भारत और पाकिस्तान में क्यों पॉपुलर है इफ्तार ड्रिंक रूह अफजा, क्या है इसके पीछे की कहानी? जानिए कितनी पुराना है ये खास शर्बत

रूह अफ़ज़ा की कहानी एक सदी से भी ज्यादा पुरानी है, जिसे पुरानी दिल्ली में हकीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद, दिल्ली के एक यूनानी चिकित्सक द्वारा तैयार किया गया था.

भारत और पाकिस्तान में क्यों पॉपुलर है इफ्तार ड्रिंक रूह अफजा, क्या है इसके पीछे की कहानी? जानिए कितनी पुराना है ये खास शर्बत

रूह अफ़ज़ा को पहली बार 1907 में पुरानी दिल्ली में हकीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद ने बेचा था.

जैसे ही गर्मियां शुरू होती है, हम सभी ऐसी ड्रिंक्स की तलाश में रहते हैं जो हमें अंदर से ठंडक पहुंचा सकें. सड़कों के किनारों पर भी शर्बत और कोल्ड ड्रिंक्स मिलने लग जाती हैं. लेकिन जब रमज़ान के इफ्तार की बात आती है, तो उसमें रूह अफ़ज़ा जरूर शामिल होता है. यह फेमस ड्रिंक, अपने जीवंत लाल रंग और मनमोहक गुलाब वाले स्वाद के साथ लोगों को खूब पसंद आता है. रोजा खोलते समय इस ड्रिंक को इफ्तार में शामिल करना एक परंपरा बन जाती है.

रूह अफ़ज़ा की कहानी एक सदी से भी ज्यादा पुरानी है, जिसे पुरानी दिल्ली में हकीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद, दिल्ली के एक यूनानी चिकित्सक द्वारा तैयार किया गया था. चिलचिलाती गर्मी से निपटने के लिए एक ठंडा ड्रिंक बनाने की इच्छा से प्रेरित होकर, उन्होंने फलों, जड़ी-बूटियों और फूलों के अर्क का एक अनूठा मिश्रण तैयार किया, जिसमें गुलाब जल और पानदान के अचूक नोट्स शामिल थे. इसे'रूह अफ़ज़ा' नाम दिया गया है, जिसका अर्थ है 'आत्मा को ताज़ा करने वाला', जिसने तुरंत भारतीयों के दिलों पर कब्जा कर लिया.

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शुरुआत में दिल्ली की प्रचंड गर्मी से राहत पाने के लिए तैयार किए गए रूह अफ़ज़ा ने तेजी से पूरे दक्षिण एशिया, विदेशों और खाड़ी देशों में भी काफी लोकप्रियता हासिल की.

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Photo Credit: Instagram.com/hamdardroohafza/

हमदर्द लैब्स की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार, 1906 में, हकीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद ने पुरानी दिल्ली में एक यूनानी क्लिनिक ("हमदर्द," जिसका अर्थ है "सभी के लिए सहानुभूति") खोला. यहीं पर उन्होंने 1907 में "शरबत रूह अफ़ज़ा" बनाया, जो एक फ्रेश ड्रिंक था जिसका उर्दू में अनुवाद "आत्मा का कायाकल्प" होता है. भारत-पाकिस्तान पार्टीशन के बावजूद, रूह अफ़ज़ा एक सदी से भी ज्यादा समय से गर्मियों में एक पसंदीदा ड्रिंक बना हुआ है. 

नेशनल पब्लिक रेडियो के अनुसार, माजिद की मृत्यु के बाद, उसकी पत्नी और दो बेटों ने बिजनेस जारी रखा. 1947 में जब भारतीय उपमहाद्वीप का विभाजन हुआ तो उनका एक बेटा दिल्ली में रह गया जबकि दूसरा पाकिस्तान चला गया. उन्होंने दोनों देशों के साथ-साथ पूर्वी पाकिस्तान (1971 में बांग्लादेश बन गया) में दो कंपनियों के चलते एक फैक्ट्री स्थापित की.

दोनों बिजनेस आज इंडिपेंडेंट रूप से चलाए जाते हैं, लेकिन उनके प्रोडक्ट्स "लगभग एक जैसे हैं", माजिद के परपोते और इस समय हमदर्द इंडिया के सीईओ हामिद अहमद ने एनपीआर को बताया,उनका सालान बिजनेस लगभग 70 मिलियन डॉलर है. 2020 में कंपनी ने बताया कि उसने अकेले रूह अफ़ज़ा की बिक्री से $37 मिलियन से ज्यादा की कमाई की.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)