सिख विरोधी दंगों के बंद किए गए केसों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पैनल गठित की है.
नई दिल्ली:
सन 1984 की सिख विरोधी हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने SIT द्वारा छंटनी के बाद बंद किए गए केसों की छानबीन के लिए सुप्रीम कोर्ट के दो रिटायर जजों के सुपरवाइजरी पैनल का गठन किया है. पैनल में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जस्टिस जेएम पांचाल हैं.दोनों जज पांच सितंबर से काम शुरू करेंगे और तीन महीने में रिपोर्ट देंगे. यह पैनल रिकार्ड देखने के बाद यह तय करेगा कि केस बंद करने का फैसला सही है या नहीं और इन केसों की दोबारा जांच शुरू की जाए या नहीं. पैनल शुरुआत में ही बंद किए गए 199 केसों के अलावा 42 अन्य मामलों की फाइलों को देखेगा.
दरअसल 16 अगस्त को 1984 की सिख विरोधी हिंसा के मामले की कोर्ट की निगरानी में जांच की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 199 फाइलें कोर्ट में दाखिल की थीं. अदालत ने केंद्र से कहा था कि इन फाइलों की फोटोकॉपी सील बंद लिफाफे में कोर्ट में जमा की जाए.
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सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा 1984 दंगों से संबंधित 293 में से 240 मामलों को बंद करने के निर्णय पर संदेह जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इनमें में 199 मामलों को बंद करने के कारण बताने के लिए कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह जानना चाहा कि आखिर किस आधारों पर इन मामलों की जांच आगे नहीं बढ़ाई गई.
इससे पहले अटॉर्नी जनरल ने पीठ से कहा कि इस घटना को 33 वर्ष बीत गए हैं. उन्होंने कहा कि पीड़ितों और चश्मदीदों की खोज-खबर नहीं है. ऐसे में जांच कैसे संभव है. वहीं दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद दत्तार ने अटॉर्नी जनरल की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि अब तक यह जानकारी सार्वजनिक नहीं है कि आखिरकार एसआईटी ने 80 फीसदी मामलों को क्यों बंद कर दिया. उन्होंने बताया कि ट्रायल कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट नहीं दाखिल की गई है. यह तो पता चलना ही चाहिए कि आखिरकार इन मामलों को क्यों बंद किया गया.
यह भी पढ़ें : 1984 के सिख विरोधी दंगों के 75 मामले फिर खोलेगा एसआईटी
सन 1984 में हुई सिख विरोधी हिंसा को लेकर चल रही SIT जांच के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है. सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की स्टेटस रिपोर्ट पर गौर करते हुए कहा था कि इन मामलो की जांच के लिए एक हाई लेवल कमेटी बनाने का जरूरत है जो मामलों की जांच और डे टू डे ट्रायल की निगरानी कर सके.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर कहा है. याचिका में मामलों के लिए गठित SIT की निगरानी करने और जांच व ट्रायल में तेजी लाने के आदेश देने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मामले की विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी. केंद्र की रिपोर्ट में बताया गया है कि हिंसा से जुडे 650 केस दर्ज किए गए थे जिनमें से 293 केसों की SIT ने छानबीन की थी. रिकार्ड खंगालने के बाद इनमे से 239 केस SIT ने बंद कर दिए हैं. इनमें 199 केस सीधे-सीधे बंद कर दिए गए.
VIDEO : टाइटलर को राहत
कुल 59 मामलों की दोबारा जांच शुरू की गई जिसमें से चार मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई. इनमें से दो मामलों को बंद किया जाएगा क्योंकि आरोपियों की मौत हो चुकी है. जबकि 38 मामलों को बंद कर दिया गया. जिन 35 केसों की प्राथमिक जांच शुरू की गई उनमें 28 केसों की जांच पूरी की गई. लेकिन रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि कितने केस बंद किए गए और कितने में चार्जशीट दाखिल की गई.
दरअसल 16 अगस्त को 1984 की सिख विरोधी हिंसा के मामले की कोर्ट की निगरानी में जांच की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 199 फाइलें कोर्ट में दाखिल की थीं. अदालत ने केंद्र से कहा था कि इन फाइलों की फोटोकॉपी सील बंद लिफाफे में कोर्ट में जमा की जाए.
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सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा 1984 दंगों से संबंधित 293 में से 240 मामलों को बंद करने के निर्णय पर संदेह जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इनमें में 199 मामलों को बंद करने के कारण बताने के लिए कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह जानना चाहा कि आखिर किस आधारों पर इन मामलों की जांच आगे नहीं बढ़ाई गई.
इससे पहले अटॉर्नी जनरल ने पीठ से कहा कि इस घटना को 33 वर्ष बीत गए हैं. उन्होंने कहा कि पीड़ितों और चश्मदीदों की खोज-खबर नहीं है. ऐसे में जांच कैसे संभव है. वहीं दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद दत्तार ने अटॉर्नी जनरल की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि अब तक यह जानकारी सार्वजनिक नहीं है कि आखिरकार एसआईटी ने 80 फीसदी मामलों को क्यों बंद कर दिया. उन्होंने बताया कि ट्रायल कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट नहीं दाखिल की गई है. यह तो पता चलना ही चाहिए कि आखिरकार इन मामलों को क्यों बंद किया गया.
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सन 1984 में हुई सिख विरोधी हिंसा को लेकर चल रही SIT जांच के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है. सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की स्टेटस रिपोर्ट पर गौर करते हुए कहा था कि इन मामलो की जांच के लिए एक हाई लेवल कमेटी बनाने का जरूरत है जो मामलों की जांच और डे टू डे ट्रायल की निगरानी कर सके.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर कहा है. याचिका में मामलों के लिए गठित SIT की निगरानी करने और जांच व ट्रायल में तेजी लाने के आदेश देने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मामले की विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी. केंद्र की रिपोर्ट में बताया गया है कि हिंसा से जुडे 650 केस दर्ज किए गए थे जिनमें से 293 केसों की SIT ने छानबीन की थी. रिकार्ड खंगालने के बाद इनमे से 239 केस SIT ने बंद कर दिए हैं. इनमें 199 केस सीधे-सीधे बंद कर दिए गए.
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कुल 59 मामलों की दोबारा जांच शुरू की गई जिसमें से चार मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई. इनमें से दो मामलों को बंद किया जाएगा क्योंकि आरोपियों की मौत हो चुकी है. जबकि 38 मामलों को बंद कर दिया गया. जिन 35 केसों की प्राथमिक जांच शुरू की गई उनमें 28 केसों की जांच पूरी की गई. लेकिन रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि कितने केस बंद किए गए और कितने में चार्जशीट दाखिल की गई.
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