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This Article is From Dec 06, 2018

आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने का फैसला सही है या नहीं? सुनवाई पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

सीबीआई बनाम सीबीआई मामले (CBI vs CBI) में सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में आज भी सुनवाई है.

आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने का फैसला सही है या नहीं? सुनवाई पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
Alok Verma Case in Supreme Court Live Updates: आलोक वर्मा की फाइल तस्वीर
नई दिल्ली: सीबीआई बनाम सीबीआई मामले (CBI vs CBI) में सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में आज भी सुनवाई है. केन्द्रीय सर्तकता आयोग (सीवीसी) आज अपनी बहस सुप्रीम कोर्ट में जारी रखेगी. बुधवार को सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सीबीआई के दो बड़े अधिकारी आपस में लड़ रहे थे. ख़बरें मीडिया मे आ रही थीं जिससे सीबीआई की छवि ख़राब हो रही थी. सरकार ने सीबीआई प्रीमियम एजेंसी मे लोगों का भरोसा बनाए रखने के उद्देश्य से वर्मा से काम वापस लिया. कोर्ट में एजी केके वेणुगोपाल ने अफसरों को अवकाश पर भेजे जाने के पीछे दलील दी कि दोनों अफसर बिल्लियों की तरह लड़ रहे थे. ऐसा सख्त कदम उठाना हमारी विवशता थी. उस समय डायरेक्टर और स्पेशल डायरेक्टर के कई फैसले और कदम ऐसे थे जो देश की सबसे बड़ी और ऊंची जांच एजेंसी की छवि को धूमिल कर सकते थे. दरअसल, केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच छिड़े विवाद के बाद केन्द्र ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग की सिफारिश पर दोनों अधिकारियों को अवकाश पर भेज दिया था. वर्मा ने उनके अधिकार लेने और अवकाश पर भेजने के सरकार के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है. 
 

 Alok Verma Case in Supreme Court Live Updates:


-बस्सी के मामले में भी सुनवाई पूरी.

- बस्सी के लिए राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट में कहा - अंडमान गलत तरीके से ट्रांसफर किया गया

-अब बस्सी के ट्रांसफर के खिलाफ याचिका पर सुनवाई शुरू.

-मल्लिकार्जुन खड़की की ओर से कपिल सिब्बल की दलील: सीवीसी सिर्फ भ्रष्टाचार के मामले देखता है जबकि सीबीआई अन्य केस भी देखता है जैसे आरूषि केस. तो फिर सीबीआई के प्रशासन की जिम्मेदारी किसकी है? जाहिर सी बात है ये अधिकार निदेशक का है. भ्रष्टाचार निवारण के मामलों में निगरानी की जिम्मेदारी सीवीसी की है. बाकी मामलों में निदेशक की. 

-कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले में केंद्र को समिति के पास जाना चाहिए था. सीबीआई निदेशक जैसे ही ट्रांसफर या छुट्टी पर भेजा जाता है वैसे ही सारे अधिकारों व सरंक्षण से वंचित हो जाता है. 

-दवे ने कहा कि सीवीसी को शिकायत अगस्त में मिली थी. वर्मा को सरकार ने कुछ करने से रोकने के लिए ये कदम उठाया. Cvc को सीबीआई पर सुपरिंटेंडेंस का अधिकार नहीं है. 

-चीफ जस्टिस - हमें इस बात की चिंता है कि दो साल का कार्यकाल क्या अनुशासानात्मक कार्रवाई को सुपरसीड कर सकता है, क्या वो दो साल में अनटचेबल रहेगा?

- याचिकाकर्ता कॉमन कॉज के लिए दुष्यंत दवे: सीवीसी दो अलग-अलग स्टैडं नहीं ले सकते. एक अस्थाना के लिए दूसरा वर्मा के लिए. नियम में बदलाव हुआ. पहले नियम था कि cvc की अगुआई में कमेटी सीबीआई निदेशक का चयन करेगी. लेकिन संसद ने तय किया कि पीएम और सीजेआई कमेटी के मुखिया होंगे. इस विशेष प्रक्रिया के तहत कमेटी की अनदेखी किसी भी सूरत मे नहीं की जा सकती. 

-दुष्यंत दवे  ने स्पष्ट किया कि सीवीसी अलग अलग मामलों में अलग अलग अप्रोच नहीं रख सकती. यानी वर्मा के लिए अलग और अस्थाना के लिए अलग. दो महीने आपने इंतजार किया और फिर अक्टूबर में कदम उठाया. 

- फली नरीमन ने कहा कि 15 अक्तूबर को अस्थाना के खिलाफ FIR दर्ज की गई. ये कोई बिल्ली वाली लड़ाई नहीं है.

-दुष्यंत दवे कॉमन कॉज के लिए: केंद्र को सीबीआई के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं देना चाहिए था. केंद्र ने सीबीआई की स्वायत्ता के सिद्धांत का पालन नहीं किया. सीवीसी कह रहा है कि सीबीआई पर हमारा अधिकार है तो केंद्र इस म मुद्दे पर इसे उसका अधिकार क्षेत्र है.

- आलोक वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में लंच के बाद फिर सुनवाई शुरू

- आलोक वर्मा की याचिका पर सुप्रीम लंच के बाद सुनवाई जारी रखेगी .

- फली नरीमन- अगर कोई रंगे हाथ पकड़ा जाता है तो क्या होगा? अगर सर्विस रूल्स में नहीं है तो वो ऑफिस में बना रहेगा. असाधरण हालात में चयन समिति की अनुमति से ही ट्रांसफर हो सकता है. 

-फली ने कहा कि ट्रांसफर में अधिकारों को छीनना भी शामिल है. सरकार निदेशक के अधिकार नहीं छीन सकती.  इस पर सुप्रीम कोर्ट के CJI ने कहा कि आपके कहने के मुताबिक कोई अतंरिम निदेशक नहीं हो सकता? इसके जवाब में फली नरीमन ने कहा कि हां सुप्रीम कोर्ट में भी एक्टिंग सीजेआई नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ही संविधान की व्याख्या करता है. 

-CJI ने कहा कि अगर हालात पैदा होते हैं तो क्या कोर्ट किसी व्यक्तिक को सीबीआई का दायित्व सौंप सकता है?

-फली नरीमन- आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजा जाना, ट्रांसफर के समान ही है. क्योंकि वर्मा के अधिकार अंतरिम निदेशक को दिए गए हैं. ये जिम्मेदारी का ट्रांसफर है.  दो साल के कार्यकाल का मतलब ये नहीं कि निदेशक विजिटिंग कार्ड रखे लेकिन शक्तियां ना हों. 

- फली नरीमन- आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजा जाना, ट्रांसफर के समान ही है. क्योंकि वर्मा के अधिकार अंतरिम निदेशक को दिए गए हैं. ये जिम्मेदारी का ट्रांसफर है.  दो साल के कार्यकाल का मतलब ये नहीं कि निदेशक विजिटिंग कार्ड रखे लेकिन शक्तियां ना हों. 

- जब मुकुल रोहतगी ने कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले को लॉजिकल एंड तक ले जाना चाहिए. सीवीसी रिपोर्ट उनके खिलाफ है. इस पर सीजेआई ने कहा कि हम कोर्ट अफसर के तौर पर आपका प्वाइंट ले लेते हैं. 

- सीबीआई की ओर से ASG पीएस नरसिम्हन बहस कर रहे हैं. 

-मुकुल रोहतगी अस्थाना की ओर से बहस कर कर रहे हैं.

-सीबीआई की ओर से ASG नरसिम्हन की दलील: न्यूनतम कार्यकाल वाले किसी भी अफसर का ट्रांसफर करने से पहले कमेटी की मंज़ूरी ज़रूरी.

-मुकुल रोहतगी- निलंबित करने या डिसमिस करने का अधिकार केंद्र के पास. 

