नई दिल्ली:
पिछले दो सालों में सेना के प्रमुख कमांडरों ने 100 करोड़ रुपये से भी ज्यादा जनता का पैसा गैरजरूरी चीजों में खर्च कर दिया है। यह खुलासा रक्षा मंत्रालय द्वारा कराई गई एक आंतरिक जांच में हुआ है।
इस जांच के नतीजों के बाद नाराज रक्षामंत्री एके एंटनी ने आदेश दिया है कि आगे से सेना के कमांडर तमाम मौकों पर पहले मंत्रालय से मंजूरी लेने के बाद ही खर्चा करेंगे।
यह मामला मात्र फिजूलखर्जी का नहीं है, जांच यह भी बताती है कि विदेशों से उपकरण खरीद में तय नियमों की भी अनदेखी की गई है। आश्चर्य की बात तो यह है कि सेना के ही एक अंग ने जिस उपकरण को नकार दिया था उसी उपकरण को दूसरे अंग ने खरीदा।
सरकारी धन की बरबादी के मामले में की गई जांच रिपोर्ट कहती है कि चीन में बने संचार उपकरणों को जनरलों में अपने-अपने क्षेत्र में अपने विशेषाधिकार (इमरजेंसी में खरीद) का इस्तेमाल करते हुए खरीदा है। यहां पर भी घोटाला यह है कि कंपनी से सामान खरीदने के बजाए इन लोगों ने दलालों के माध्यम से यह खरीद की है। जांच में इस बात का भी जिक्र है कि यदि यही उपकरण भारतीय कंपनी से खरीदे गए होते तब काफी सस्ते में मिल सकते थे। रिपोर्ट में इस बात की शंका जाहिर की गई है कि यह उपकरण कालाबाजार से खरीदे गए हैं। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि उन कंपनियों से खरीद में भी दलालों का प्रयोग किया गया जहां विदेश कंपनियां भारत में ही उपकरण का निर्माण कर रही हैं।
गौरतलब है कि चीन में तैयार तमाम संचार उपकरणों में चोरी का सॉफ्टवेयर लगा होता है। तमाम विदेशी सुरक्षा एजेंसियां और चीन भी इनका प्रयोग महत्वपूर्ण गुप्त जानकारियों को एकत्र करने के लिए करता रहा है।
सेना की गुप्तचर शाखा के प्रमुख ने उपकरण की खरीद के संबंध में कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह सारी खरीद उन नियमों का उल्लंघन करके की गई है। रिपोर्ट कहती है कि वित्तीय घपलों के अलावा इन खरीद में देश की सुरक्षा के साथ भी समझौता किया गया है।
रिपोर्ट में खुलासा है कि बेहतर दूरबीन की खरीद के लिए पूर्वी कमांड ने भारतीय दलाल से ऊंचे दामों में खरीदे जबकि वही उपकरण निर्माण कर रही कंपनी सस्ते दामों पर बाजार में बेच रही है। इसी तरह सेना मुख्यालय ने जिस बुलेटप्रूफ जैकेट को निम्न दर्जे की वजह से नकार दिया था, उसी के उत्तरी कमांड ने खरीदा।
गौरतलब है कि सीडीए ने रक्षामंत्री के आदेश के बाद 2009-10 और 2010-11 के बीच सेना कमांडरों द्वारा विशेष वित्तीय अधिकारों का प्रयोग कर खरीद की जांच करने का आदेश दिया था। फिलहाल सीडीए ने सात में छह कमांड के मात्र 55 मामलों की जांच की है और बताया है कि इनमें 103.11 करोड़ का नुकसान का अनुमान लगाया गया है। विभाग नुकसान का सही आकलन इस वजह से भी नहीं लगा पाया क्योंकि तमाम मामलों में रिकॉर्ड को सही तरीके से रखा नहीं गया।
इस पूरे प्रकरण में सबसे गंभीर बात यह है कि सेना के किसी भी कमांडर ने खरीद की पूरी जानकारी नहीं दी है। रिपोर्ट बताती है कि खरीद के आदेश के बावजूद माल की सप्लाई में एक से लेकर तीन साल तक का समय लगा है। इससे साफ जाहिर होता है कि इन उपकरणों की जल्द में खरीदी की ऐसी कोई जरूरत नहीं थी। रिपोर्ट में सेना के कमांडरों पर एक और प्रतिकूल टिप्पणी की गई है जो कहती है कि जबकि ऑडिटर सेना की कार्यालयों में तैनात हैं लेकिन कमांडर उन्हें डरा-धमकाकर रखते हैं। सेना के कमांडर ही इन ऑडिटरों के प्रमोशन में अहम भूमिका निभाते हैं।
इन सब बातों के तहत रिपोर्ट कहती है कि सेना के कमांडरों के हाथ में वित्तीय विशेषाधिकार को और नहीं बढ़ाया जाना चाहिए और साथ ही इस नियम का पुनरीक्षण किया जाना चाहिए।
