पीएम मोदी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
न्यूज चैनलों और एजेंसियों द्वारा जारी एग्जिट पोल ने ये संकेत दे दिये हैं कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश भवगा रंग में रंगने को तैयार है. हालांकि, पूरी तस्वीर तो 18 दिसंबर को ही साफ होगी, जब दोनों राज्यों का जनादेश सामने आएगा. गुजरात पीएम मोदी का गृह राज्य है और 22 सालों से यहां बीजेपी की सरकार रही है. यही वजह है कि इस चुनाव को बीजेपी और पीएम मोदी की प्रतिष्ठा की नजर से देखा जा रहा है. वहीं, पिछले लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस अभी तक संभल नहीं पाई है. इस बीच एक-दो राज्यों में चुनावी जीत को छोड़ दें, तो कांग्रेस को अभी तक वो संजीवनी नहीं मिली है, जिसकी उम्मीद उसे गुजरात से है. गुजरात चुनाव में वोटर को साधने में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और पीएम मोदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी. चुनावी अभियान के दौरान हालात तो इतने बदतर हो गये कि कई बार ऐसा लगा कि खुद पीएम मोदी विकास और गुजरात के मुद्दों से कन्नी काट रहे हों. एग्जिट पोल्स की भविष्यवाणी भले ही सच साबित हो जाए, पीएम मोदी भले ही बीजेपी को जिताने में कामयाब हो जाएं, मगर एक बात तो साफ है कि इस चुनावी हार-जीत ने पीएम मोदी के कद को छोटा जरूर कर दिया है.
1. पहली बार पीएम मोदी के बयानों और भाषणों ने लोगों को हैरान किया
यह बात बिलकुल सही है कि अभी भी देश मोदी लहर में डूबा है. हो सकता है कि इसी लहर की वजह से पीएम मोदी गुजरात में बीजेपी की नैया पार लगवा दें, मगर पार्टी को जिताने के चक्कर में वो अपनी लोकप्रियता और कद में दिन-प्रतिदिन बट्टा लगाते दिख रहे हैं. पूरे गुजरात चुनाव में पीएम मोदी की रैलियों में जो भाषा और बयानों के स्तर देखने को मिले, वो कहीं से नहीं लग रहा था कि ये बातें भारत जैसे देश का प्रधानमंत्री बोल रहा है. लोग ये सोच कर हैरान हो रहे थे कि पूरी दुनिया में अपने नाम का सिक्का जमाने वाले पीएम मोदी महज चुनावी जीत के लिए इतने निचले स्तर पर जाकर आरोपों-प्रत्यारोपों का खेल क्यों खेल रहे हैं. चुनावी रैलियों के दौरान पीएम मोदी बार-बार ये भूल जा रहे थे कि वो सिर्फ बीजेपी के नेता नहीं हैं, बल्कि देश के पीएम हैं. पहले की तरह इस चुनाव में पीएम मोदी के बयानों और शब्दों में वो आकर्षण नहीं देखने को मिला, जो इससे पहले की रैलियों में देखने को मिलते थे. चुनाव में पाकिस्तान की एंट्री और विपक्ष के छोटे बयानों को भावनात्मक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर पीएम मोदी ने सच में अपने कद को छोटा ही किया है.
