मुंबई:
दिल्ली का अक्षय नारंग (विशाल नायक) और जयपुर की पूनम उपाध्याय (सयानी गुप्ता) सालों से अकेले रह रहे अपने सिंगल पेरेंट्स के लिए जीवनसाथी तलाश रहे हैं... संयोग उन दोनों को मिला देता है, और वे दोनों अपने-अपने माता-पिता की ही शादी करा देते हैं... अब पूरा परिवार साथ रहने लगता है, लेकिन तभी एक बड़ी उलझन पैदा हो जाती है, क्योंकि एक दिन भावनाओं में बहकर अक्षय और पूनम जिस्मानी संबंध बना लेते हैं, और फिर, अक्षय एक कदम और आगे बढ़कर पूनम से शादी की जिद करने लगता है...
अब सवाल यह है कि चाहे अक्षय और पूनम के बायोलॉजिकल पेरेंट्स अलग-अलग हों, लेकिन इनके पेरेंट्स की एक-दूसरे से शादी हो जाने के बाद सामाजिक दृष्टि से तो ये भाई-बहन ही हुए, चाहे सौतेले ही सही... दूसरा सवाल, मां-बाप की शादी के साथ ही बच्चों में भाई-बहन वाली फीलिंग आ जानी चाहिए थी, लेकिन अक्षय में इस रिश्ते को लेकर कहीं कोई गिल्ट फीलिंग नहीं है... वह फीलिंग पूनम में है, लेकिन कुछ देर बाद वह भी इस रिश्ते को सिर्फ इसलिए नहीं बढ़ाना चाहती, क्योंकि वह अपनी मां का बसा-बसाया घर नहीं उजाड़ना चाहती... स्क्रिप्ट राइटर दिनकर शर्मा ने मां-बाप का तलाक करवाकर यह पहेली हल करने की कोशिश की है, लेकिन क्या रिश्ते सिर्फ कागज़ पर बनते−बिगड़ते हैं, क्योंकि फिल्म में तलाक के बाद भी पूरा परिवार साथ ही रह रहा है...
फ्रेश और सेन्सिटिव सब्जेक्ट के साथ रिश्तों की नज़ाकत और उलझन को डायरेक्टर गौरव पंजवानी ने बड़ी मैच्योरिटी से पेश किया है... कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि फिल्म खींची गई है... मिडिल एज के मां-बाप के बीच धीरे-धीरे पनपते सच्चे प्यार को मोहित चौहान और चारु रोहतगी ने खूबसूरती से अदा किया है... हालांकि जिस ढंग से पहली ही मुलाकात में मां-बाप शादी के लिए तैयार हो जाते हैं, उस पर यकीन नहीं होता... सयानी गुप्ता, मनजीत टाइगर, निकिता मोरे और अमित भीमरोट की अच्छी एक्टिंग है... म्यूज़िक और बैकग्राउंड स्कोर भी अच्छा है... कुछ क्लोज़अप्स को छोड़ दिया जाए तो सिनेमैटोग्राफी भी बढ़िया है...
सेकंड मैरिज डॉट कॉम अर्बन यूथ और मल्टीप्लेक्स ऑडियन्स को ध्यान में रखकर ज़रूर बनाई गई है, लेकिन सवाल यह है कि एक आम भारतीय कितना ही एडवान्स सोच वाला क्यों न हो जाए, क्या वह इस फिल्म में दिखाए गए रिश्ते को स्वीकारेगा... इस फिल्म के लिए हमारी रेटिंग है 2.5 स्टार...
अब सवाल यह है कि चाहे अक्षय और पूनम के बायोलॉजिकल पेरेंट्स अलग-अलग हों, लेकिन इनके पेरेंट्स की एक-दूसरे से शादी हो जाने के बाद सामाजिक दृष्टि से तो ये भाई-बहन ही हुए, चाहे सौतेले ही सही... दूसरा सवाल, मां-बाप की शादी के साथ ही बच्चों में भाई-बहन वाली फीलिंग आ जानी चाहिए थी, लेकिन अक्षय में इस रिश्ते को लेकर कहीं कोई गिल्ट फीलिंग नहीं है... वह फीलिंग पूनम में है, लेकिन कुछ देर बाद वह भी इस रिश्ते को सिर्फ इसलिए नहीं बढ़ाना चाहती, क्योंकि वह अपनी मां का बसा-बसाया घर नहीं उजाड़ना चाहती... स्क्रिप्ट राइटर दिनकर शर्मा ने मां-बाप का तलाक करवाकर यह पहेली हल करने की कोशिश की है, लेकिन क्या रिश्ते सिर्फ कागज़ पर बनते−बिगड़ते हैं, क्योंकि फिल्म में तलाक के बाद भी पूरा परिवार साथ ही रह रहा है...
फ्रेश और सेन्सिटिव सब्जेक्ट के साथ रिश्तों की नज़ाकत और उलझन को डायरेक्टर गौरव पंजवानी ने बड़ी मैच्योरिटी से पेश किया है... कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि फिल्म खींची गई है... मिडिल एज के मां-बाप के बीच धीरे-धीरे पनपते सच्चे प्यार को मोहित चौहान और चारु रोहतगी ने खूबसूरती से अदा किया है... हालांकि जिस ढंग से पहली ही मुलाकात में मां-बाप शादी के लिए तैयार हो जाते हैं, उस पर यकीन नहीं होता... सयानी गुप्ता, मनजीत टाइगर, निकिता मोरे और अमित भीमरोट की अच्छी एक्टिंग है... म्यूज़िक और बैकग्राउंड स्कोर भी अच्छा है... कुछ क्लोज़अप्स को छोड़ दिया जाए तो सिनेमैटोग्राफी भी बढ़िया है...
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