेरिका से 5,070 करोड़ रुपए की लागत का एक अनुबंध किया था. विदेशी सैन्य बिक्री कार्यक्रम के तहत यह अनुबंध किया गया था. इराक और अफगानिस्तान में इस्तेमाल हुए ‘एम-777' तोपों को हेलीकॉप्टरों द्वारा आसानी से ऊंचाई वाले इलाकों में ले जाया जा सकता है.
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