प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
मुंबई में 1993 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की दया याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। उसे गुरुवार सुबह महाराष्ट्र के नागपुर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। इस तरह पिछले 11 सालों में यह देश में किसी मुजरिम को फांसी दिए जाने का यह चौथा मामला बन गया।
इससे पहले हम नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों को देखें तो भारत में पिछले 10 सालों में कुल 1303 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन फांसी की तामील सिर्फ तीन मामलों में हुई। इन सभी फांसी की सजाओं का ऐलान वर्ष 2004 से 2014 के बीच किया गया था।
आइए, जानते हैं पिछले 11 सालों में किस-किसको और कब फांसी के फंदे पर लटकाया गया...
1. 14 अगस्त 2004 : बलात्कार और हत्या के दोषी धनंजय चटर्जी को कोलकाता में फांसी दी गई थी। धनंजय को कोलकाता में एक स्कूली छात्रा के साथ दुष्कर्म और उसकी हत्या के जुर्म में तड़के साढ़े चार बजे फांसी पर लटकाया गया था। 14 वर्ष तक चले मुक़दमे और विभिन्न अपीलों और याचिकाओं को ठुकराए जाने के बाद धनंजय को कोलकाता की अलीपुर जेल में फांसी दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने धनंजय को फांसी की सज़ा सुनाई थी, जिसके बाद उसने राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सामने माफ़ी की अपील की थी, लेकिन राष्ट्रपति ने भी क्षमादान से इनकार कर दिया था।
2. 21 नवंबर 2012 : 26/11 हमले के दोषी अजमल कसाब को पुणे की यरवदा जेल में फांसी दी गई थी। 26 नवंबर 2008 को अजमल कसाब समेत 10 आतंकवादियों ने 166 लोगों की जान ली थी और तीन दिन तक पूरा शहर एक तरह से बंधक बना रहा था। कसाब को मुंबई के छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया गया था। हमले के दौरान अकेले इस जगह पर 60 लोगों की मौत हुई थी।
3. 9 फरवरी 2013: 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले के दोषी अफजल गुरु को तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी। अफजल को तड़के 5.25 बजे ही फांसी दे दी गई थी। फांसी देने के बाद सुबह करीब 9 बजे उसे तिहाड़ जेल के अंदर ही इस्लामिक रीति-रिवाज के साथ दफनाया गया था। अंतिम इच्छा के रूप में उसने कुरान की प्रति मांगी थी। वहीं, उसे फांसी पर लटकाने के तुरंत बाद ही कश्मीर घाटी में कर्फ्यू लगा दिया गया था। पूरे जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। दिल्ली और मुंबई में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया था।
4. 30 जुलाई 2015: 12 मार्च 1993 को मुंबई में हुआ यह आतंक का पहला हमला था। एक के बाद एक हुए 13 धमाकों में 257 लोग मौत की नींद सो गए थे, जबकि 713 लोग इन धमाकों में घायल हुए थे। इन धमाकों से करीब 27 करोड़ रुपए की संपत्ति नष्ट हो गई थी। इस जुर्म में उसे मौत की सजा सुनाई गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी अंतिम समय तक बरकरार रखा।
इससे पहले हम नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों को देखें तो भारत में पिछले 10 सालों में कुल 1303 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन फांसी की तामील सिर्फ तीन मामलों में हुई। इन सभी फांसी की सजाओं का ऐलान वर्ष 2004 से 2014 के बीच किया गया था।
आइए, जानते हैं पिछले 11 सालों में किस-किसको और कब फांसी के फंदे पर लटकाया गया...
1. 14 अगस्त 2004 : बलात्कार और हत्या के दोषी धनंजय चटर्जी को कोलकाता में फांसी दी गई थी। धनंजय को कोलकाता में एक स्कूली छात्रा के साथ दुष्कर्म और उसकी हत्या के जुर्म में तड़के साढ़े चार बजे फांसी पर लटकाया गया था। 14 वर्ष तक चले मुक़दमे और विभिन्न अपीलों और याचिकाओं को ठुकराए जाने के बाद धनंजय को कोलकाता की अलीपुर जेल में फांसी दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने धनंजय को फांसी की सज़ा सुनाई थी, जिसके बाद उसने राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सामने माफ़ी की अपील की थी, लेकिन राष्ट्रपति ने भी क्षमादान से इनकार कर दिया था।
2. 21 नवंबर 2012 : 26/11 हमले के दोषी अजमल कसाब को पुणे की यरवदा जेल में फांसी दी गई थी। 26 नवंबर 2008 को अजमल कसाब समेत 10 आतंकवादियों ने 166 लोगों की जान ली थी और तीन दिन तक पूरा शहर एक तरह से बंधक बना रहा था। कसाब को मुंबई के छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया गया था। हमले के दौरान अकेले इस जगह पर 60 लोगों की मौत हुई थी।
3. 9 फरवरी 2013: 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले के दोषी अफजल गुरु को तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी। अफजल को तड़के 5.25 बजे ही फांसी दे दी गई थी। फांसी देने के बाद सुबह करीब 9 बजे उसे तिहाड़ जेल के अंदर ही इस्लामिक रीति-रिवाज के साथ दफनाया गया था। अंतिम इच्छा के रूप में उसने कुरान की प्रति मांगी थी। वहीं, उसे फांसी पर लटकाने के तुरंत बाद ही कश्मीर घाटी में कर्फ्यू लगा दिया गया था। पूरे जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। दिल्ली और मुंबई में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया था।
4. 30 जुलाई 2015: 12 मार्च 1993 को मुंबई में हुआ यह आतंक का पहला हमला था। एक के बाद एक हुए 13 धमाकों में 257 लोग मौत की नींद सो गए थे, जबकि 713 लोग इन धमाकों में घायल हुए थे। इन धमाकों से करीब 27 करोड़ रुपए की संपत्ति नष्ट हो गई थी। इस जुर्म में उसे मौत की सजा सुनाई गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी अंतिम समय तक बरकरार रखा।
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