-अटार्नी जनरल ने कहा कि अगर हम ट्रांसफर का मुद्दा सेलेक्शन कमेटी के पास लेकर जाते हैं तो चयन समिति इस मुद्दे को वापस भेज देती है और पूछती यह ट्रांसफर कैसे है?

- AG वेनुगोपाल की दलील- नियुक्ति प्राधिकरण सरकार है और उसे निलंबित करने या हटाने का अधिकार है.

- तुषार मेहता का बहस खत्म

- सीवीसी की ओर से SG तुषार मेहता बहस में पेश हुए

तुषार मेहता की दलील: 
  • दो वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी एक दूसरे के खिलाफ हो गए थे. मामलों की जांच करने के बजाय, वे एक-दूसरे पर रेड कर रहे थे, एक-दूसरे के खिलाफ FIR दर्ज कर रहे थे. वे सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं. यह हैरानी वाली स्थिति थी. इस अप्रत्याशित और असाधारण स्थिति में सीवीसी ने तय किया कि आलोक वर्मा को कंटीन्यू नहीं करना चाहिए. उन्हें रोज़मर्रा के कामकाज से दूर रखा जाय. 
  • दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के Sec 4(1) के मुताबिक भी cvc भ्र्ष्टाचार के आरोपों में सीबीआई के कार्यकलापों को नियंत्रित और जांच का अधीक्षण / सुपरिंटेंडेंस कर सकती है. 

- सीजेआई बोले- क्या CVC एक्ट का सेक्शन 8 क्या उसे DSPS एक्ट के सेक्शन 4 के अतिक्रमण या उससे भी आगे जाने का अधिकार देता है?

- SG तुषार मेहता की दलील: 
  • CVC को एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी और सरप्राइज सिचुएशन में सुपरिंटेंडेंस के तहत एक्शन लेने का अधिकार है. cvc ने 23 अक्टूबर को क्या निर्देश जारी किए थे ? फैक्ट्स जस्टिफाई नहीं कर सकते. 
  •  
  • अगर कार्रवाई नहीं की जाती तो सीवीसी पर दायित्व ना निभाने का आरोप लगता. अधिकारियों के खिलाफ आरोपों की जांच पूरी होने तक अंतरिम उपाय किए जाय. अनप्रिसिडेंटेड सिचुएशन में दिया गया निर्देश था.
  •  
  • फिलहाल ये अंतरिम आदेश हैं. अगर जांच में सीवीसी ने पाया कि जरूरी कार्रवाई होनी चाहिए तो सरकार कदम उठाएगी. सीवीसी इस निष्कर्ष पर पहुंची कि आसाधारण हालात पैदा हुए है और आलोक वर्मा अधिकारो के साथ जारी नहीं रह सकते. इसलिए उनके अधिकार छीने गए

- सीजेआई ने तुषार से पूछा कि यहां सीवीसी ने क्या आदेश जारी किया था? इस पर तुषार ने जवाब दिया कि सीवीसी ने आदेश दिया था कि जब तक निदेशक के खिलाफ आरोपों की जांच हो, उनके अधिकार छीन लिए जाएं. 

- CJI बोले- नियम 4(1) सीवीसी को जांच की निगरानी करने का अधिकार देता है. यहां सीवीसी ने क्या आदेश जारी किया?

- तुषार बोले: कई बार हालात ऐसे हो जाते हैं जो कानून से परे होते हैं. ऐसे में इसी तरह के कदम उठाने होते हैं. अगर सीवीसी कार्रवाई ना करे तो वो दंतहीन हो जाएगी.

CJI- ये सब जुलाई से हो रहा था AG ने बताया. तो आप इसे जुलाई से ही बर्दाश्त कर रहे थे. ये ऐसा नहीं है कि अचानक हालात बने और तुरंत कदम उठाए गए. उन्होंने काह कि AG ने कहा है कि चयन समिति सिर्फ पैनल का नाम देती है. ये केंद्र सरकार है जो निदेशक नियुक्त करती है.

