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This Article is From Jun 05, 2018

सीओपीडी रोगियों के दिल को है खतरा, यूं रखें ख्याल

नए इलाज सीओपीडी रोगियों को न सिर्फ सांस लेने में मदद करते हैं बल्कि फेफड़ों की कार्यक्षमता के स्तर को भी बढ़ाते हैं. ब्रोनकोडायलेटर सबसे प्रभावी इलाज के तौर पर उभरकर सामने आ रहे हैं. 

सीओपीडी रोगियों के दिल को है खतरा, यूं रखें ख्याल
नई दिल्ली: क्रोनिक ओब्सट्रेक्टिव पुल्मनेरी डिजीज (सीओपीडी) के कई रोगियों को दिल से जुड़ी बीमारियां हो रही हैं जिससे मृत्युदर में बढ़ोतरी हो रही है. एक नए अध्ययन के माध्यम से इस बीमारी के बेहतर इलाज की उम्मीद बढ़ी है. आमतौर पर सीओपीडी को फेफड़ों से जुड़ी लंबे समय तक चलने वाली बीमारी माना जाता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ और शरीर में हवा का प्रवाह प्रभावित होता है. इससे कोर्डियोवास्कुलर डिजीज (सीवीडी) जैसी बीमारियों होने का रिस्क बढ़ जाता है. ऐसे में रोगी के विकलांग होने के साथ मृत्यु का खतरा भी बढ़ जाता है.

सीओपीडी ग्रस्त लोगों में सांस की नलियों में ब्लॉकेज होने या कम लचीले होने से फेफड़ों की कार्यक्षमता प्रभावित होने लगती है और यह उनमें बहुत आम समस्या है. इससे सीओपीडी के लक्षण खासतौर से सांस लेने में तकलीफ जैसी गंभीर समस्याएं ज्यादा हो जाती है. इसे मेडिकल भाषा में लंग हाइपरइंफ्लेशन कहते हैं और इससे दिल के काम करने की क्षमता भी जुड़ी होती है. 

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कैसे होता है प्रभावित
हाल ही में हुए एक अध्ययन ने पहली बार हृदय की कार्यक्षमता और लंग हाइपरइंफ्लेशन के ब्रोनकोडायलेशन के दोहरे प्रभाव की जांच की है. लैंसेट रिस्पाइरेटरी मेडिसन में प्रकाशित क्लेम अध्ययन में दर्शाया गया है कि लंग हाइपरइंफ्लेशन से पीड़ित सीओपीडी रोगियों का दोहरे ब्रोनकोडायलेटर के साथ उपचार करने से दिल और फेफड़ों की कार्यक्षमता में काफी सुधार होता है.

दुनियाभर में सीओपीडी से करीब 21 करोड़ लोग प्रभावित हैं और यह मृत्यु का चौथा कारण बनी हुई है. दुनियाभर में सीओपीडी से जितनी मृत्यु होती है, उसमें से एक चौथाई हिस्सा भारत का है. साल 2016 में सीओपीडी के 2 करोड़ 22 लाख रोगी थे. यह बीमारी समय के साथ गंभीर होती जाती है और कई बार यह जानलेवा तक हो सकती है. 
 
 
healthy heart

मेट्रो अस्पताल के पुल्मोनोलॉजी व स्लीप मेडिसन विभाग के प्रमुख डॉ. दीपक तलवार ने कहा, "सीओपीडी रोगियों में कार्डियोवास्कुलर बीमारियों के कारण कई प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलते है. इससे उनकी जिंदगी की गुणवता कम होती है, कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है, सभी कारणों और सीवीडी मृत्युदर का खतरा बढ़ जाता है. सीओपीडी ग्रस्त रोगियों में आमतौर पर इस्केमिक हार्ट डिजीज, हार्ट फेल्यर, कार्डियेक अररिथमिया जैसी सीवीडी की बीमारियां देखने को मिलती हैं."
 
 
passive smoking

Photo Credit: iStock


धूम्रपान है घातक
धूम्रपान दोनों बीमारियों में सबसे महत्वपूर्ण जोखिम कारण है जो सीधे तौर पर सूजन को गंभीर कर देता है लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इन बीमारियों के जोखिम में प्रदूषण नई चुनौती बनकर उभर रहा है. वल्र्ड हेल्थ आगेर्नाइजेशन (डब्लूएचओ) की साल 2016 की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत का स्थान 16वां है. ऐसी स्थिति में यह खतरा को बहुत ज्यादा बढ़ा देता है. शारीरिक कसरत न करना और सेहतमंद डाइट न लेना सीओपीडी के साथ कार्डियोवास्कुलर बीमारियों का कारण भी बनता है.

फिलहाल नए इलाज सीओपीडी रोगियों को न सिर्फ सांस लेने में मदद करते हैं बल्कि फेफड़ों की कार्यक्षमता के स्तर को भी बढ़ाते हैं. ब्रोनकोडायलेटर सबसे प्रभावी इलाज के तौर पर उभरकर सामने आ रहे हैं. 

इनपुट आईएएनएस

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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