सियाचिन ग्लेशियर में एक किलोमीटर से भी ज़्यादा चौड़ाई वाली बर्फ की दीवार के नीचे लगभग एक हफ्ते तक दबे रहने के बाद भी एक लांस नायक के ज़िन्दा निकल आने की ख़बर टेलीफोन पर सुनकर भारतीय सेना के एक जनरल अपनी आंखों से बहते आंसुओं को नहीं रोक पाए...
युद्धों, कठिनाइयों और शहादतों का 30 साल का लंबा तजुर्बा रखने वाले सख्तजान जनरल साहब के लिए भी ऐसी ख़बर सुनने के बाद अपने स्वाभाविक 'साहसी' स्वरूप को बरकरार रखना मुश्किल हो गया होगा... तेज़ी से अपनी आंखों में भर आए आंसुओं को चेहरे से हटाते हुए उन्होंने हमेशा की तरह 'जॉली गुड' कहा तो सही, लेकिन उनके भर्राए हुए गले ने उनके भीतर उमड़ रही भावनाओं की चुगली कर दी...
छह दिन बाद ज़िन्दा निकाले गए लांस नायक
बर्फ का वह तूफान 3 फरवरी को आया था, जिसके दौरान बने बर्फ के पहाड़ के नीचे से लांस नायक हनुमंतप्पा कोप्पड़ छह दिन बाद ज़िन्दा निकाले गए, जो फाइबर से बनी टेंटनुमा जगह में बेहोश पड़े मिले... हनुमंतप्पा के नौ साथियों के पार्थिव शरीर भी सियाचिन ग्लेशियर में 19,600 फुट की ऊंचाई पर बनी सोनम पोस्ट में बर्फ के नीचे दबे लांस नायक के पास ही मिले थे... फिलहाल हनुमंतप्पा दिल्ली में सेना के अस्पताल में कोमा में है...
जनरल साहब ने बताया, "हमसे 4 फरवरी को रेडियो पर संपर्क किया गया, और बर्फ में फंसे फौजियों में से एक ने बात की, और हम जान गए थे कि कम से कम एक फौजी एयर बबल (हवा का बुलबुला) के भीतर है..." इसके बाद बचाव कार्य और ज़्यादा तेज़ कर दिया गया था... उन्होंने बताया, "वहां मौजूद कंपनी कमांडर पांच दिन से एक मिनट के लिए भी वहां से नहीं हटा... बचाव में लगा एक और साथी सिर्फ कुछ चॉकलेट खाकर काम करता रहा, क्योंकि अगर भरपेट खाना खा लेता, तो वह तेज़ी से काम नहीं कर पाता..."
5 फरवरी को रोकना पड़ा था बचाव अभियान
हमारे फौजी अधिकारियों को बेहद अनिच्छा से 5 फरवरी को बचाव अभियान रोक देना पड़ा, क्योंकि बर्फ का तूफान फिर आ गया था... दिमाग कहता था कि इन हालात में इतने समय तक किसी का भी ज़िन्दा रह पाना लगभग नामुमकिन है, लेकिन जीत दिल की हुई... सो, वे खोदते रहे, खोदते रहे, और बर्फ के बड़े-बड़े चट्टाननुमा टुकड़ों को धराशायी कर दिया...
उत्तरी ग्लेशियर में भारतीय सेना की सबसे महत्वपूर्ण पोस्टों में से एक सोनम पोस्ट के 10 फौजी 3 फरवरी को रूटीन पैट्रोल पर गए, और लौटकर दोपहर को लगभग 1:30 बजे उन्होंने रिपोर्ट किया... दोपहर बाद 3:30 बजे उन्होंने रेडियो के जरिये सब कुछ ठीक होने की जानकारी भी दी... लेकिन शाम को 5:30 बजे सोनम पोस्ट नामक की कोई पोस्ट बची ही नहीं थी... वहां थी तो सिर्फ 1,000 फुट चौड़ी, 800 फुट लंबी और 50 फुट ऊंची बर्फ की दीवार...
थलसेना, वायुसेना ने भरीं लगभग 300 उड़ानें
बर्फ के नीचे दब गए इन फौजियों को बचाने की कोशिश में भारतीय सेना तथा वायुसेना ने लगभग 300 बार उड़ान भरी, और बचाव दल के फौजियों के अलावा बर्फ काटने की मशीनों, थरमल इमेजरों और डॉपलर राडारों जैसी मशीनों को खोलकर ज़रूरत की जगहों पर पहुंचाते रहे, जिन्हें 19,600 फुट की ऊंचाई पर फिर से जोड़कर इस्तेमाल में लाया गया, और बर्फ को काटा जाता रहा...
