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This Article is From Apr 27, 2016

चुनावी ट्रस्टों ने राजनीतिक दलों को दिया करोड़ों का चंदा, एडीआर ने उठाए कई सवाल

चुनावी ट्रस्टों ने राजनीतिक दलों को दिया करोड़ों का चंदा, एडीआर ने उठाए कई सवाल
प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले छह चुनावी ट्रस्टों के ऊपर सवाल उठाया है। एडीआर इंडिया ने अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए बताया है कि देश के अंदर ऐसे छह चुनावी ट्रस्ट हैं, जो 2013 से पहले रजिस्टर हुए हैं और चुनावी ट्रस्टों के लिए 2013 में सीबीडीटी के द्वारा बनाए गए नियम का पालन नहीं कर रहे हैं। एडीआर इंडिया ने यह भी सवाल उठाया है कि ये चुनावी ट्रस्ट सिर्फ कर-माफ़ी के लिए बनाए गए हैं या काला धन को सफेद धन में बदलने के लिए बनाए गए हैं, यह कहना मुश्किल है।  

क्या है चुनावी ट्रस्ट : राजनीतिक दलों और कंपनियों के बीच लेन-देन को लेकर कई बार सवाल उठाए जाते हैं। राजनीतिक दलों और कंपनी के बीच चंदे के लेन-देन में पारदर्शिता लाने के लिए 2013 में सरकार ने कंपनियों के द्वारा चुनावी ट्रस्टों को बनाने की अनुमति दे दी थी। सीबीडीटी के द्वारा बनाए गए नियम के तहत यह बताया गया था कि जो भी कंपनी चुनावी ट्रस्ट बनाएगी वह अपने-अपने चुनावी ट्रस्ट और शेयर धारकों के योगदान के बारे में पूरी जानकारी चुनाव आयोग पास जमा कराएगी। इस नियम के तहत यह भी लिखा गया था कि इन ट्रस्टों को जितना भी चंदा मिलेगा, वह उसका 95 प्रतिशत राजनीतिक दलों को देंगे।  

2014 -15 में कैसे हुए राजनीतिक दल मालामाल : एडीआर ने जो रिपोर्ट पेश की है उसमें बताया गया है कि वर्ष 2014-15 में चुनावी ट्रस्टों ने 177.55 करोड़ चंदे के रूप में कमाए हैं और उनमें से 177.40 करोड़ अलग-अलग राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में दिया है। अलग-अलग कंपनियों से इन ट्रस्टों को पैसा मिला है। इन ट्रस्टों से सबसे ज्यादा चंदा 111.35 करोड़ बीजेपी को मिला है, कांग्रेस को 31.658 करोड़ फिर एनसीपी को 6.783 करोड़, बीजू जनता दल को 5.256 करोड़, आम आदमी पार्टी को 3 करोड़, इंडियन लोक दल को 5.005 करोड़ और अन्य दलों को कुल मिलाकर 14.348 करोड़ मिले हैं।   

एडीआर क्यों उठा रहा है सवाल : एडीआर का कहना है कि 2013 से पहले ऐसे छह चुनावी ट्रस्ट बने हैं, जो 2013 में सीबीडीटी के द्वारा बनाए गए नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनको यह लगता है कि उनका ट्रस्ट 2013 से पहले बना है और इन नियम को मानना कोई जरूरी नहीं है, लेकिन इन छह ट्रस्टों को चंदा मिलता रहता है और वे राजनीतिक दलों का चंदा देते रहते हैं। एडीआर का कहना है कि इन छह चुनावी ट्रस्टों ने 2004-05 और 2011-12 में राजनैतिक दलों को कुल मिलाकर 105 करोड़ का चंदा दिया था।
इन कंपनियों में से एक ऐसी कंपनी भी है, जो 2014 -15 में सात राजनैतिक दलों को अकेले 131.65 करोड़ चंदा दे चुकी है, लेकिन इन चुनावी ट्रस्टों ने कोई जानकारी नहीं दी है कि उन्हें किन-किन कंपनियों से चंदा मिला है।

एडीआर क्या मांग कर रहा है : एडीआर यह मांग कर रहा है कि 2013 से पहले ये जो छह ट्रस्ट बने हैं, उनको चंदा देने वाली कंपनी का नाम जाहिर करना चाहिए। लेन-देन में पारदर्शिता लाने के लिए इन कंपनियों को भी 2013 के नियम को पालन करना चाहिए और यह नियम उन पर भी लागू होना चाहिए। एडीआर का कहना है कि ज्यादा से ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए चुनावी ट्रस्टों मूल कंपनी या कंपनियों के नाम पर बनाना चाहिए। एडीआर यह भी मांग कर रहा है कि जो भी चुनावी ट्रस्ट चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश का पालन नहीं कर रहा है उस पर करवाई होनी चाहिए।

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