इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखकर हाईकोर्टों तथा सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति में 'परिवारवाद और जातिवाद' का आरोप लगाया है. यह खत इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रंगनाथ पांडे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा है. उन्होंने पत्र में लिखा है कि न्यायपालिका (उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय) दुर्भाग्यवश वंशवाद और जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्त हैं और जजों के परिवार से होना ही अगला न्यायधीश होना सुनिश्चित करता है.
जस्टिस रंगनाथ पांडे ने पीएम मोदी को लोकसभा चुनाव में जीत पर बधाई देते हुए खत में लिखा है, 'भारतीय संविधान भारत को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र घोषित करता है तथा इसमें सबसे अहम न्यायपालिका (उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय) दुर्भाग्यवश वंशवाद और जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्त हैं. यहां न्यायधीशों के परिवार का सदस्य होना ही अगला न्यायधीश होना सुनिश्चित करता है.'
Allahabad High Court judge Rang Nath Pandey has written a letter to PM Narendra Modi, alleging “nepotism and casteism” in the appointment of judges to High Courts & Supreme Court. pic.twitter.com/hA1PGyeFIg
— ANI UP (@ANINewsUP) July 3, 2019
कांग्रेस ने भाजपा पर न्यायपालिका का ‘राजनीतिकरण' करने के आरोप लगाए
साथ ही उन्होंने लिखा है, 'राजनीतिक-कार्यकर्ता का मूल्यांकन अपने कार्य के आधार पर ही चुनाव में जनता द्वारा किया जाता है. प्रशासनिक अधिकारी को सेवा में आने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओँ की कसौटी पर उतरना होता है. अधीनस्थ न्यायालय के न्यायाधीशों को भी प्रतियोगी परीक्षाओं में योग्यता सिद्ध करके ही चयनित होने का अवसर मिलता है. लेकिन उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति के लिए हमारे पास कोई निश्चित मापदंड नहीं है. प्रचलित कसैटी है तो केवल परिवारवाद और जातिवाद.'
CJI गोगोई ने कहा- न्यायपालिका को लोकलुभावन ताकतों के खिलाफ खड़ा होना चाहिए
बता दें, पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने स्वतंत्रता को न्यायपालिका की आत्मा बताते हुए कहा है कि उसे लोकलुभावन ताकतों के खिलाफ खड़ा होना चाहिए और संवैधानिक मूल्यों का अनादर किये जाने से इसकी रक्षा की जानी चाहिए. न्यायमूर्ति गोगोई ने रूस के सोची में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के मुख्य न्यायाधीशों के एक सम्मेलन में कहा कि न्यायपालिका को संस्थान की स्वतंत्रता पर लोकलुभावन ताकतों का मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार करना होगा और मजबूत करना होगा.
साथ ही उन्होंने कहा था, उन्होंने कहा कि किसी देश के सफर के कुछ चरणों में जब विधायी और कार्यकारी इकाइयां लोकलुभावनवाद के प्रभाव में संविधान के तहत अपने कर्तव्यों एवं लक्ष्यों से दूर हो जाती हैं तो न्यायपालिका को इन लोकलुभावन ताकतों के खिलाफ खड़े होना चाहिए और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए. कुछ आलोचकों के लिए यह स्थिति आलोचना का एक मौका दे सकती है कि चुने हुए प्रतिनिधियों के फैसले को कैसे न्यायाधीश पलट सकते हैं जबकि वे जनता द्वारा निर्वाचित नहीं हैं.
(इनपुट- एएनआई)
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