-SG तुषार मेहता ने कहा: आल इंडिया सर्विसेज एक्ट के तहत पुलिस और प्रशासन की सेवाओं में अधिकारियों की नियुक्ति होती है. ये नियम अखिल भारतीय सेवा के तहत नियुक्त नीचे से लेकर ऊपर डायरेक्टर और डायरेक्टर जनरल तक पर लागू होते हैं. 

- CJI- AG ने कहा है कि चयन समिति सिर्फ पैनल का नाम देती है. ये केंद्र सरकार है जो निदेशक नियुक्त करती है.

- CJI  बोले- सरकार के कार्य संस्थान के हित में होने चाहिए. अगर आप निदेशक की शक्तियां डाइवस्ट करना चाहते हैं तो चयन समिति से सलाह करने में क्या दिक्कत है ?

-SG तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि ये असाधारण हालात में उठाया गया कदम था. 

-आलोक वर्मा की याचिका पर सुनवाई जारी. 

- सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा से अधिकार वापस लेने और उन्हें छुट्टी पर भेजने के सरकार के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई शुरू की.


5 दिसंबर की सुनवाई में किसने क्या दी दलील:

-वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि दोनों अफसर बिल्लियों की तरह लड रहे थे. ऐसा सख्त कदम उठाना हमारी विवशता थी.

- केंद्र सरकार को सीबीआई में हो रही गतिविधियों की चिंता हुई. क्योंकि दो बड़े अफसर लड़ रहे थे. अफसरों की आपसी लड़ाई में भ्रष्टाचार के आरोपों को हथियार बनाया गया. दो शीर्षस्थ अफसर लड़ रहे थे और सारा विवाद तूल पकड़ गया. सीवीसी को जांच कर तय करना था कि कौन सही है कौन गलत. लेकिन वो पब्लिक में चले गए. 

- AG ने मीडिया की खबरें दिखाईं. सीबीआई के अफसरों के बीच चल रहे विवाद और झगड़े की ये सब जानकारी अखबारों और मीडिया की है. सब कुछ पब्लिक डोमेन में है. जुलाई से ही दोनों के बीच खबरें आनी शुरु हुईं. एजी ने टेलीग्राफ व आउटलुक की खबरें दिखाईं. 

- AG बोले- आलोक वर्मा अभी भी निदेशक हैं. सरकारी बंगला कार सब कुछ वही है. अस्थाना भी स्पेशल डायरेक्टर हैं. 

AG ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल ने हमारे पास मीडिया रिपोर्ट्स का पुलिंदा भेजा है. हमने वर्मा को सिर्फ छुट्टी पर भेजा है. गाड़ी, बंगला, भत्ते, वेतन और यहां तक कि पदनाम भी पहले की तरह है. आज की तारीख में वही सीबीआई निदेशक हैं. 

-अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में बहस की. उन्होंने कोर्ट को बताया, 'सरकार ने सीवीसी की सलाह पर फैसला लिया था. दोनों अफसरों के बीच विवाद से सीबीआई का भरोसा लोगों में हिल गया था. ये फैसला बड़े जनहित और संस्थान का गरिमा बचाने के लिए लिया गया था. सरकार ने संस्थानिक अखंडता को बचाने के लिए आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने का फैसला किया. आसाधारण हालात तो देखते हुए सीवीसी जांच पूरी होने तक आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजा गया.

अब तक:
पिछली सुनवाई में दोनों पक्षों के वकीलों ने दलील दी थी, मगर सुप्रीम कोर्ट से ने सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को लेकर कोई फैसला नहीं दिया था. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना है कि छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा वापस ड्यूटी पर लौटेंगे या आगे उन्हें जांच का सामना करना होगा. आलोक वर्मा ने उन्हें छुट्टी पर भेजे जाने के सरकार के फ़ैसले को चुनौती दी है. 

शीर्ष अदालत आलोक वर्मा को जांच ब्यूरो के निदेशक के अधिकारों से वंचित करने और उन्हें अवकाश पर भेजने के सरकार के निर्णय के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है. इस मामले में गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज, लोकसभा में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्य ने भी याचिका एवं आवेदन दायर कर रखे हैं.

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