लोकसभा चुनाव 2019 में उपेंद्र कुशवाहा को लेकर अटकलें तेज
नई दिल्ली:
बिहार एनडीए में लोकसभा चुनाव 2019 से पहले ही बीजेपी, नीतीश कुमार और रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के बीच सीटों को लेकर खींचतान का दौर जारी है. हालांकि, गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी ने सीटों के बंटवारे को लेकर एक फॉर्मूला पेशकर बिहार में एनडीए के सहयोगियों के बीच सीटों की तस्वीर को साफ करने की कोशिश की. बीजेपी ने जो फॉर्मूला इजात किया है, उसके मुताबिक वह भी कॉम्प्रोमाइज की स्थिति में ही दिख रही है. कारण कि बीजेपी के फॉर्मूले के मुताबिक, बीजेपी 20 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है, जबकि बीजेपी के पास पहले से ही बिहार से बीजेपी के 22 सांसद हैं. बीजेपी का यह समझौता नाराज चल रही जनता दल यूनाइटेड के साथ गठबंधन को बनाए रखने को लेकर है. बीजेपी नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को लोकसभा चुनाव में बिहार से 12 लोकसभा सीटें देने के फॉर्मूले पर विचार कर रही है. बीते कुछ समय से रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के बयानों और उनके हाव-भाव से ऐसा लग रहा है कि बीजेपी का यह फॉर्मूला उन्हें रास नहीं आने वाला है. क्योंकि बीजेपी के इस फॉर्मूले के मुताबिक, रालोसपा को 2 या 3 से अधिक सीटें मिलती नहीं दिख रही है.
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दरअसल, गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बिहार में एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर एक फॉर्मूला सुझाया. जिसके तहत यह बात सामने आई कि बीजेपी खुद 20 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है और जदयू को 12+1 सीटें दे सकती है. जिनमें से एक सीट यूपी या बिहार में देने की बात है. गौरतलब है कि जदयू के पास अभी 2 लोकसभा सांसद हैं. वहीं राम विलास पासवान की पार्टी एलजेपी के पास फिलहाल 6 सांसद हैं और 2014 के लोकसभा चुनाव में एलजेपी ने 7 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन इस बार बिहार में एनडीए के सीटों के बंटवारे में एलजेपी की सीटें घट सकती हैं. बताया तो यह भी जा रहा है कि बीजेपी एलजेपी को इस बार सिर्फ 5 सीटें देने पर विचार कर रही है.
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मगर सीटों के बंटवारे के इस फॉर्मूले को देखें तो राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा को महज दो से तीन सीटें मिलती दिख रही हैं. पिछले कुछ समय से जिस तरह से बिहार में नीतीश कुमार से अधिका जनाधार होने का दावा उनकी पार्टी करती रही है और जिस तरह से उन्हें बिहार में सीएम फेस के तौर पर उनकी पार्टी आवाज मुखर करती रही है, उससे यह नहीं लगता कि उपेंद्र कुशवाहा आसानी से दो-तीन सीटों पर मान जाएंगे. दरअसल, भारतीय जनता पार्टी बिहार एनडीए को एकजुट रखने की काफी समय से कोशिश में लगी हुई है. कभी जदयू सीटों को लेकर नाराज दिखने लगती है, तो कभी उपेंद्र कुशवाहा के रंग बदले नजर आते हैं. खबर ऐसी भी है कि एनडीए में उपेंद्र कुशवाहा पांच सीटों से नीचे मानने वाले नहीं हैं.
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दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा के लिए दोनों हाथ में लड्डू है. रालोसपा अभी एनडीए का हिस्सा है ही, वहीं लालू यादव की पार्टी राजद का दरवाजा भी उनके लिए खुला है. राजद नेता तेजस्वी यादव भी कई मौकों पर कह चुके हैं कि उपेंद्र कुशवाहा के लिए उनकी पार्टी का दरवाजा खुला है. तेजस्वी यादव बार-बार परोक्ष रूप से उपेंद्र कुशवाहा को राजद के साथ आने का न्योता भी दे चुके हैं. ऐसे कई मौके भी आए हैं, जब ऐसा लगा है कि लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में बड़ा फेरबदल देखने को मिलेगा और पार्टियां इधर से उधर भी हो सकती हैं. बीते दिनों पटना में एक कार्यक्रम में के दौरान उपेंद्र कुशवाहा ने कहा, 'यदुवंशी का दूध, और कुशवंशी का चावल मिल जाये तो खीर बढ़िया होगी'. उसके बाद यह कायास लगाए गये कि उपेंद्र कुशवाहा का इशारा राजद के साथ जाने पर है. हालांकि, उन्होंने इस बयान पर मचे सियासी घमासान के तुरंत बाद सफाई दी कि उन्होंने सामाजिक एकता की बात की थी, इसे किसी समुदाय विशेष न जोड़ा जाए. कुशवाहा ने कहा, 'न तो आरजेडी का दूध मांगा है, न बीजेपी की चीनी. मैंने सामाजिक परिप्रेक्ष्य में ये बात कही थी, किसी पार्टी का नाम नहीं लिया था'.
