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This Article is From Sep 28, 2016

दक्षिण कश्‍मीर से 85 लड़के घर से गायब, आतंकी संगठनों में शामिल होने की आशंका

दक्षिण कश्‍मीर से 85 लड़के घर से गायब, आतंकी संगठनों में शामिल होने की आशंका
फाइल फोटो
Quick Take
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सुरक्षा बलों के मुताबिक हिंसा के दौर में दक्षिण कश्मीर ही सबसे अशांत रहा
CRPF के CO ने बताया, 'ईद के बाद से हुर्रियत की कॉल का असर कम हुआ है'
सेना से कहा गया है कि वो कैंपों से निकल कर गांवों का भी मुआयना करे
श्रीनगर: उरी के आतंकी हमले के बाद जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा जाल में कई बदलाव किए गए हैं. इनका एक असर ये हुआ है कि हिंसा में कमी दिख रही है. लेकिन सरकार की चिंता दक्षिण कश्मीर को लेकर है. वहां बीते तीन महीनों में करीब 85 लड़के घर से गायब हो चुके हैं. पुलवामा, कुलगांव, शोपियां, अनंतनाग - ये तमाम इलाक़े बीते तीन महीने सुलगते रहे. अब हिंसा हुई है तो ये बात सामने आ रही है कि इलाके के 85 लड़कों का कुछ अता-पता नहीं है. अंदेशा ये है कि वो आतंकी दस्तों का हिस्सा न बन गए हों. सुरक्षा बलों के मुताबिक हिंसा के दौर में दक्षिण कश्मीर ही सबसे अशांत रहा.

हिंसा के ग्राफ़ में दक्षिण कश्मीर सबसे ऊपर - गृह मंत्रालय की रिपोर्ट
दक्षिण कश्मीर के शोपियां, अनंतनाग, पुलवामा और कुलगाम में हिंसा के 675 मामले सामने आए और 49 लोगों की मौत हुई. जबकि मध्य कश्मीर - यानी श्रीनगर, बडगांव और गांदरबल में 663 मामले सामने आए और 11 लोगों की मौत हुई. सबसे कम हिंसा उत्तरी कश्मीर में हुई, जहां बांदीपोरा और कुपवाड़ा जैसे इलाके हैं. यहां 660 मामले सामने आए, 7 लोगों की मौत की ख़बर आई.

सीआरपीएफ़ के सीओ राजेश यादव ने एनडीटीवी इंडिया को बताया, 'ईद के बाद से हुर्रियत की कॉल का असर कम हुआ है. ट्रैफ़िक चल रहा है लेकिन अभी दुकानें नहीं खुली हैं.' जबकि उत्तरी कश्मीर का ये हिस्सा नियंत्रण रेखा से लगा हुआ है और सबसे ज़्यादा घुसपैठ इसी इलाक़े से होती है.

सेना को निभानी होगी ज़्यादा सक्रिय भूमिका
सरकार चाहती है कि सेना कश्मीर में अमन के रास्ते में कहीं ज़्यादा सक्रिय भूमिका अदा करे. एनडीटीवी को मिली जानकारी के मुताबिक सेना से कहा गया है कि वो कैंपों से निकल कर गांवों का भी मुआयना करे. इन इलाक़ों में वो अपनी पैठ मज़बूत करे क्योंकि इन इलाक़ों में लगातार कट्टरता बढ़ रही है. यही नहीं, ये लग रहा है कि सीमा पार से यहां सबकुछ चल रहा है. सुरक्षा एजेंसियों को अंदेशा है कि यहां की कमान पाकिस्तान से संचालित न होने लगे.

कट्टरता को क़ाबू करने के लिए ली जा रही है धार्मिक संगठनों की मदद
सुरक्षा एजेंसियों की कोशिश स्थानीय सामाजिक-धार्मिक संगठनों और मुख्यधारा में लौटे नौजवानों को अपने साथ जोड़ने की है ताकि ऐसे हालात पर का़बू पाया जा सके. भारत की असली चुनौती दरअसल यही है. कश्मीर के आम लोगों को ये भरोसा दिलाना कि वो सुरक्षित हैं और अगर वो हुर्रियत के बंद के कैलेंडर की अनदेखी भी करते हैं तो उनको कोई ख़तरा नहीं होगा.

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