युद्धों, कठिनाइयों और शहादतों का 30 साल का लंबा तजुर्बा रखने वाले सख्तजान जनरल साहब के लिए भी ऐसी ख़बर सुनने के बाद अपने स्वाभाविक 'साहसी' स्वरूप को बरकरार रखना मुश्किल हो गया होगा... तेज़ी से अपनी आंखों में भर आए आंसुओं को चेहरे से हटाते हुए उन्होंने हमेशा की तरह 'जॉली गुड' कहा तो सही, लेकिन उनके भर्राए हुए गले ने उनके भीतर उमड़ रही भावनाओं की चुगली कर दी...
छह दिन बाद ज़िन्दा निकाले गए लांस नायक
बर्फ का वह तूफान 3 फरवरी को आया था, जिसके दौरान बने बर्फ के पहाड़ के नीचे से लांस नायक हनुमंतप्पा कोप्पड़ छह दिन बाद ज़िन्दा निकाले गए, जो फाइबर से बनी टेंटनुमा जगह में बेहोश पड़े मिले... हनुमंतप्पा के नौ साथियों के पार्थिव शरीर भी सियाचिन ग्लेशियर में 19,600 फुट की ऊंचाई पर बनी सोनम पोस्ट में बर्फ के नीचे दबे लांस नायक के पास ही मिले थे... फिलहाल हनुमंतप्पा दिल्ली में सेना के अस्पताल में कोमा में है...
जनरल साहब ने बताया, "हमसे 4 फरवरी को रेडियो पर संपर्क किया गया, और बर्फ में फंसे फौजियों में से एक ने बात की, और हम जान गए थे कि कम से कम एक फौजी एयर बबल (हवा का बुलबुला) के भीतर है..." इसके बाद बचाव कार्य और ज़्यादा तेज़ कर दिया गया था... उन्होंने बताया, "वहां मौजूद कंपनी कमांडर पांच दिन से एक मिनट के लिए भी वहां से नहीं हटा... बचाव में लगा एक और साथी सिर्फ कुछ चॉकलेट खाकर काम करता रहा, क्योंकि अगर भरपेट खाना खा लेता, तो वह तेज़ी से काम नहीं कर पाता..."
5 फरवरी को रोकना पड़ा था बचाव अभियान
हमारे फौजी अधिकारियों को बेहद अनिच्छा से 5 फरवरी को बचाव अभियान रोक देना पड़ा, क्योंकि बर्फ का तूफान फिर आ गया था... दिमाग कहता था कि इन हालात में इतने समय तक किसी का भी ज़िन्दा रह पाना लगभग नामुमकिन है, लेकिन जीत दिल की हुई... सो, वे खोदते रहे, खोदते रहे, और बर्फ के बड़े-बड़े चट्टाननुमा टुकड़ों को धराशायी कर दिया...
उत्तरी ग्लेशियर में भारतीय सेना की सबसे महत्वपूर्ण पोस्टों में से एक सोनम पोस्ट के 10 फौजी 3 फरवरी को रूटीन पैट्रोल पर गए, और लौटकर दोपहर को लगभग 1:30 बजे उन्होंने रिपोर्ट किया... दोपहर बाद 3:30 बजे उन्होंने रेडियो के जरिये सब कुछ ठीक होने की जानकारी भी दी... लेकिन शाम को 5:30 बजे सोनम पोस्ट नामक की कोई पोस्ट बची ही नहीं थी... वहां थी तो सिर्फ 1,000 फुट चौड़ी, 800 फुट लंबी और 50 फुट ऊंची बर्फ की दीवार...
थलसेना, वायुसेना ने भरीं लगभग 300 उड़ानें
बर्फ के नीचे दब गए इन फौजियों को बचाने की कोशिश में भारतीय सेना तथा वायुसेना ने लगभग 300 बार उड़ान भरी, और बचाव दल के फौजियों के अलावा बर्फ काटने की मशीनों, थरमल इमेजरों और डॉपलर राडारों जैसी मशीनों को खोलकर ज़रूरत की जगहों पर पहुंचाते रहे, जिन्हें 19,600 फुट की ऊंचाई पर फिर से जोड़कर इस्तेमाल में लाया गया, और बर्फ को काटा जाता रहा...
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