मैगी के विवादों में आते ही लोगों में उसके लिए गुस्सा देखा जा सकता है। दो मिनट में भूख भगाने वाली मैगी को खुद से दूर करना लोगों के लिए थोड़ा मुश्किल हो गया है, इसलिए सरकार ने मैगी को बाजार में पूरी तरह से बैन कर दिया है। ऐसा पहली बार नहीं है, जब अच्छे नामी ब्रांड्स ने लोगों का भरोसा तोड़ा हो।
इससे पहले भी ऐसा कई बार हो चुका है। जी हां, मैगी नूडल्स से पहले भी ऐसे कई बड़े ब्रैंड्स हैं, जिन्हें कुछ समय के लिए लोगों की नजरों और दिल से दूर कर दिया गया था। आइए जानें ऐसे ही कुछ ब्रैंड्स के बारे मेः
चॉक्लेट में निकले कीड़ेः
धीरे-धीरे मिठाई की जगह लेने वाली चॉक्लेट ने भी 2003 में बच्चों से लेकर बड़ों तक को मायूस कर दिया था। मशहूर कंपनी कैडबरी डेयरी मिल्क को लेकर 2003 में काफी विवाद हुआ था, जब महाराष्ट्र में चॉक्लेट में कीड़े पाए जाने का मामला सामने आया था, तब कंपनी को ग्राहकों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा था।
इस मामले पर कैडबरी ने सफाई देते हुए कहा था कि उत्पादन के समय चॉक्लेट में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं थी, लेकिन खुदरा व्यापारी के सही से स्टोर न करने के कारण उसमें कीड़े पैदा हुए। महाराष्ट्र के खाद्य और ड्रग विभाग के कमिशनर ने विवाद की जांच करते हुए बताया था कि चॉक्लेट का सही प्रकार से संग्रहण न होने की वजह से उसमें कीड़े उत्पन्न हो गए थे।
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वहीं, पैकिंग के बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता। चॉक्लेट का खराब होने का भले ही कोई भी कारण हो, पैकिंग सही न होना या फिर उत्पादन में कमी, इन सब बातों ने आम जनता का इन प्रोडेक्टस पर से विश्वास एकदम तोड़ दिया था।
अपने घाटे को पूरा करने और उपभोक्ताओं के संतोष को फिर से पाने के लिए कैडबरी फिर बाजार में उतरा।
2004 में कैडबरी ने अच्छी और बेहतरीन मशीनों में काफी राशि लगाई, ताकि पैकिंग को पहले से ज्यादा अच्छा किया जा सके। यही नहीं, कैडबरी के ब्रैंड ऐम्बेसडर बने अमिताभ बच्चन ने भी लोगों को कैडबरी पर विश्वसनीयता बनाने के लिए प्रेरित किया।
लोगों ने धीरे-धीरे कैडबरी पर फिर से भरोसा किया। उसे खुद के लिए और बच्चों के लिए सही समझा, लेकिन कंपनी ने फिर विश्वास तोड़ा। पिछले साल कोलकाता में एक व्यक्ति ने फिर बताया कि कैडबरी चॉक्लेट में कीड़े पाए गए हैं।
मैकडोनल्ड ने भी तोड़ा विश्वास
बीते कुछ सालों में मैकडोनल्ड भी विवादों के घेरे में नजर आता रहा है। कनाडा में एक व्यक्ति की कोल्ड कॉफी से मरा हुआ चूहा मिलने के एक मामले ने मैकडोनल्ड की उत्पादन प्रक्रिया पर भी कई सवाल खड़े कर दिए। सिर्फ चूहा ही नहीं, इंसान के दांत और कई चीजें मैकडोनल्ड के हैपी मील में भी पाई जा चुकी हैं।
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चीन में हुए केस के बाद मैकडोनल्ड की बिक्री दर एकदम से काफी नीचे गिरा गई, जब मैक डोनल्ड के ही एक कर्मचारी ने पुराना चिकन दोबारा से पैक कर के बेच दिया। इस कारण कंपनी को अपना शंघाई प्लांट ही बंद करना पड़ा। इसके अलावा तमाम आउटलेट्स में कई आइट्म बेचने बंद कर दिए गए।
यही नहीं, जापान में भी मीट में प्लास्टिक के टुकड़े पाए जाने का मामला सामने आया था। हाल ही में कंपनी ने एंटी-बॉयोटिक इंजेक्शन वाले चिकन को बाहर करने की घोषणा की है।
केएफसी के दिखावटी रंग
अपने लजीज और स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए भारत और दूसरे देशों में प्रचलित केएफसी भी लोगों का विश्वास तोड़ने की लिस्ट में शामिल हो चुका है। जी हां, दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित सिंधिया हाउस के केएफसी में दिखावटी रंगों के इस्तेमाल करने का मामला सामने आया था।
भारतीय खाद्य और मानक सुरक्षा प्राधिकरण की जांच के दौरान चावल के नमूनों से दिखावटी रंग पाए गए। अपने बचाव में केएफसी ने सफाई देते हुए कहा, 'यह गलत सुचना है कि केएफसी के चावल असुरक्षित हैं। हम प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल करते हैं, जो कि अत्यधिक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय आपूर्तिकर्ताओं से लिए जाते हैं।
हमें अपने उत्पादन की गुणवत्ता पर पूरा भरोसा है और इस संबंध में हम नियामक प्राधिकरण के साथ काम कर रहे हैं, जिन्होंने आश्वासन दिया है कि नमूने उपभोग के लिए सुरक्षित हैं और केएफसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।'
कोला में भी था झोल
आपने कभी सोचा है कि इन कार्बनेट वाली ड्रिंक्स के टेस्टी लगने का क्या रहस्य है? नहीं न! लेकिन सरकार ने इस बारे में सोचा और 1977 में जब उन्होंने कंपनी से इसकी रेसिपी और सामग्री के बारे में पूछा तो कोला को इंडिया से बाहर का रास्ता देखना पड़ा। पीटर मोस ने अपनी किताब (घोस्ट ऑफ द डार्क स्काइ बॉग एंड बैरेंस) में लिखा है कि एक लंबे समय के अभाव के बाद 1993 में कोका-कोला ने भारत में फिर से अपने पैर जमाने शुरू किए।
2006 में न्यूयॉर्क टाइम्स में आई रिपोर्ट के अनुसार, कोला में कीटनाशक होने की खबर सबसे पहले 2003 में मिली थी। यह 2006 में फिर से उठी, जब पर्यावरण संबंधी समूह विज्ञान और पर्यावरण केंद्र ने यह दावा किया कि पेप्सी और कोका-कोला कंपनियों की ओर से बिकने वाले सोडे में कीटनाशक हैं।
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यही नहीं, मध्य प्रदेश और गुजरात दोनों राज्यों में स्कूल और सरकारी दफ्तरों में कोल्ड ड्रिंक परोसने पर बैन लगा दिया गया। यहां से 11 नमूनों की जांच की गई, जिसमें तय सीमा से 24 गुना ज्यादा कीटनाशक होने की बात सामने आई थी। इसी तरह का बैन राजस्थान और पंजाब में भी लगा दिया गया।
भारतीय जनता पार्टी के सांसदों ने राष्ट्रव्यापी बैन लगा दिया। एमलई जेंटलमैन, द न्यूयॉर्क टाइम्स, 'अखबार में विज्ञापन के माध्यम से पेप्सी ने बयान दिया कि आज की तारीख में पेप्सी एक सबसे सुरक्षित पेय पदार्थ है।'
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी ने भारत में पानी में कीटनाशक की मौजूदगी को स्वीकार किया और खाद्य पदार्थों में अपना रास्ता ढूंढ लिया। इसने एक बात और साफ कर दी कि चाय और खाद्य पदार्थों में अनुमति के स्तर से अगर तुलना की जाए तो सॉफ्ट ड्रिंक में कीटनाशक का स्तर न के बराबर होता है।
दोनों ही कंपनियां केरल में स्थित बॉटलिंग संयंत्र को चलाना चाहती थीं, जो कि कथित तौर पर जल प्रदूषण, भू-जल की कमी, कृषि उपज को प्रभावित करने और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को बढ़ा रही थी। भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कार्बोनेट पेय पदार्थों के लिए कीटनाशक मानक तैयार किए।
इकनॉमिक्स टाइम्स में छपी खबर के अनुसार, साल 2012 में विज्ञान के लिए केंद्र और सीएसई ने 16 प्रचलित ब्रैंड नेस्ले मैगी नूडल्स, मैकडोनल्ड, केएफसी, हल्दीराम-आलू भुजिया, पेप्सीको लेस पोटैटो चिप्स और इस तरह की कई कंपनियां अपने गलत दावों और अपर्याप्त लेबल से जनता को भटका रही हैं।
सीएसई (विज्ञान और पर्यावरण केंद्र) की डायरेक्टर सुनीता नारायण ने कहा 'अधिकांश जंक फूड में ट्रांस फैट, नमक, शुगर काफी ज्यादा मात्रा में पाया जाता है, जो कि मोटापा और डायबिटीज जैसी परेशानियां बढ़ाता है।'
