वित्तमंत्रालय में इन दिनों बजट की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं.
नई दिल्ली:
सातवां वेतन आयोग पिछले साल 1 जनवरी से लागू हो गया है. नरेंद्र मोदी सरकार ने इस संबंध में एक फैसला लेकर अपने अधीन काम करने वाले 47 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को वेतन वृद्धि का तोहफा दिया. सरकार ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए करीब 23.55 प्रतिशत की वेतन वृद्धि की घोषणा की थी. सातवें वेतन आयोग का लाभ 53 लाख केंद्रीय पेंशनरों को मिला. यह अलग बात है कि केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों के अलावा इस वेतन आयोग का असर देश के आम नागिरकों पर भी हुआ.
केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कई बार सार्वजनिक रूप से कहा कि करीब एक करोड़ केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों की बढ़ी हुई सैलरी देने के लिए सरकार को और पैसा चाहिए. सरकार के सामने वित्तीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी के 3.5 प्रतिशत रखने की चुनौती है. बताया जा रहा है कि सरकार पूरी तरह से आश्वस्त है कि वह वित्तीय घाटे को 2017-18 में 3 प्रतिशत तक रखने में कामयाब होगी.
यह अकसर देखा गया है कि सरकारी विभाग बजट आने से पहले अपने खजाने पड़े रुपये को खर्च करने के लिए तमाम परियोजनाएं स्वीकृत कर उसे लागू करते हैं, ताकि अगले बजट में पैसे में ज्यादा की दावेदारी हो. यह बाद अलग है कि कई विभाग इसके बावजूद अपने पैसे खर्च नहीं कर पाते हैं. वहीं अब सरकार ने अपने सभी विभागों को साफ कहा है कि वे इस बार यह ध्यान रखें कि खजाने में पड़े सभी पैसों को खर्च की होड़ न मचाएं. मनरेगा को छोड़कर लगभग बाकी सभी योजनाओं को क्रियांवित करने वाली एजेंसियों को इस प्रकार का आदेश वित्तमंत्रालय की ओर से दिया गया है.
एनडीटीवी संवाददाता हिमांशु शेखर मिश्र ने जब वित्तमंत्रालय सूत्रों से बात की तब उनका कहना था कि एक प्रशासनिक नियम सा है जो हर बार यह होता है. यह इसलिए किया जाता है ताकि सरकारी महकमे में फंड का दुरुपयोग न हो.
जानकारी के लिए बता दें कि सातवें आयोग आयोग की रिपोर्ट को लागू करने से सरकार पर 1.02 लाख करोड़ का सालाना खर्च बढ़ा है. वर्तमान वित्तीय वर्ष में वेतन और पेंशन के मद में हुई बढ़ोतरी के चलते सरकार का खर्चा करीब 10 प्रतिशत बढ़ा है. यह करीब 2,58,000 करोड़ रुपये है.
केंद्र के सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट का असर राज्यों में सरकारों के अधीन काम करने वालों सभी कर्मचारियों पर पड़ा. हर राज्य सरकार पर वेतन वृद्धि के लिए आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का दबाव रहा. अभी तक कुछ राज्य ही इसे लागू कर पाए हैं. जहां पंजाब में अभी छठा वेतन आयोग लागू किया गया है वहीं, चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव सरकार ने चुनावों से ठीक पहले इसे लागू करने की घोषणा कर सरकारी कर्मचारियों को लुभाया है.
जानकारों का कहना है कि करीब तीन करोड़ लोग इस सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट से सीधे तौर पर प्रभावित होंगे. माना जा रहा था कि बढ़े वेतन से लोगों को हाथों में पैसे की ताकत बढ़ेगी और इससे ऑटोमोबाइल क्षेत्र में तेजी आएगी. यह सच भी साबित हुआ सितंबर माह में कारों की बिक्री में इजाफा दर्ज हुआ है और उसके बाद से यह लगातार जारी है.
इसके अलावा कंज्यूमर गुड्स की खरीदारी के भी बढ़ने के आसार थे जो अर्थव्यवस्था में तेजी का एक प्रमाण रहा. वेतन आयोग लागू होने से शेयर बाजार में भी तेजी देखी गई और निवेश बढ़ा है. यही वजह रही कि ऑटो और होम एप्लाइएंस बनाने वाली कंपनियों के शेयर ऊपर चढ़ गए हैं.
कुछ जानकारों की राय में सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट से महंगाई दर बढ़ने की भी संभावना थी, यह कुछ बढ़ी भी थी लेकिन नोटबंदी ने इसका पूरा असर खत्म कर दिया. जानकारों का कहना है कि नोटबंदी की वजह से अर्थव्यवस्था में आई तेजी कम हो गई. लेकिन, केंद्र सरकार का कहना है कि इस नोटबंदी का असर अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक होगा. कुछ दिनों में इसके परिणाम देखने को मिलेंगे.
