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This Article is From May 18, 2017

पर्यावरण मंत्री अनिल दवे की 4 अंतिम इच्छाएं, वसीयत पढ़ेंगे तो भावुक हो जाएंगे आप

नदियों से उनका प्रेम इस हद तक था कि उन्होंने भोपाल में अपने निजी आवास का नाम ही नदी का घर रखा. उनका गैर सरकारी संगठन नर्मदा समग्र भी नदियों को बचाने के लिए काम करता था.

पर्यावरण मंत्री अनिल दवे की 4 अंतिम इच्छाएं, वसीयत पढ़ेंगे तो भावुक हो जाएंगे आप
पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे का निधन
नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे का जाना नर्मदा के अनगिनत सेवकों में से एक प्रमुख सेवक का विदा होना है. उनकी वसीयत के अनुसार-उनका अंतिम संस्कार नर्मदा किनारे ही किया जाएगा. दवे का पूरा जीवन नर्मदा की सेवा करने और पर्यावरण को बचाने में समर्पित रहा. वह हर साल होशंगाबाद के नजदीक नर्मदा के तट पर नदी महोत्सव का आयोजन करते थे. तीन दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव में देश-विदेश से पर्यावरण प्रेमी हिस्सा लेते हैं. मुझे भी एक बार इस उत्सव में हिस्सा लेने का अवसर मिला था. इसमें छात्रों की भागीदारी और उनका उत्साह मुझे हमेशा याद रहेगा. 

दवेजी से पहली मुलाकात 2003 में मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान हुई थी. तब बीजेपी ने राज्य में दस साल से सत्ता में काबिज दिग्विजय सिंह को उखाड़ फेंकने के लिए पूरी ताकत लगाई थी. जनता के सामने उमा भारती का चेहरा पेश किया गया, लेकिन पर्दे के पीछे रणनीति बनाने वालों में अनिल दवे प्रमुख भूमिका में थे. उनके चुनावी प्रबंधन, कुशल रणनीति और कार्यकर्ताओं से जीवंत संपर्क और संगठन पर मजबूत पकड़ की तब बहुत चर्चा हुई. इस चुनाव में बीजेपी ने दिग्विजय सिंह को 'श्रीमान बंटाधार' कहा था. ये जुमला जबर्दस्त हिट हुआ था और कांग्रेस इस चुनाव में हार गई थी.
 
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बीजेपी ने उस चुनाव में तीन चौथाई बहुमत हासिल किया था और तब से सत्ता में कायम है. बाद के चुनावों में भी उन्हें प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. शिवाजी की रणनीति का उन्होंने बेहद नजदीकी से अध्ययन किया था और उन्हीं से प्रेरणा लेते हुए तब भोपाल में उनकी अगुवाई में बनाए गए बीजेपी के वॉर रूम को जावली नाम दिया गया. गौरतलब है कि शिवाजी अपने सहयोगियों के साथ प्रमुख सामरिक रणनीति जावली नाम के कक्ष में बनाया करते थे. 

संसद भवन में सैंट्रल हॉल में दवेजी से लगातार मुलाकात होती रही. वे और प्रभात झा हमेशा साथ रहते। दवेजी ने अपने जीवन के कई ऐसे तथ्य बताए जो हैरान कर देने वाले थे. उन्होंने बताया कि नर्मदा की उन्होंने कई बार परिक्रमा की है। उद्गम स्थल अमरकंटक से उसके समु में मिलने तक के स्थान तक. उन्होंने बताया कि वो पायलट भी हैं और एक बार उन्होंने नर्मदा की ये परिक्रमा हवाई जहाज से की थी. यही नहीं, एक बार वो बोट से भी ये यात्रा कर चुके हैं. नदियों से उनका प्रेम इस हद तक था कि उन्होंने भोपाल में अपने निजी आवास का नाम ही नदी का घर रखा. उनका गैर सरकारी संगठन नर्मदा समग्र भी नदियों को बचाने के लिए काम करता था.

लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने शिवाजी के एक अनूठे पहलू पर किताब लिखी. शिवाजी का यह पहलू उनकी प्रशासनिक क्षमता के बारे में था. उन्होंने इसे स्वराज की कल्पना से जोड़ कर बताया कि किस तरह से आने वाली सरकार को शिवाजी के प्रशासनिक मॉडल को लागू करना चाहिए. दिलचस्प बात यह है कि इस पुस्तक की प्रस्तावना गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखी थी, जो बाद में प्रधानमंत्री बने. इस पुस्तक को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने जारी किया था.

आज जब नेताओं में जीते जी अपना नाम अमर करने की उत्कंठा होती है, दवे जी ने इस मामले में मिसाल कायम की है. उनके निधन के बाद उनके भाई ने उनकी वसीयत को जारी किया. अनिल दवे ने अपनी वसीयत 23 जुलाई 2012 को ही लिख दी थी. इसमें उन्होंने लिखा था कि उनकी स्मृति में कोई भी स्मारक, प्रतियोगिता, पुरस्कार, प्रतिमा इत्यादि जैसे किसी विषय को न चलाया जाए. 

उन्होंने ये इच्छा व्यक्त की थी कि उन्हें याद करने का एक ही तरीका होगा कि वृक्षों को बोया जाए और उन्हें बड़ा किया जाए. उन्होंने अपनी याद में नदी और जलाशयों को बचाने का काम भी करने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन ये आग्रह भी किया कि इसमें भी उनके नाम का इस्तेमाल न किया जाए. 

उनके निधन के बाद कई प्रमुख व्यक्तियों ने कहा कि उन्हें पर्यावरण मंत्री बना कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी योग्यता का सम्मान किया था. वो बतौर पर्यावरण मंत्री एक साल भी काम नहीं कर पाए, लेकिन इस अल्पअवधि में ही उन्होंने अपने जीवन भर के अनुभवों को मंत्रालय के काम में उतारने का भरसक प्रयास किया. नर्मदा के इस सेवक को श्रद्धांजलि.

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