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This Article is From Dec 24, 2018

मध्‍यप्रदेश : कर्जमाफी की घोषणा के बाद अब तक दो किसानों ने की खुदकुशी, यूरिया का भी है संकट

किसान ने तीन लाख का लोन प्राइवेट बैंक से लिया था जबकि 1.5 लाख का कर्ज को-ऑपरेशन बैंक से लिया था

मध्यप्रदेश में 2013 से 2016 के बीच किसानों की खुदकुशी 21 की दर से बढ़ी

शाजापुर:

मध्य प्रदेश में नई सरकार ने किसानों के कर्ज माफ करने की दिशा में कदम तो उठा लिए हैं लेकिन प्रदेश में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. पिछले दो दिनों में दो किसानों ने कर्ज के दबाव में खुदकुशी कर ली. एक और परेशानी उन्हें खाए जा रही है वो है यूरिया की कमी. शाजापुर ज़िले के कालापीपल के रहने वाले 65 साल के प्रेम नारायण रघुवंशी ने 20 दिसंबर को ज़हर पी लिया, सोमवार को भोपाल के अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. घरवाले कह रहे हैं कि 10 एकड़ ज़मीन के मालिक रघुवंशी की पिछले साल ज्यादा बारिश ने सोयाबीन की फसल ख़राब की, कम बारिश से इस बार गेंहू बर्बाद हो गया. करीब 5 लाख का लोन था और बैंक के कर्मचारी कर्ज वापसी के लिये तगादा कर रहे थे. भोपाल के हमीदिया अस्पताल में पोस्टमॉर्टम के लिये पहुंचे उनके भांजे जगदीश रघुवंशी ने बताया गेंहू के लिये पानी नहीं था, बोरिंग करवाया 300 फीट उसमें भी पानी नहीं निकला, 45000 खर्च हुआ. जब हमने पूछा कि क्या उन्हें कर्ज़माफी के बारे में पता नहीं था तो जगदीश ने कहा पता था, गांव में बताया था लेकिन बैंक वाले फोन लगा रहे थे, घर भी आ रहे थे. जब मामा ने कहा, सरकार ने कहा कर्ज़ा तो माफ हो गया है लेकिन बैंक वालों ने कहा ऐसा कोई आदेश नहीं आया है.

मध्‍यप्रदेश में कर्ज माफी की योजना के दायरे में नहीं आने के कारण किसान ने की आत्महत्या

शनिवार को खंडवा ज़िले के अस्तरिया में एक आदिवासी किसान ने आत्महत्या कर ली थी. मृतक किसान के परिजनों का आरोप है कि सरकार ने कर्ज माफी का ऐलान किया लेकिन राज्य सरकार ने 31 मार्च 2018 तक का कर्जा माफ करने की घोषणा की, इसी तनाव में करीब 3 लाख के कर्ज में डूबे 45 साल के जुवान सिंह ने जान दे दी. जुवान के भाई गुलाब सिंह ने कहा, 'उन्होंने कर्जे से परेशान होकर आत्महत्या कर ली, मेरे भाई पर सरकारी बैंकों का जो कर्जा है, हम लगातार कर्ज़ा चुका रहे थे, मार्च में पलटी कर दिया था फिर लोन लिया था. लेकिन बाद में पता लगा कि पैसे दे देने पर कर्ज़ माफी नहीं मिलेगी, इसकी वजह से परेशान थे.' 

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देश में 2016 से कितने किसानों ने की आत्महत्या ? मोदी सरकार के पास नहीं हैं आंकड़े

मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के दो घंटे के अंदर ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कर्जमाफी के दस्तावेजों पर दस्तखत कर दिये, कहा गया कि 31 मार्च 2018 तक 2 लाख रुपये तक का कर्ज माफ होगा.

एक तरफ तारीख की टेंशन, दूसरी तरफ यूरिया को लेकर परेशानी. मध्यप्रदेश का किसान दो तरफा घिरा नज़र आ रहा है. सरकार ने कहा कि दिसंबर में यूरिया की मांग 3 लाख 70 हज़ार मीट्रिक टन थी, आपूर्ति हुई 1 लाख 65 हज़ार मीट्रिक टन. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा, 'उनकी दिल्ली की दौड़ काम आई, केन्द्र ने यूरिया का कोटा रिलीज किया.' अब पार्टी कह रही है कि यूरिया की कालाबाज़ारी रोकना उनकी प्राथमिकता होगा.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और चाचौड़ा से विधायक लक्ष्मण सिंह ने कहा, 'यूरिया की नीति गलत थी इसलिये हर साल संकट खड़ा होता था, 3-3 विभाग मिलकर ये तय करते थे कितना यूरिया कहां जाएगा, इसमें भ्रष्ट्राचार होता था. हमारा ये सुझाव है कि कंपनियां जो बनाती हैं उनके डायरेक्ट आउटलेट हों. डीलर के पास सीधा यूरिया पहुंचे, जो डीलर किसानों को सप्लाई नहीं दे रहा उसके लिये 6 महीने सज़ा का प्रावधान हो.

हालांकि बीजेपी को लगता है किसान सरकार की प्राथमिकता नहीं, अधिकारी लापरवाही बरत रहे हैं. बीजेपी प्रवक्ता राहुल कोठारी ने कहा, 'यूरिया के मामले में उनके अधिकारी पोर्टल में जानकारी नहीं भर रहे जिसकी वजह से यूरिया आने में देरी हो रही है. किसानों में कर्जे के मामले में पात्रता के नियम तय नहीं हैं निश्चित रूप से किसानों के सामने अंधेरा है. कमलनाथ बदले की राजनीति करने में लगे हैं किसानों पर उनका ध्यान नहीं है.

माना जा रहा है कि राज्य सरकार की कर्जमाफी योजना से लगभग 34 लाख किसानों को फायदा होगा लेकिन इससे पहले 1,87000 करोड़ के कर्ज में डूबी राज्य सरकार को योजना के लिये लगभग 50,000 करोड़ जुटाने होंगे. ऊपर से यूरिया की उपलब्धता सुनिश्चित कराने जैसे कदम भी उठाने होंगे.

Video: मध्य प्रदेश के खांडवा में किसान ने की आत्महत्या

मध्यप्रदेश में 2013 से 2016 के बीच किसानों की खुदकुशी 21 की दर से बढ़ी, हालांकि केन्द्र सरकार ने लोकसभा में दिये जवाब में हाल ही में कहा कि इसके बाद के आंकड़े उसके पास उपलब्ध नहीं हैं. 5 दफे कृषि कर्मण अवॉर्ड जीतकर रिकॉर्ड बनाने वाले राज्य के नये हुक्मरानों को भी अब सिर्फ उत्पादन नहीं उत्पादक पर भी ध्यान देना होगा ताकि इन आंकड़ों में कमी आए.

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