सेनाओं ने सरकार से गुहार लगाई है कि उन्हें आरटीआई के दायरे से बाहर किया जाए. इसको इसी साल नई सिरे से प्रस्ताव सरकार को दिया है. इसमें सशस्त्र बलों में शामिल सेना, नौसेना, वायु सेना और कोस्ट गार्ड ने उन्हें आरटीआई के दायरे से बाहर रखे जाने की अपील की है. उनका कहना है कि सुरक्षा और खुफिया संगठनों और एजेंसियों की तरह उन्हें भी आरटीआई से छूट वाली श्रेणी में रखा जाए. सशस्त्र सेनाओं का कहना है कि आरटीआई सैन्य कर्मियों को उनकी शिकायतों को उनकी कमान के बाहर ले जाने में मदद कर रहा है. लिहाजा सेनाओं ने सरकार ने फिर गुहार लगाई है कि उन्हें सूचना अधिकार कानून (RTI Act) के दायरे से बाहर निकाला जाए. उनका कहना है कि ऐसे कई वाकये हैं, जिनसे पता चलता है कि पारदर्शिता लाने से जुड़ा ये कानून राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचा रहा है, साथ ही सेनाओं में विभिन्न स्तरों की कमान श्रृंखला को भी कमजोर कर रहा है. इस बार सेनाओं की ओर से यह अपील सरकार की उस समिति की ओर भेजी गई है, जिसमें गृह, रक्षा, राजस्व, आईटी जैसे शीर्ष मंत्रालयों के सचिव और अन्य बड़े अधिकारियों के साथ कैबिनेट सचिव भी सदस्य हैं.
सैन्य मामलों का विभाग, रक्षा मंत्रालय का ही हिस्सा है और उसने भी पिछले साल ऐसा ही प्रस्ताव सरकार के पास भेजा था. इस मामले को देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ जनरल बिपिन रावत ने भी सरकार के समक्ष उठाया था और राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दिया था. इसमें कहा गया था कि बाहरी आक्रमण के अलावा देश के भीतर शांति एवं स्थिरता को लेकर इससे बचाव जरूरी है. इससे पहले आरटीआई कानून आने के बाद 2005 में भी सेनाओं को इसके दायरे से बाहर लाने का प्रयास हुआ था, लेकिन वो सफल नहीं हो पाया था.
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