ग़ाज़ियाबाद ज़िले के कुड़िया गढ़ी गांव के निवासी मदन रोज़गार की आस में दर-दर भटक रहे हैं। उनके चारों लड़के बेरोज़गार हैं और महीनों से काम की तलाश कर रहे हैं।
एनडीटीवी से बातचीत में वह कहते हैं कि परिवार चलाने का खर्च बढ़ता जा रहा है और कमाई कम होती जा रही है। मदन जी कहते हैं, 'महात्मा गांधी रोज़गार योजना के तहत कुछ समय पहले काम मिला था। एक तालाब की खुदाई के लिए 20 दिन काम मिला। फिर अचानक बरसात के मौसम में काम रोक दिया गया। करीब दो हज़ार रुपये मिले, लेकिन इसके बाद पिछले कई महीनों से कोई काम नहीं मिला।'
मदन के मुताबिक, पास के गांवों में मनरेगा योजना के तहत कुछ काम हो रहा है, लेकिन उनके गांव में बिल्कुल भी नहीं। उनकी पत्नी कहती हैं, 'कुछ दिन पहले स्थानीय अधिकारी पास के गांव में आये थे जॉब कार्ड बनाने के लिए... लेकिन मुझे इसकी जानकारी देर से मिली इसलिए जॉब कार्ड नहीं बनवा सकी। हमें काम चाहिए जो हमें नहीं मिल पा रहा है।
एनडीटीवी ने जब कुड़िया गढ़ी गांव का दौरा किया तो पता चला कि मदन अकेले नहीं हैं जो काम की तलाश में भटकने को मजबूर हैं। इस गांव में हमें ऐसे कई लोग मिले जिनको मनरेगा तहत काम मांगने से भी नहीं मिला।
धरम सिंह कहते हैं कि उन्होंने काम मांगा लेकिन मिला नहीं। गांव के प्रधान ने कोई मदद नहीं की। उनके एक करीबी व्यक्ति को काम मिला लेकिन काम के एवज में पैसे आधे ही मिले।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ग़ाज़ियाबाद ज़िले का कुड़िया गढ़ी गांव दिल्ली-यूपी बार्डर से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर है। लेकिन राजधानी के इतने करीब होते हुए भी इस गांव में एनडीटीवी को कई लोग ऐसे भी मिले जिन्हें योजना लॉन्च होने के नौ साल बाद भी इसकी कोई जानकारी नहीं है।
दरअसल मनरेगा योजना की ख़स्ता हालत इस गांव तक ही सीमित नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल जनवरी तक मनरेगा के तहत देश में औसतन 34.84 दिन प्रति परिवार रोज़गार मिला है जो अब तक सबसे कम है। पिछले साल ये औसत 46 दिन प्रति परिवार थी।
समय-समय पर कई राज्य मनरेगा योजना के लिए फंड्स की कमी की शिकायत भी करते रहे हैं जिसकी वजह से ज़रूररतमंदों को काम कम मिल पा रहा है और भुगतान में भी देरी हो रही है। सवाल भ्रष्टाचार का भी है। पिछले नौ साल में देश के अलग-अलग राज्यों में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आ चुके हैं।
इस सबका नतीजा यह हुआ है कि मनरेगा को सही तरीके से ज़मीन पर लागू करने के लिए मौजा प्रशासनिक व्यवस्था बेहद कमजोर हो चुकी है, जिसकी वजह से ज़रूरतमंदों तक इसका फाया नहीं पहुंच पा रहा है। ग़ाज़ियाबाद ज़िले के कुड़िया गढ़ी गांव में रोज़गार के लिए तरसते लोग इन्हीं वजहों से मनरेगा योजना का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं।
This Article is From Feb 01, 2015
मनरेगा के नौ साल : 'रोज़गार योजना है, लेकिन सबको रोज़गार नहीं'
- Reported by: Himanshu Shekhar Mishra
- Edited by: Saad Bin Omer
- India
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फ़रवरी 02, 2015 00:02 am IST
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Published On फ़रवरी 01, 2015 21:24 pm IST
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Last Updated On फ़रवरी 02, 2015 00:02 am IST
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गाजियाबाद: