लंदन:
सीज़न के बदलने पर हमें खांसी, ज़ुखाम, बुखार के होने की शिकायत रहती है। ऐसे में कई लोग डॉक्टर के पास जाते हैं, तो कई एंटीबायोटिक लेकर इससे छुटकारा पा लेते हैं। घर में एक व्यक्ति को लगी यह बीमारियां सभी को अपनी चपेट में ले लेती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि खुद से एंटीबायोटिक ले लेना आपके लिए कितना हानिकारक हो सकता है।
लंबे समय तक एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन अपने कई साइडिफेक्ट्स दिखाता है। यह मस्तिष्क पर भी गंभीर असर डाल सकता है। एक नए अध्ययन में पता चला है कि दिमाग को तेज़ रखने के लिए आंत में स्वस्थ जीवाणुओं की उपस्थिति आवश्यक होती है।
चूहों पर किया गया अध्ययन
शोध के मुताबिक, एक विशेष प्रकार का इम्यूनिटी सेल जीवाणुओं व मस्तिष्क के बीच मेडिएशन का काम करता है। यह दिमाग से जुड़ी बीमारियों के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है। इस अध्ययन को साबित करने के लिए शोधकर्ताओं ने एंटीबायोटिक के सहारे, चूहे की आंत के माइक्रोबायोम (आंतों में मौजूद जीवाणु) को खत्म कर दिया।
एंटीबायोटिक इलाज न पाने वाले चूहों की तुलना में इलाज पाने वाले चूहों के मस्तिष्क के हिप्पोकैंपस में बेहद कम संख्या में नई मस्तिष्क कोशिकाओं (स्मृति के लिए महत्वपूर्ण) का निर्माण हुआ। कम कोशिकाओं के निर्माण से इन चूहों की स्मृति में भी दोष पाया गया। साथ ही शोधकर्ताओं ने इन चूहों में विशेष प्रतिरक्षा कोशिकाओं -एलवाई6सी (एचआई) मोनोसाइट की संख्या में भी कमी दर्ज की।
जब इस अध्ययन को मानवों पर आजमाया गया, तो यह बात सामने नहीं आई कि सभी तरह के एंटीबायोटिक्स के सेवन से मस्तिष्क पर असर पड़ता है। जर्मनी के बर्लिन में मैक्स डेलब्रक सेंटर फॉर मोल्येकूलर मेडिसिन में एक शोधकर्ता सुसेन वुल्फ ने कहा कि “यह संभव है, क्योंकि एंटीबायोटिक्स के लंबे समय तक इस्तेमाल से इसी तरह का प्रभाव सामने आ सकता है”।
यह निष्कर्ष पत्रिका ‘सेल रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित हुआ है।
लंबे समय तक एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन अपने कई साइडिफेक्ट्स दिखाता है। यह मस्तिष्क पर भी गंभीर असर डाल सकता है। एक नए अध्ययन में पता चला है कि दिमाग को तेज़ रखने के लिए आंत में स्वस्थ जीवाणुओं की उपस्थिति आवश्यक होती है।
चूहों पर किया गया अध्ययन
शोध के मुताबिक, एक विशेष प्रकार का इम्यूनिटी सेल जीवाणुओं व मस्तिष्क के बीच मेडिएशन का काम करता है। यह दिमाग से जुड़ी बीमारियों के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है। इस अध्ययन को साबित करने के लिए शोधकर्ताओं ने एंटीबायोटिक के सहारे, चूहे की आंत के माइक्रोबायोम (आंतों में मौजूद जीवाणु) को खत्म कर दिया।
एंटीबायोटिक इलाज न पाने वाले चूहों की तुलना में इलाज पाने वाले चूहों के मस्तिष्क के हिप्पोकैंपस में बेहद कम संख्या में नई मस्तिष्क कोशिकाओं (स्मृति के लिए महत्वपूर्ण) का निर्माण हुआ। कम कोशिकाओं के निर्माण से इन चूहों की स्मृति में भी दोष पाया गया। साथ ही शोधकर्ताओं ने इन चूहों में विशेष प्रतिरक्षा कोशिकाओं -एलवाई6सी (एचआई) मोनोसाइट की संख्या में भी कमी दर्ज की।
जब इस अध्ययन को मानवों पर आजमाया गया, तो यह बात सामने नहीं आई कि सभी तरह के एंटीबायोटिक्स के सेवन से मस्तिष्क पर असर पड़ता है। जर्मनी के बर्लिन में मैक्स डेलब्रक सेंटर फॉर मोल्येकूलर मेडिसिन में एक शोधकर्ता सुसेन वुल्फ ने कहा कि “यह संभव है, क्योंकि एंटीबायोटिक्स के लंबे समय तक इस्तेमाल से इसी तरह का प्रभाव सामने आ सकता है”।
यह निष्कर्ष पत्रिका ‘सेल रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित हुआ है।
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