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This Article is From Sep 11, 2018

11 सितंबर 1893 को शिकागो में दिया गया स्वामी विवेकानंद का वो भाषण, जो आज भी प्रासंगिक है

'सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका'...11 सितंबर 1893 को जब शिकागों में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने इन शब्दों से अपने भाषण की शुरुआत की थी.

11 सितंबर 1893 को शिकागो में दिया गया स्वामी विवेकानंद का वो भाषण, जो आज भी प्रासंगिक है
11 September को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में मशहूर भाषण दिया था.
नई दिल्ली:

'सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका'...11 सितंबर 1893 को जब शिकागों में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने इन शब्दों से अपने भाषण की शुरुआत की तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज पड़ा. वह पहला मौका था जब पश्चिम का पूरब से सामना हो रहा था. पश्चिमी देश भारत की संस्कृति, सभ्यता और दर्शन से रूबरू हो रहे थे. यूं तो पश्चिमी देशों के मन में भारत की छवि 'सपेरों के देश' की ही थी, लेकिन स्वामी विवेकानंद के उस बहुचर्चित भाषण ने काफी कुछ बदल दिया. 

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शिकागो में विश्व हिंदू सम्मेलन के मंच पर स्वामी विवेकानंद ने अपने संबोधन में सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता और हिंसा का का मुद्दा बखूबी उठाया था. उन्होंने कहा कि सांप्रदायिकता और कट्टरता लंबे वक्त से धरती को अपने शिकंजे में जकड़े हुए है और पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. अनेकों बार यह धरती खून से लाल हुई है. कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं. उन्होंने पूरब की अगुवाई करते हुए कहा कि सहनशीलता का विचार पूरब के देशों से आया और दूर-दूर तक फैला. 

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स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में सहनशीलता और सार्वभौमिकता का मसला भी उठाया था. आज शिकागो में स्वामी विवेकानंद के मशहूर भाषण के सवा सौ साल हो गए है, लेकिन उन्होंने जिन मुद्दों पर रौशनी डाली थी, वे आज भी मौजूद हैं और उनका भाषण आज भी उतना ही प्रासंगिक है. खासकर, सांप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरता की जड़ें और भी मजबूत होती दिख रही हैं. भारत समेत तमाम देश इससे जूझ रहे हैं. 

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