आर्थिक मामलों के जानकारों की राय में आयोग की रिपोर्ट में जिस तरह आवासीय भत्ता को बढ़ाने की बात कही गई है उससे बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों तक में किराए में वृद्धि होना तय है. पिछले वेतन आयोग की रिपोर्ट के बाद ऐसा होता रहा है. जानकारी के लिए बता दें कि सरकार ने भले ही इस आयोग की रिपोर्ट को काफी हद तक लागू कर दिया है, लेकिन कर्मचारियों के विरोध के चलते भत्तों को लेकर असमंजस बना हुआ है.
सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में मकान भाड़ा भत्ता यानी एचआरए पर भी कुछ बदलाव के सुझाव दिए गए हैं. क्योंकि मूल वेतन को बढ़ाकर संशोधित किया गया है, इसलिए आयोग ने सिफारिश की है कि वर्ग ‘एक्स’, ‘वाई’ और ‘जेड’ शहरों के लिए नये मूल वेतन के संबंध में एचआरए क्रमश: 24 प्रतिशत,16 प्रतिशत और 08 प्रतिशत की दर से देय होगा. आयोग ने यह सिफारिश भी की है कि जब महंगाई भत्ता 50 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा, तब एचआरए की संशोधित दर क्रमश: 27 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 09 प्रतिशत होगी.
उल्लेखनीय है कि नोटबंदी की वजह से अर्थव्यवस्था में कुछ मंदी आई है, लेकिन अब बैंकों में नोटों की भरमार है और वह ब्याज दरों में कटौती कर रहे हैं जिससे अर्थव्यवस्था में तेजी आई. बैंकों ने होमलोन के साथ-साथ ऑटो लोन में भी कमी की है. इससे बाजार में तेजी आना शुरू हो गई है.
वैसे बैंकों के मैनेजरों की राय है कि वेतन आयोग की रिपोर्ट के लागू होने के बाद रीयल एस्टेट सेक्टर में तेजी आ रही थी, नोटबंदी ने इस सेक्टर काफी आई तेजी को प्रभावित किया है. अकसर यह देखा गया है कि सरकारी कर्मचारी वेतन में वृद्धि पर सर्वाधिक निवेश रीयल एस्टेट सेक्टर में करते हैं.
कुछ अर्थशास्त्रियों की राय में इस वेतन आयोग लागू होने का असर सेवा क्षेत्र में भी आएगा. लोग बाहर खाने और घूमने पर कुछ व्यय बढ़ाएंगे. साथ ही यह भी माना जा रहा था कि स्कूलों की फीस भी बढ़ जाएगी. दिल्ली के कई स्कूलों ने फीस वृद्धि भी की है.
आर्थिक मामलों के कुछ जानकार यह मानते हैं कि वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने पर देश की अर्थव्यवस्था में तेजी आई है और इसका सीधा असर जीडीपी पर भी पड़ेगा. नोटबंदी के पक्षकारों का भी कहना है कि इसका असर देश की जीडीपी को बढ़ाएगा. उधर, अंतरराष्ट्रिय रेटिंग एजेंसियों ने भारत की प्रगति पर संशय प्रकट किया है.
केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कई बार सार्वजनिक रूप से कहा कि करीब एक करोड़ केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों की बढ़ी हुई सैलरी देने के लिए सरकार को और पैसा चाहिए. सरकार के सामने वित्तीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी के 3.5 प्रतिशत रखने की चुनौती है. बताया जा रहा है कि सरकार पूरी तरह से आश्वस्त है कि वह वित्तीय घाटे को 2017-18 में 3 प्रतिशत तक रखने में कामयाब होगी.
यह अकसर देखा गया है कि सरकारी विभाग बजट आने से पहले अपने खजाने पड़े रुपये को खर्च करने के लिए तमाम परियोजनाएं स्वीकृत कर उसे लागू करते हैं, ताकि अगले बजट में पैसे में ज्यादा की दावेदारी हो. यह बाद अलग है कि कई विभाग इसके बावजूद अपने पैसे खर्च नहीं कर पाते हैं. वहीं अब सरकार ने अपने सभी विभागों को साफ कहा है कि वे इस बार यह ध्यान रखें कि खजाने में पड़े सभी पैसों को खर्च की होड़ न मचाएं. मनरेगा को छोड़कर लगभग बाकी सभी योजनाओं को क्रियांवित करने वाली एजेंसियों को इस प्रकार का आदेश वित्तमंत्रालय की ओर से दिया गया है.
एनडीटीवी संवाददाता हिमांशु शेखर मिश्र ने जब वित्तमंत्रालय सूत्रों से बात की तब उनका कहना था कि एक प्रशासनिक नियम सा है जो हर बार यह होता है. यह इसलिए किया जाता है ताकि सरकारी महकमे में फंड का दुरुपयोग न हो.
जानकारी के लिए बता दें कि सातवें आयोग आयोग की रिपोर्ट को लागू करने से सरकार पर 1.02 लाख करोड़ का सालाना खर्च बढ़ा है. वर्तमान वित्तीय वर्ष में वेतन और पेंशन के मद में हुई बढ़ोतरी के चलते सरकार का खर्चा करीब 10 प्रतिशत बढ़ा है. यह करीब 2,58,000 करोड़ रुपये है.