कांग्रेस गुजरात जीते या हारे, मगर बीजेपी को राहुल गांधी से ये 5 बातें जरूर सीखनी चाहिए
2. विकास के मुद्दे से भागते नजर आए पीएम मोदी
विकास की राजनीति का पर्याय बन चुके पीएम मोदी पहली बार गुजरात चुनाव में खुद विकास के मुद्दे से कन्नी काटते नजर आए. गुजरात में अगर कोई ये कहे कि पीएम मोदी और बीजेपी ने विकास की राजनीति कर वोट कमाया है, तो ये सरासर गलत है. पीएम मोदी की एक-दो चुनावी रैलियों को छोड़ दें तो कहीं वो विकास और गुजरात के मुद्दों की बात करते नजर नहीं आ रहे हैं. पीएम मोदी के गुजरात चुनाव के भाषणों के केंद्र में विकास के मुद्दे नहीं बल्कि सिर्फ कांग्रेस और राहुल गांधी थे. यही वजह है कि खुद राहुल गांधी को भी ये बोलना पड़ा कि पीएम मोदी के भाषण का 60 फीसदी केंद्र कांग्रेस या फिर राहुल ही होते हैं. हालांकि, ये बात अलग है कि पीएम मोदी इस चुनाव में जीतते नजर आ रहे हैं, मगर ये बात हमें नहीं भूलनी चाहिए कि ये जीत विकास के नाम पर नहीं, बल्कि भावनात्मकता के नाम ही रहेगी. पीएम मोदी का बार-बार गुजरात का बेटा कहा जाना और खुद के अपमान को गुजरात के अपमान से जोड़ना ये साबित करता है कि पीएम मोदी ने वहां के लोगों के कमजोर नस को पकड़ा और लोगों को भावनात्मक तौर पर अपने वश में कर लिया.
हार-जीत छोड़ो, ये 5 बातें साबित करती हैं कि राहुल गांधी अब राजनीति के माहिर खिलाड़ी हो गये हैं
3. प्रधानमंत्री पद की गरिमा का भी ख्याल नहीं रखा
भले ही रैलियों में पीएम मोदी बीजेपी के नेता के तौर पर भाषण देते रहे, मगर वो बार-बार ये भूलते नजर आए कि वो देश के प्रधानमंत्री भी हैं. इस बार उनके भाषणों में कोई गहराई देखने को नहीं मिली. मणिशंकर अय्यर के बयान पर राजनीति से लेकर उन पर ये आरोप लगाना कि अय्यर उनकी सुपारी देने पाकिस्तान गये थे, इन बयानों ने पीएम मोदी के कद को काफी छोटा कर दिया. प्रधानमंत्री होकर आधारहीन बातें कर पीएम मोदी ने खुद अपनी छवि में बट्टा लगाया है. गुजरात के चुनाव में जिस तरह से पीएम मोदी ने पाकिस्तान का नाम घसीटा, उसके बाद पाकिस्तान को भी ये बोलना पड़ा कि उसके नाम पर यहां राजनीति नहीं की जाए, उसने ये साबित कर दिया कि पीएम मोदी ने प्रधानमंत्री पद का जरा भी ख्याल नहीं रखा.
4. राहुल गांधी और कांग्रेस के बयानों के इर्द-गिर्द पीएम मोदी
गुजरात चुनाव भले ही राहुल गांधी हार जाएं, मगर उन्होंने जिस तरह से पीएम मोदी और भाजपा को टक्कर दी, यही वजह है कि पीएम मोदी को इस बार गुजरात में सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी और कांग्रेस को न जीतने देने के लिए ही धुआंधार रैलियां करनी पड़ी. पीएम मोदी ने अपने करिश्माई भाषण से कांग्रेस के विकास के मुद्दे को गुजरात की हवा से गायब कर दिया. ये बात भले ही उनकी जीत में सकारात्मक भूमिका निभाए, मगर एक प्रधानमंत्री के तौर पर कहीं से भी जायज नहीं है कि कोई पीएम विकास के मुद्दे को नेपथ्य में धकेल कर एजेंडे की राजनीति करे. एक पीएम होकर कांग्रेस के पिछले बयानों की फेहरिस्त जारी करना और लोगों की भावनओं को अपने पक्ष में करने के लिए बार-बार उसे उछालना कहीं से भी पीएम मोदी के लिए शोभनीय नहीं था. दरअसल, चुनाव में ऐसे हथकंडे अनपाए जाते हैं, मगर इसका दारोमदार कार्यकर्ताओं और अन्य नेताओं पर छोड़ देना चाहिए था, मगर पीएम मोदी चुनाव के दौरान पीएम की भूमिका की बजाय नेता की भूमिका में दिखे.
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5. राहुल गांधी की ताजपोशी पर पीएम मोदी का तंज
प्यार और राजनीति में भले ही सबकुछ जायज होता है, बावजूद इसके एक-दूसरे का सम्मान करना दोनों की जरूरत होती है. राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के समय पीएम मोदी ने जिस तरह का बयान दिया और तंज कसने की कोशिश की, वो प्रधानमंत्री के लिहाज से कहीं भी उचित नहीं था. पीएम मोदी को प्रधानमंत्री पद की गरिमा का ख्याल रखते हुए राहुल की ताजपोशी पर उदार हृदय दिखाते हुए बधाई देना चाहिए, मगर उन्होंने ऐसा करने की बजाय ये कहा कि कांग्रेस को औरंगजेब राज मुबारक हो. पीएम मोदी का ये बयान भी दिखाता है कि वो अपने आप को सिर्फ बीजेपी के नेता ज्यादा मानते हैं और देश के पीएम मोदी कम.
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6. व्यक्तिगत हमला करने में आगे रहे पीएम मोदी
गुजरात चुनाव में हार-जीत का फैसला तो अपनी जगह है, मगर राहुल गांधी ने अपने चुनावी अभियान से लोगों का दिल जीत लिया. देश के किसी संवैधानिक पद पर न रहते हुए भी राहुल ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को साफ हिदायत दी थी कि कोई भी पीएम मोदी पर व्यक्तिगत हमला नहीं करेगा, मगर प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुए भी पीएम मोदी ने अपने नेताओं को ऐसी को हिदायत नहीं दी. इसके इतर, पीएम मोदी खुद राहुल गांधी पर व्यक्तिगत हमला करते नजर आए. कुल मिलाकर देखा जाए तो राहुल गांधी इससे बचते नजर आए तो पीएम मोदी इसी को अपना चुनावी हथियार बनाते नजर आए. चुनावी रैलियों के बाद राहुल गांधी को भी बोलना पड़ा कि हम पीएम मोदी को प्यार से हराएंगे. इस तरह से गुजरात चुनाव में जो उम्मीद पीएम मोदी से लोगों को थी, वो काम राहुल करने में सफल हो पाए. मीडिया के गलियारों में भी कई बार ये बात उठी कि अब पीएम मोदी कुछ भी बोलकर बच निकलना चाहते हैं और हवा-हवाई बातों से ही लोगों को रिझाने में कामयाब होना चाहते हैं.
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1. पहली बार पीएम मोदी के बयानों और भाषणों ने लोगों को हैरान किया
यह बात बिलकुल सही है कि अभी भी देश मोदी लहर में डूबा है. हो सकता है कि इसी लहर की वजह से पीएम मोदी गुजरात में बीजेपी की नैया पार लगवा दें, मगर पार्टी को जिताने के चक्कर में वो अपनी लोकप्रियता और कद में दिन-प्रतिदिन बट्टा लगाते दिख रहे हैं. पूरे गुजरात चुनाव में पीएम मोदी की रैलियों में जो भाषा और बयानों के स्तर देखने को मिले, वो कहीं से नहीं लग रहा था कि ये बातें भारत जैसे देश का प्रधानमंत्री बोल रहा है. लोग ये सोच कर हैरान हो रहे थे कि पूरी दुनिया में अपने नाम का सिक्का जमाने वाले पीएम मोदी महज चुनावी जीत के लिए इतने निचले स्तर पर जाकर आरोपों-प्रत्यारोपों का खेल क्यों खेल रहे हैं. चुनावी रैलियों के दौरान पीएम मोदी बार-बार ये भूल जा रहे थे कि वो सिर्फ बीजेपी के नेता नहीं हैं, बल्कि देश के पीएम हैं. पहले की तरह इस चुनाव में पीएम मोदी के बयानों और शब्दों में वो आकर्षण नहीं देखने को मिला, जो इससे पहले की रैलियों में देखने को मिलते थे. चुनाव में पाकिस्तान की एंट्री और विपक्ष के छोटे बयानों को भावनात्मक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर पीएम मोदी ने सच में अपने कद को छोटा ही किया है.
कांग्रेस गुजरात जीते या हारे, मगर बीजेपी को राहुल गांधी से ये 5 बातें जरूर सीखनी चाहिए
2. विकास के मुद्दे से भागते नजर आए पीएम मोदी
विकास की राजनीति का पर्याय बन चुके पीएम मोदी पहली बार गुजरात चुनाव में खुद विकास के मुद्दे से कन्नी काटते नजर आए. गुजरात में अगर कोई ये कहे कि पीएम मोदी और बीजेपी ने विकास की राजनीति कर वोट कमाया है, तो ये सरासर गलत है. पीएम मोदी की एक-दो चुनावी रैलियों को छोड़ दें तो कहीं वो विकास और गुजरात के मुद्दों की बात करते नजर नहीं आ रहे हैं. पीएम मोदी के गुजरात चुनाव के भाषणों के केंद्र में विकास के मुद्दे नहीं बल्कि सिर्फ कांग्रेस और राहुल गांधी थे. यही वजह है कि खुद राहुल गांधी को भी ये बोलना पड़ा कि पीएम मोदी के भाषण का 60 फीसदी केंद्र कांग्रेस या फिर राहुल ही होते हैं. हालांकि, ये बात अलग है कि पीएम मोदी इस चुनाव में जीतते नजर आ रहे हैं, मगर ये बात हमें नहीं भूलनी चाहिए कि ये जीत विकास के नाम पर नहीं, बल्कि भावनात्मकता के नाम ही रहेगी. पीएम मोदी का बार-बार गुजरात का बेटा कहा जाना और खुद के अपमान को गुजरात के अपमान से जोड़ना ये साबित करता है कि पीएम मोदी ने वहां के लोगों के कमजोर नस को पकड़ा और लोगों को भावनात्मक तौर पर अपने वश में कर लिया.
हार-जीत छोड़ो, ये 5 बातें साबित करती हैं कि राहुल गांधी अब राजनीति के माहिर खिलाड़ी हो गये हैं
3. प्रधानमंत्री पद की गरिमा का भी ख्याल नहीं रखा
भले ही रैलियों में पीएम मोदी बीजेपी के नेता के तौर पर भाषण देते रहे, मगर वो बार-बार ये भूलते नजर आए कि वो देश के प्रधानमंत्री भी हैं. इस बार उनके भाषणों में कोई गहराई देखने को नहीं मिली. मणिशंकर अय्यर के बयान पर राजनीति से लेकर उन पर ये आरोप लगाना कि अय्यर उनकी सुपारी देने पाकिस्तान गये थे, इन बयानों ने पीएम मोदी के कद को काफी छोटा कर दिया. प्रधानमंत्री होकर आधारहीन बातें कर पीएम मोदी ने खुद अपनी छवि में बट्टा लगाया है. गुजरात के चुनाव में जिस तरह से पीएम मोदी ने पाकिस्तान का नाम घसीटा, उसके बाद पाकिस्तान को भी ये बोलना पड़ा कि उसके नाम पर यहां राजनीति नहीं की जाए, उसने ये साबित कर दिया कि पीएम मोदी ने प्रधानमंत्री पद का जरा भी ख्याल नहीं रखा.
