ओ. राजगोपाल ने केरल विधानसभा में बीजेपी का खाता खोला है।
तिरुवनंतपुरम.:
केरल से बीजेपी के अब तक के पहले विधायक ओ. राजगोपाल हैं। उन्होंने 15 बार मिली हार के बाद 86 वर्ष की उम्र में यहां अपना पहला चुनाव जीता है। पंचायत से लेकर लोकसभा तक के चुनाव लड़ रहे राजगोपाल अपने समर्थकों के बीच 'राजेतन' के नाम से जाने जाते हैं।
राजगोपाल ने NDTV से चर्चा में बताया, 'यह पहली बार नहीं है। अब्राहम लिंकन ने कई चुनाव महज हारने के लिए लड़े और आखिरकार वे अमेरिका के राष्ट्रपति बने। हम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि हमारे सामने एक लक्ष्य है।' उन्हें इस बार जीत कुछ आसानी से मिली। बकौल राजगोपाल, 'मैं थक गया हूं और चुनाव लड़ने की 'आदत' को छोड़ना चाहता था लेकिन मेरी पार्टी में मुझे चुनाव लड़ना जारी रखने को कहा।'
वर्ष 2014 के आम चुनाव में राजगोपाल ने कांग्रेस प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री रह चुके शशि थरूर को कड़ी टक्कर दी थी। इस चुनाव में हारने के बावजूद आखिरकार उनकी कोशिश रंग लाई और माकपा के कद्दावर प्रत्याशी और पूर्व विधायक वी. सिवनकुट्टी को शिकस्त देते हुए वे विधानसभा में जगह बनाने में सफल हो गए।
जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े राजगोपाल राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं। वे अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में मंत्री भी थे। लंबे सियासी करियर में में उनकी हाल की कामयाबी बेहद महत्वपूर्ण है। उनकी जीत के फलस्वरूप बीजेपी 140 सदस्यों वाली केरल विधानसभा में 'एंट्री' करने में सफल रही। केरल में आम तौर पर वाम दलों और कांग्रेस का प्रभुत्व रहा है। विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में बीजेपी-माकपा हिंसा को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल निकला है।राजगोपाल कहते हैं, 'मैं सीएम पद के लिए नामित पी. विजयन से भी मिलने गया था। राजनीतिक हिंसा सत्तारूढ़ पार्टी के लिए भी चिंता का विषय है और हमें मिलकर राज्य में शांति बनी रहने के लिए काम करना चाहिए।'
राजगोपाल की इस जीत के बावजूद विपक्षी उन्हें इस जीत का पूरा श्रेय देना नहीं चाहते। कांग्रेस के विधायक केसी जोसेफ कहते हैं, 'बीजेपी और माकपा मिले हुए हैं। जहां बीजेपी जीती है, माकपा का वोट शेयर भी उसके खाते में गया है।' माकपा महासचिव सीताराम केसरी ने कहा, 'बीजेपी ने पीएम और अपने अध्यक्ष की अगुवाई में सांप्रदायिक प्रचार अभियान चलाया और एक सीट के साथ केरल विधानसभा में प्रवेश करने में किसी तरह कामयाब हो गई।'
राजगोपाल ने NDTV से चर्चा में बताया, 'यह पहली बार नहीं है। अब्राहम लिंकन ने कई चुनाव महज हारने के लिए लड़े और आखिरकार वे अमेरिका के राष्ट्रपति बने। हम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि हमारे सामने एक लक्ष्य है।' उन्हें इस बार जीत कुछ आसानी से मिली। बकौल राजगोपाल, 'मैं थक गया हूं और चुनाव लड़ने की 'आदत' को छोड़ना चाहता था लेकिन मेरी पार्टी में मुझे चुनाव लड़ना जारी रखने को कहा।'
वर्ष 2014 के आम चुनाव में राजगोपाल ने कांग्रेस प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री रह चुके शशि थरूर को कड़ी टक्कर दी थी। इस चुनाव में हारने के बावजूद आखिरकार उनकी कोशिश रंग लाई और माकपा के कद्दावर प्रत्याशी और पूर्व विधायक वी. सिवनकुट्टी को शिकस्त देते हुए वे विधानसभा में जगह बनाने में सफल हो गए।
जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े राजगोपाल राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं। वे अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में मंत्री भी थे। लंबे सियासी करियर में में उनकी हाल की कामयाबी बेहद महत्वपूर्ण है। उनकी जीत के फलस्वरूप बीजेपी 140 सदस्यों वाली केरल विधानसभा में 'एंट्री' करने में सफल रही। केरल में आम तौर पर वाम दलों और कांग्रेस का प्रभुत्व रहा है। विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में बीजेपी-माकपा हिंसा को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल निकला है।राजगोपाल कहते हैं, 'मैं सीएम पद के लिए नामित पी. विजयन से भी मिलने गया था। राजनीतिक हिंसा सत्तारूढ़ पार्टी के लिए भी चिंता का विषय है और हमें मिलकर राज्य में शांति बनी रहने के लिए काम करना चाहिए।'
राजगोपाल की इस जीत के बावजूद विपक्षी उन्हें इस जीत का पूरा श्रेय देना नहीं चाहते। कांग्रेस के विधायक केसी जोसेफ कहते हैं, 'बीजेपी और माकपा मिले हुए हैं। जहां बीजेपी जीती है, माकपा का वोट शेयर भी उसके खाते में गया है।' माकपा महासचिव सीताराम केसरी ने कहा, 'बीजेपी ने पीएम और अपने अध्यक्ष की अगुवाई में सांप्रदायिक प्रचार अभियान चलाया और एक सीट के साथ केरल विधानसभा में प्रवेश करने में किसी तरह कामयाब हो गई।'
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