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लेकिन राजनीति के जानकार अभी भी यह मानकर चल रहे हैं कि सीटों कें बंटवारे में अगर उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को अपेक्षानुकूल और संतोषजनक सीटें नहीं मिलती हैं, तो निश्चित तौर पर सियासी फायदा उठाने के लिए उपेंद्र कुशवाहा 'यदुवंशी के दूध, और कुशवंशी के चावल' से सियासी खीर पका सकते हैं. जानकारों के अनुसार कुशवाहा अभी धीरे-धीरे लोकसभा चुनाव को लेकर अपनी रणनीति साफ़ कर रहे हैं. माना जा रहा है कि उपेन्द्र कुशवाहा फिलहाल मंत्री पद की वजह से भाजपा के साथ रहना चाहते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव से पूर्व अगर राजद के साथ सीट बंटवारे पर ठीक-ठाक बात बन जाती है तो वे एनडीए के ख़िलाफ़ गठबंधन के साथ होने में परहेज़ भी नहीं करेंगे.
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गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को बिहार की 40 में से 22 सीटें मिलीं थीं, जबकि सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को क्रमश: छह और तीन सीटें मिलीं थीं. तब जेडीयू को केवल दो सीटें ही मिलीं थीं. वहीं, 2015 के विधानसभा चुनाव में बिहार की 243 सीटों में से जेडीयू को 71 सीटें मिलीं थीं. तब भाजपा को 53 और लोजपा एवं रालोसपा को क्रमश: दो-दो सीटें मिलीं थीं. उस चुनाव में जेडीयू, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) तथा कांग्रेस का महागठबंधन था.
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मगर सीटों के बंटवारे के इस फॉर्मूले को देखें तो राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा को महज दो से तीन सीटें मिलती दिख रही हैं. पिछले कुछ समय से जिस तरह से बिहार में नीतीश कुमार से अधिका जनाधार होने का दावा उनकी पार्टी करती रही है और जिस तरह से उन्हें बिहार में सीएम फेस के तौर पर उनकी पार्टी आवाज मुखर करती रही है, उससे यह नहीं लगता कि उपेंद्र कुशवाहा आसानी से दो-तीन सीटों पर मान जाएंगे. दरअसल, भारतीय जनता पार्टी बिहार एनडीए को एकजुट रखने की काफी समय से कोशिश में लगी हुई है. कभी जदयू सीटों को लेकर नाराज दिखने लगती है, तो कभी उपेंद्र कुशवाहा के रंग बदले नजर आते हैं. खबर ऐसी भी है कि एनडीए में उपेंद्र कुशवाहा पांच सीटों से नीचे मानने वाले नहीं हैं.
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दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा के लिए दोनों हाथ में लड्डू है. रालोसपा अभी एनडीए का हिस्सा है ही, वहीं लालू यादव की पार्टी राजद का दरवाजा भी उनके लिए खुला है. राजद नेता तेजस्वी यादव भी कई मौकों पर कह चुके हैं कि उपेंद्र कुशवाहा के लिए उनकी पार्टी का दरवाजा खुला है. तेजस्वी यादव बार-बार परोक्ष रूप से उपेंद्र कुशवाहा को राजद के साथ आने का न्योता भी दे चुके हैं. ऐसे कई मौके भी आए हैं, जब ऐसा लगा है कि लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में बड़ा फेरबदल देखने को मिलेगा और पार्टियां इधर से उधर भी हो सकती हैं. बीते दिनों पटना में एक कार्यक्रम में के दौरान उपेंद्र कुशवाहा ने कहा, 'यदुवंशी का दूध, और कुशवंशी का चावल मिल जाये तो खीर बढ़िया होगी'. उसके बाद यह कायास लगाए गये कि उपेंद्र कुशवाहा का इशारा राजद के साथ जाने पर है. हालांकि, उन्होंने इस बयान पर मचे सियासी घमासान के तुरंत बाद सफाई दी कि उन्होंने सामाजिक एकता की बात की थी, इसे किसी समुदाय विशेष न जोड़ा जाए. कुशवाहा ने कहा, 'न तो आरजेडी का दूध मांगा है, न बीजेपी की चीनी. मैंने सामाजिक परिप्रेक्ष्य में ये बात कही थी, किसी पार्टी का नाम नहीं लिया था'.
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लेकिन राजनीति के जानकार अभी भी यह मानकर चल रहे हैं कि सीटों कें बंटवारे में अगर उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को अपेक्षानुकूल और संतोषजनक सीटें नहीं मिलती हैं, तो निश्चित तौर पर सियासी फायदा उठाने के लिए उपेंद्र कुशवाहा 'यदुवंशी के दूध, और कुशवंशी के चावल' से सियासी खीर पका सकते हैं. जानकारों के अनुसार कुशवाहा अभी धीरे-धीरे लोकसभा चुनाव को लेकर अपनी रणनीति साफ़ कर रहे हैं. माना जा रहा है कि उपेन्द्र कुशवाहा फिलहाल मंत्री पद की वजह से भाजपा के साथ रहना चाहते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव से पूर्व अगर राजद के साथ सीट बंटवारे पर ठीक-ठाक बात बन जाती है तो वे एनडीए के ख़िलाफ़ गठबंधन के साथ होने में परहेज़ भी नहीं करेंगे.
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गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को बिहार की 40 में से 22 सीटें मिलीं थीं, जबकि सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को क्रमश: छह और तीन सीटें मिलीं थीं. तब जेडीयू को केवल दो सीटें ही मिलीं थीं. वहीं, 2015 के विधानसभा चुनाव में बिहार की 243 सीटों में से जेडीयू को 71 सीटें मिलीं थीं. तब भाजपा को 53 और लोजपा एवं रालोसपा को क्रमश: दो-दो सीटें मिलीं थीं. उस चुनाव में जेडीयू, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) तथा कांग्रेस का महागठबंधन था.
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