केंद्र के सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट का असर राज्यों में सरकारों के अधीन काम करने वालों सभी कर्मचारियों पर पड़ा. हर राज्य सरकार पर वेतन वृद्धि के लिए आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का दबाव रहा. अभी तक कुछ राज्य ही इसे लागू कर पाए हैं. जहां पंजाब में अभी छठा वेतन आयोग लागू किया गया है वहीं, चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव सरकार ने चुनावों से ठीक पहले इसे लागू करने की घोषणा कर सरकारी कर्मचारियों को लुभाया है.
जानकारों का कहना है कि करीब तीन करोड़ लोग इस सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट से सीधे तौर पर प्रभावित होंगे. माना जा रहा था कि बढ़े वेतन से लोगों को हाथों में पैसे की ताकत बढ़ेगी और इससे ऑटोमोबाइल क्षेत्र में तेजी आएगी. यह सच भी साबित हुआ सितंबर माह में कारों की बिक्री में इजाफा दर्ज हुआ है और उसके बाद से यह लगातार जारी है.
इसके अलावा कंज्यूमर गुड्स की खरीदारी के भी बढ़ने के आसार थे जो अर्थव्यवस्था में तेजी का एक प्रमाण रहा. वेतन आयोग लागू होने से शेयर बाजार में भी तेजी देखी गई और निवेश बढ़ा है. यही वजह रही कि ऑटो और होम एप्लाइएंस बनाने वाली कंपनियों के शेयर ऊपर चढ़ गए हैं.
कुछ जानकारों की राय में सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट से महंगाई दर बढ़ने की भी संभावना थी, यह कुछ बढ़ी भी थी लेकिन नोटबंदी ने इसका पूरा असर खत्म कर दिया. जानकारों का कहना है कि नोटबंदी की वजह से अर्थव्यवस्था में आई तेजी कम हो गई. लेकिन, केंद्र सरकार का कहना है कि इस नोटबंदी का असर अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक होगा. कुछ दिनों में इसके परिणाम देखने को मिलेंगे.
आर्थिक मामलों के जानकारों की राय में आयोग की रिपोर्ट में जिस तरह आवासीय भत्ता को बढ़ाने की बात कही गई है उससे बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों तक में किराए में वृद्धि होना तय है. पिछले वेतन आयोग की रिपोर्ट के बाद ऐसा होता रहा है. जानकारी के लिए बता दें कि सरकार ने भले ही इस आयोग की रिपोर्ट को काफी हद तक लागू कर दिया है, लेकिन कर्मचारियों के विरोध के चलते भत्तों को लेकर असमंजस बना हुआ है.
सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में मकान भाड़ा भत्ता यानी एचआरए पर भी कुछ बदलाव के सुझाव दिए गए हैं. क्योंकि मूल वेतन को बढ़ाकर संशोधित किया गया है, इसलिए आयोग ने सिफारिश की है कि वर्ग ‘एक्स’, ‘वाई’ और ‘जेड’ शहरों के लिए नये मूल वेतन के संबंध में एचआरए क्रमश: 24 प्रतिशत,16 प्रतिशत और 08 प्रतिशत की दर से देय होगा. आयोग ने यह सिफारिश भी की है कि जब महंगाई भत्ता 50 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा, तब एचआरए की संशोधित दर क्रमश: 27 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 09 प्रतिशत होगी.
उल्लेखनीय है कि नोटबंदी की वजह से अर्थव्यवस्था में कुछ मंदी आई है, लेकिन अब बैंकों में नोटों की भरमार है और वह ब्याज दरों में कटौती कर रहे हैं जिससे अर्थव्यवस्था में तेजी आई. बैंकों ने होमलोन के साथ-साथ ऑटो लोन में भी कमी की है. इससे बाजार में तेजी आना शुरू हो गई है.
वैसे बैंकों के मैनेजरों की राय है कि वेतन आयोग की रिपोर्ट के लागू होने के बाद रीयल एस्टेट सेक्टर में तेजी आ रही थी, नोटबंदी ने इस सेक्टर काफी आई तेजी को प्रभावित किया है. अकसर यह देखा गया है कि सरकारी कर्मचारी वेतन में वृद्धि पर सर्वाधिक निवेश रीयल एस्टेट सेक्टर में करते हैं.
कुछ अर्थशास्त्रियों की राय में इस वेतन आयोग लागू होने का असर सेवा क्षेत्र में भी आएगा. लोग बाहर खाने और घूमने पर कुछ व्यय बढ़ाएंगे. साथ ही यह भी माना जा रहा था कि स्कूलों की फीस भी बढ़ जाएगी. दिल्ली के कई स्कूलों ने फीस वृद्धि भी की है.
आर्थिक मामलों के कुछ जानकार यह मानते हैं कि वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने पर देश की अर्थव्यवस्था में तेजी आई है और इसका सीधा असर जीडीपी पर भी पड़ेगा. नोटबंदी के पक्षकारों का भी कहना है कि इसका असर देश की जीडीपी को बढ़ाएगा. उधर, अंतरराष्ट्रिय रेटिंग एजेंसियों ने भारत की प्रगति पर संशय प्रकट किया है.
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