यूपी के सीएम अखिलेश यादव...
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति के मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार पर लोकायुक्त के लिए सेवानिवृत्त जज वीरेंद्र सिंह का नाम गलत तरीके से अदालत के सामने रखने का आरोप लगाया गया।
साथ ही इस याचिका में शीर्ष अदालत से गत 16 दिसंबर के आदेश में बदलाव करने की गुहार की गई है, जिसमें अदालत ने सेवानिवृत्त जज वीरेंद्र सिंह को उत्तर प्रदेश का नया लोकायुक्त नियुक्त किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि अब तक किसी भी नाम पर मुख्यमंत्री, चीफ जस्टिस और नेता विपक्ष के बीच लोकायुक्त के नाम पर सहमति नहीं बना पाए। हम मानते हैं कि लोकायुक्त के संभावितों की सूची देने में गुमराह किया गया। यूपी में एक लोकायुक्त का नाम तय करने में इतना वक्त लगा। 18 महीने तक कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया गया। राज्य के यह हालात थे कि लोकायुक्त बनाने में सालों लग रहे थे और इसके कारण ही पुराना लोकायुक्त दस साल तक काम करता रहा।
कोर्ट ने कहा कि राज्य के पदाधिकारियों के फेल होने के बाद हमने अपने अधिकार का इस्तेमाल किया हालांकि यूपी सरकार ने इसके लिए विपक्ष के नेता और इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को जिम्मेदार ठहराया और
कहा कि इस मुद्दे पर राज्यपाल भी राजनीति कर रहे हैं।
फिलहाल इस मामले पर कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट अब इस पर विचार करेगा कि क्या जस्टिस वीरेंद्र सिंह को लोकायुक्त नियुक्त करने वाला आदेश वापस लिया जाए या नहीं। प्रशांत भूषण ने कोर्ट से अपना आदेश वापस लेने की अपील की है। कोर्ट ने कहा है कि अगल हमें लगेगा कि वीरेंद्र सिंह की नियुक्ति सही नहीं है तो हम आदेश वापस लेंगे। यूपी सरकार ने हमें गुमराह किया है, हम इस मुद्दे को अलग से देखेंगे।
साथ ही इस याचिका में शीर्ष अदालत से गत 16 दिसंबर के आदेश में बदलाव करने की गुहार की गई है, जिसमें अदालत ने सेवानिवृत्त जज वीरेंद्र सिंह को उत्तर प्रदेश का नया लोकायुक्त नियुक्त किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि अब तक किसी भी नाम पर मुख्यमंत्री, चीफ जस्टिस और नेता विपक्ष के बीच लोकायुक्त के नाम पर सहमति नहीं बना पाए। हम मानते हैं कि लोकायुक्त के संभावितों की सूची देने में गुमराह किया गया। यूपी में एक लोकायुक्त का नाम तय करने में इतना वक्त लगा। 18 महीने तक कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया गया। राज्य के यह हालात थे कि लोकायुक्त बनाने में सालों लग रहे थे और इसके कारण ही पुराना लोकायुक्त दस साल तक काम करता रहा।
कोर्ट ने कहा कि राज्य के पदाधिकारियों के फेल होने के बाद हमने अपने अधिकार का इस्तेमाल किया हालांकि यूपी सरकार ने इसके लिए विपक्ष के नेता और इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को जिम्मेदार ठहराया और
कहा कि इस मुद्दे पर राज्यपाल भी राजनीति कर रहे हैं।
फिलहाल इस मामले पर कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट अब इस पर विचार करेगा कि क्या जस्टिस वीरेंद्र सिंह को लोकायुक्त नियुक्त करने वाला आदेश वापस लिया जाए या नहीं। प्रशांत भूषण ने कोर्ट से अपना आदेश वापस लेने की अपील की है। कोर्ट ने कहा है कि अगल हमें लगेगा कि वीरेंद्र सिंह की नियुक्ति सही नहीं है तो हम आदेश वापस लेंगे। यूपी सरकार ने हमें गुमराह किया है, हम इस मुद्दे को अलग से देखेंगे।
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