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This Article is From Jun 18, 2015

दक्षिण में ज़्यादा महंगी और एक्सपेरिमेंटल फिल्में बनती हैं : तमन्ना भाटिया

दक्षिण में ज़्यादा महंगी और एक्सपेरिमेंटल फिल्में बनती हैं : तमन्ना भाटिया
मुंबई: दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की एक फिल्म को तमिल और तेलुगू भाषाओं में कामयाबी हासिल करने के बाद अब हिन्दी में डब करके 'बाहुबली' के नाम से रिलीज़ किया जा रहा है। इस फिल्म की खासियत के बारे में बताया जा रहा है कि यह अब तक की सबसे महंगी फिल्म है, और इसका बजट करीब 170 करोड़ रुपये है।

'बाहुबली' के बारे में हमसे बातचीत के दौरान फिल्म की नायिका तमन्ना भाटिया ने वास्तविक रकम का ज़िक्र तो नहीं किया, लेकिन इतना ज़रूर कहा, "यह फिल्म बहुत महंगी और बड़ी है... सिर्फ पोस्ट प्रोडक्शन में ही एक साल का समय लग गया, जिससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि फिल्म कितनी महंगी होगी..."

अब अगर 'बाहुबली' के ट्रेलर को देखें तो सुन्दर दृश्यों के बीच खतरनाक एक्शन और बहुत बड़े पैमाने पर शूट की हुई फिल्म लगती है। यह युद्ध पर आधारित फिल्म है, सो, इसके पीछे लगी लागत पर्दे पर भी साफ नज़र आती है।

गौरतलब है कि दक्षिण भारत की फिल्मों में ऐसा पहली बार दिखाई नहीं दिया है। वहां के फिल्मकार बड़ी से बड़ी और महंगी से महंगी फिल्में बनाते रहने के लिए मशहूर हैं। वहां इतनी महंगी फिल्में बनाई जाती रही हैं कि देश की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री बॉलीवुड में भी उस तरह की बड़ी और ख़र्चीली फिल्में न के बराबर नज़र आती हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत के निर्देशक प्रायोगिक फिल्में भी खूब बनाते हैं।

दक्षिण के निर्देशक शंकर को ही लीजिए, जिन्होंने 'रोबोट' और हाल ही में रिलीज़ हुई 'आई' बनाई थीं। ये दोनों ही फिल्में स्पेशल इफेक्ट से भरपूर थीं, और उन्हें बेहद महंगी और उम्दा फिल्मों में शुमार किया जाता है। जहां तक हिन्दी फिल्मों का सवाल है, हाल के सालों में 'रा-वन' या 'कृष-3' स्पेशल इफेक्ट्स से भरपूर फिल्में आईं, लेकिन उनमें 'रोबोट' या 'आई' जैसी क्वालिटी नहीं दिखी।

साउथ की इंडस्ट्री के एक और स्टार राणा डग्गूबती का कहना है, "तेलुगू में युद्ध पर आधारित और ऐतिहासिक फिल्में लोग ज़्यादा पसंद करते हैं और ऐसी फिल्में ही ज़्यादा बनती हैं... ज़ाहिर है, ऐसी फिल्मों को बड़े पैमाने पर बनाना पड़ता है, जिसके लिए बड़े बजट की ज़रूरत होती है... वहीं हिन्दी फिल्मों में इस तरह की फिल्में बहुत कम देखी जाती हैं, सो, कम ही बनती हैं... मुझे 'मुग़ल-ए-आज़म' के अलावा कोई फिल्म याद नहीं आती, जिसे बहुत बड़े पैमाने पर बनाया गया हो..."

इस बारे में तमन्ना भाटिया का कहना है, "निर्देशकों का अपना-अपना विज़न होता है और शायद दक्षिण के निर्देशकों का विज़न ही ऐसा है..."

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