द इकनॉमिक टाइम्स के अनुसार 'पेप्सीको, नेस्ले, मैकडोनल्ड और केएफसी ने अपने ऊपर लगे आरोपों को नकारते हुए कहा कि उनके खाद्य पदार्थ ट्रांस फैट से फ्री हैं।
मैकडोनल्ड इंडिया (उत्तर, पूर्व) के कॉरपोरेट कॉम्यूनिकेशन, जीएम राजेश मैनी ने कहा कि विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) के अध्ययन के नतीजे बहुत ही असामान्य हैं, क्योंकि रेस्तरां श्रृंखला संशोधित, फीका और बदबू हटाने वाले ताड़ का तेल इस्तेमाल करते हैं, जिनमें ट्रांस फैट की मात्रा काफी कम होती है, जिसे लगभग पता नहीं लगाया जा सकता। पेप्सीको, केएफसी, मैकडोनल्ड, नेस्ले मैगी उपभोक्ताओं को गुमराह करने की बेकार की श्रेणी में शामिल होते जा रहे हैं।
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पैप्सिको के प्रवक्ता ने कहा कि हम विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित और सरकार से मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में उत्पाद की नियमित रूप से जांच कराते हैं। इन रिपोर्ट से पता लगता है कि हमारे उत्पाद जैसे लेज, अंकल चिप्स, कुरकुरे और चिटोज ट्रांस फैट फ्री हैं, जैसा कि भारतीय और अन्य नियामकों द्वारा बताया गया है।
सबवे में मिले कीड़े
2011 में मुंबई की चर्चित कंपनी सबवे के चिकन टिक्का में भी कीड़े मिले थे। एक खबर के मुताबिक, 'सबवे के मैनेजर ने यह कहते हुए कि यह उनका नहीं सब्जी सप्लाई करने वाले की गलती की वजह से हुआ है, अपना पल्ला झाड़ लिया था।'
ऐसा ही केस पिछले साल हैदराबाद में सामने आया, जब वहां नॉन-वेजिटेरीयन सबवे में कीड़े निकले। यही नहीं, सबवे एक बार फिर खबरों में तब आया, जब एक फूड ब्लॉगर ने ब्रेड में से योगा मैट रसायन नामक सामग्री को हटाने के लिए याचिका दायर की। सबवे के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर, टॉनी पेस ने सहयोगी प्रेस को बताया कि वह उपयुक्त सामग्री अपने उप्ताद में से हटा रहे हैं।
फर्री हेंज में छिपे बाल
ब्राजील के स्वास्थ्य अधिकारियों को 2013 में मेक्सिको की फर्री हेंज में गिलहरी के बाल मिले, जिस कारण देश में इसके निर्यात पर बैन लगा दिया गया। मैक्सिकन अधिकारी फैक्टरी की जांच के लिए पहुंचे जहां कैचअप बन रही थी, वहां हेंज ने बताया कि कैचअप की खेप घटना से एक साल पहले ही ब्राजील भेजी जा चुकी है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने अपने बयान में कहा था कि इसकी सारी बिक्री, मार्केटिंग और प्रसारण बंद कर दिया गया है। लेकिन कंपनी और ब्रजील के आधिकारियों ने बची हुई कैचअप और उनकी संख्या के बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी।
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किंडर ऐग पर भी बैन
लोकप्रिय किंडर ऐग इटली की कंपनी फरेरो द्वारा बनाए जाते हैं। इन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका में पूरी तरह से बैन कर दिया गया है। यही नहीं, इसके आयात पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह मुख्य रूप से बच्चों के लिए और व्यस्कों में भी काफी लोकप्रिय है।
चॉक्लेट ऐग के आकार में आने वाले इन किंडर ऐग में एक छोटा टॉय होता है। सयुंक्त राज्य अमेरिका के खाद्य और ड्रग विभाग के अनुसार, किंडर ऐग में होने वाला यह छोटा टॉय गले के लिए खतरनाक हो सकता है।
1938 में अमेरिकी संघ कानून ने खाद्य पदार्थों के साथ गैर-खाद्य वस्तुओं को रखने पर रोक लगाई थी। इसके बावजूद किंडर ऐग में बच्चों को लुभाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा था, इसलिए किंडर ऐग को बैन कर दिया गया.