इस जांच के नतीजों के बाद नाराज रक्षामंत्री एके एंटनी ने आदेश दिया है कि आगे से सेना के कमांडर तमाम मौकों पर पहले मंत्रालय से मंजूरी लेने के बाद ही खर्चा करेंगे।
यह मामला मात्र फिजूलखर्जी का नहीं है, जांच यह भी बताती है कि विदेशों से उपकरण खरीद में तय नियमों की भी अनदेखी की गई है। आश्चर्य की बात तो यह है कि सेना के ही एक अंग ने जिस उपकरण को नकार दिया था उसी उपकरण को दूसरे अंग ने खरीदा।
सरकारी धन की बरबादी के मामले में की गई जांच रिपोर्ट कहती है कि चीन में बने संचार उपकरणों को जनरलों में अपने-अपने क्षेत्र में अपने विशेषाधिकार (इमरजेंसी में खरीद) का इस्तेमाल करते हुए खरीदा है। यहां पर भी घोटाला यह है कि कंपनी से सामान खरीदने के बजाए इन लोगों ने दलालों के माध्यम से यह खरीद की है। जांच में इस बात का भी जिक्र है कि यदि यही उपकरण भारतीय कंपनी से खरीदे गए होते तब काफी सस्ते में मिल सकते थे। रिपोर्ट में इस बात की शंका जाहिर की गई है कि यह उपकरण कालाबाजार से खरीदे गए हैं। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि उन कंपनियों से खरीद में भी दलालों का प्रयोग किया गया जहां विदेश कंपनियां भारत में ही उपकरण का निर्माण कर रही हैं।
गौरतलब है कि चीन में तैयार तमाम संचार उपकरणों में चोरी का सॉफ्टवेयर लगा होता है। तमाम विदेशी सुरक्षा एजेंसियां और चीन भी इनका प्रयोग महत्वपूर्ण गुप्त जानकारियों को एकत्र करने के लिए करता रहा है।
सेना की गुप्तचर शाखा के प्रमुख ने उपकरण की खरीद के संबंध में कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह सारी खरीद उन नियमों का उल्लंघन करके की गई है। रिपोर्ट कहती है कि वित्तीय घपलों के अलावा इन खरीद में देश की सुरक्षा के साथ भी समझौता किया गया है।
रिपोर्ट में खुलासा है कि बेहतर दूरबीन की खरीद के लिए पूर्वी कमांड ने भारतीय दलाल से ऊंचे दामों में खरीदे जबकि वही उपकरण निर्माण कर रही कंपनी सस्ते दामों पर बाजार में बेच रही है। इसी तरह सेना मुख्यालय ने जिस बुलेटप्रूफ जैकेट को निम्न दर्जे की वजह से नकार दिया था, उसी के उत्तरी कमांड ने खरीदा।
गौरतलब है कि सीडीए ने रक्षामंत्री के आदेश के बाद 2009-10 और 2010-11 के बीच सेना कमांडरों द्वारा विशेष वित्तीय अधिकारों का प्रयोग कर खरीद की जांच करने का आदेश दिया था। फिलहाल सीडीए ने सात में छह कमांड के मात्र 55 मामलों की जांच की है और बताया है कि इनमें 103.11 करोड़ का नुकसान का अनुमान लगाया गया है। विभाग नुकसान का सही आकलन इस वजह से भी नहीं लगा पाया क्योंकि तमाम मामलों में रिकॉर्ड को सही तरीके से रखा नहीं गया।
इस पूरे प्रकरण में सबसे गंभीर बात यह है कि सेना के किसी भी कमांडर ने खरीद की पूरी जानकारी नहीं दी है। रिपोर्ट बताती है कि खरीद के आदेश के बावजूद माल की सप्लाई में एक से लेकर तीन साल तक का समय लगा है। इससे साफ जाहिर होता है कि इन उपकरणों की जल्द में खरीदी की ऐसी कोई जरूरत नहीं थी। रिपोर्ट में सेना के कमांडरों पर एक और प्रतिकूल टिप्पणी की गई है जो कहती है कि जबकि ऑडिटर सेना की कार्यालयों में तैनात हैं लेकिन कमांडर उन्हें डरा-धमकाकर रखते हैं। सेना के कमांडर ही इन ऑडिटरों के प्रमोशन में अहम भूमिका निभाते हैं।
इन सब बातों के तहत रिपोर्ट कहती है कि सेना के कमांडरों के हाथ में वित्तीय विशेषाधिकार को और नहीं बढ़ाया जाना चाहिए और साथ ही इस नियम का पुनरीक्षण किया जाना चाहिए।
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