4. राहुल गांधी और कांग्रेस के बयानों के इर्द-गिर्द पीएम मोदी
गुजरात चुनाव भले ही राहुल गांधी हार जाएं, मगर उन्होंने जिस तरह से पीएम मोदी और भाजपा को टक्कर दी, यही वजह है कि पीएम मोदी को इस बार गुजरात में सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी और कांग्रेस को न जीतने देने के लिए ही धुआंधार रैलियां करनी पड़ी. पीएम मोदी ने अपने करिश्माई भाषण से कांग्रेस के विकास के मुद्दे को गुजरात की हवा से गायब कर दिया. ये बात भले ही उनकी जीत में सकारात्मक भूमिका निभाए, मगर एक प्रधानमंत्री के तौर पर कहीं से भी जायज नहीं है कि कोई पीएम विकास के मुद्दे को नेपथ्य में धकेल कर एजेंडे की राजनीति करे. एक पीएम होकर कांग्रेस के पिछले बयानों की फेहरिस्त जारी करना और लोगों की भावनओं को अपने पक्ष में करने के लिए बार-बार उसे उछालना कहीं से भी पीएम मोदी के लिए शोभनीय नहीं था. दरअसल, चुनाव में ऐसे हथकंडे अनपाए जाते हैं, मगर इसका दारोमदार कार्यकर्ताओं और अन्य नेताओं पर छोड़ देना चाहिए था, मगर पीएम मोदी चुनाव के दौरान पीएम की भूमिका की बजाय नेता की भूमिका में दिखे.
गुजरात चुनाव का 'पाकिस्तान कनेक्शन': बीजेपी और कांग्रेस के वार-पलटवार वाले ये 8 बयान
5. राहुल गांधी की ताजपोशी पर पीएम मोदी का तंज
प्यार और राजनीति में भले ही सबकुछ जायज होता है, बावजूद इसके एक-दूसरे का सम्मान करना दोनों की जरूरत होती है. राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के समय पीएम मोदी ने जिस तरह का बयान दिया और तंज कसने की कोशिश की, वो प्रधानमंत्री के लिहाज से कहीं भी उचित नहीं था. पीएम मोदी को प्रधानमंत्री पद की गरिमा का ख्याल रखते हुए राहुल की ताजपोशी पर उदार हृदय दिखाते हुए बधाई देना चाहिए, मगर उन्होंने ऐसा करने की बजाय ये कहा कि कांग्रेस को औरंगजेब राज मुबारक हो. पीएम मोदी का ये बयान भी दिखाता है कि वो अपने आप को सिर्फ बीजेपी के नेता ज्यादा मानते हैं और देश के पीएम मोदी कम.
गुजरात विधानसभा चुनाव : दूसरे चरण में दागी उम्मीदवारों के मामले में कांग्रेस ने बीजेपी को भी पीछे छोड़ दिया
6. व्यक्तिगत हमला करने में आगे रहे पीएम मोदी
गुजरात चुनाव में हार-जीत का फैसला तो अपनी जगह है, मगर राहुल गांधी ने अपने चुनावी अभियान से लोगों का दिल जीत लिया. देश के किसी संवैधानिक पद पर न रहते हुए भी राहुल ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को साफ हिदायत दी थी कि कोई भी पीएम मोदी पर व्यक्तिगत हमला नहीं करेगा, मगर प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुए भी पीएम मोदी ने अपने नेताओं को ऐसी को हिदायत नहीं दी. इसके इतर, पीएम मोदी खुद राहुल गांधी पर व्यक्तिगत हमला करते नजर आए. कुल मिलाकर देखा जाए तो राहुल गांधी इससे बचते नजर आए तो पीएम मोदी इसी को अपना चुनावी हथियार बनाते नजर आए. चुनावी रैलियों के बाद राहुल गांधी को भी बोलना पड़ा कि हम पीएम मोदी को प्यार से हराएंगे. इस तरह से गुजरात चुनाव में जो उम्मीद पीएम मोदी से लोगों को थी, वो काम राहुल करने में सफल हो पाए. मीडिया के गलियारों में भी कई बार ये बात उठी कि अब पीएम मोदी कुछ भी बोलकर बच निकलना चाहते हैं और हवा-हवाई बातों से ही लोगों को रिझाने में कामयाब होना चाहते हैं.
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