हरीश रावत (फाइल फोटो)
देहरादून:
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट में जारी शीर्ष वकीलों की बहस के बीच हाईकोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा, "प्यार और जंग में सब जायज़ होता है..."
पिछले माह राज्य की हरीश रावत सरकार को बर्खास्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को कोर्ट में चुनौती देने वाली कांग्रेस के खिलाफ केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अपनी बहस का समापन करते हुए कहा था, "हरीश रावत को अपनी स्थिति को बचाए रखने के लिए एक और मौका नहीं दिया जा सकता...", जिसके बाद कोर्ट ने यह टिप्पणी की।
27 मार्च को लगाया गया था राष्ट्रपति शासन...
केंद्र सरकार ने 27 मार्च को हरीश रावत सरकार को बर्खास्त करते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था, जबकि सिर्फ 24 घंटे से भी कम समय बाद उन्हें विश्वासमत हासिल करना था। कांग्रेस का कहना है कि हरीश रावत को सदन में बहुमत साबित करने का मौका दिया जाना चाहिए, जबकि केंद्र का तर्क है कि जब रावत सरकार 18 मार्च को अपनी पार्टी के नौ विधायकों के विरोध में दिए गए वोटों की वजह से बजट भी पारित नहीं करवा पाई, तभी उनका अल्पमत में होना साबित हो चुका था।
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने के केंद्र के फैसले को न्यायोचित ठहराने वाली अपनी बहस का समापन करते हुए मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को एक पेनड्राइव भी सौंपी, जिसमें एक स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो मौजूद है, जिसमें हरीश रावत कथित रूप से विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिश कर रहे हैं।
वोटर सिर्फ पार्टी को नहीं, व्यक्ति को वोट देता है : कोर्ट
कोर्ट ने कहा, "जब एक वोटर वोट देता है, तो वह सिर्फ पार्टी के लिए नहीं, व्यक्ति के लिए भी वोट देता है... केंद्र को वोटर के निर्णय का सम्मान करना चाहिए..." इस पर मुकुल रोहतगी ने कहा, "जो काम हरीश रावत सरकार ने किया है, वह इस केस के दायरे में आता ही नहीं..."
अटॉर्नी जनरल का कहना था कि कोर्ट को सिर्फ 18 मार्च के घटनाक्रम तक सीमित रहना चाहिए, जब 70-सदस्यीय विधानसभा के 35 सदस्यों ने हरीश रावत के खिलाफ वोट दिया था।
इसके बाद अब कांग्रेस की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने बहस शुरू की है।
पिछले माह राज्य की हरीश रावत सरकार को बर्खास्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को कोर्ट में चुनौती देने वाली कांग्रेस के खिलाफ केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अपनी बहस का समापन करते हुए कहा था, "हरीश रावत को अपनी स्थिति को बचाए रखने के लिए एक और मौका नहीं दिया जा सकता...", जिसके बाद कोर्ट ने यह टिप्पणी की।
27 मार्च को लगाया गया था राष्ट्रपति शासन...
केंद्र सरकार ने 27 मार्च को हरीश रावत सरकार को बर्खास्त करते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था, जबकि सिर्फ 24 घंटे से भी कम समय बाद उन्हें विश्वासमत हासिल करना था। कांग्रेस का कहना है कि हरीश रावत को सदन में बहुमत साबित करने का मौका दिया जाना चाहिए, जबकि केंद्र का तर्क है कि जब रावत सरकार 18 मार्च को अपनी पार्टी के नौ विधायकों के विरोध में दिए गए वोटों की वजह से बजट भी पारित नहीं करवा पाई, तभी उनका अल्पमत में होना साबित हो चुका था।
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने के केंद्र के फैसले को न्यायोचित ठहराने वाली अपनी बहस का समापन करते हुए मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को एक पेनड्राइव भी सौंपी, जिसमें एक स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो मौजूद है, जिसमें हरीश रावत कथित रूप से विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिश कर रहे हैं।
वोटर सिर्फ पार्टी को नहीं, व्यक्ति को वोट देता है : कोर्ट
कोर्ट ने कहा, "जब एक वोटर वोट देता है, तो वह सिर्फ पार्टी के लिए नहीं, व्यक्ति के लिए भी वोट देता है... केंद्र को वोटर के निर्णय का सम्मान करना चाहिए..." इस पर मुकुल रोहतगी ने कहा, "जो काम हरीश रावत सरकार ने किया है, वह इस केस के दायरे में आता ही नहीं..."
अटॉर्नी जनरल का कहना था कि कोर्ट को सिर्फ 18 मार्च के घटनाक्रम तक सीमित रहना चाहिए, जब 70-सदस्यीय विधानसभा के 35 सदस्यों ने हरीश रावत के खिलाफ वोट दिया था।
इसके बाद अब कांग्रेस की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने बहस शुरू की है।
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