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This Article is From May 27, 2016

फिल्म रिव्यू : मसाला फिल्म है 'वीरप्पन' पर चटपटी नहीं, जाने रेटिंग

फिल्म रिव्यू : मसाला फिल्म है 'वीरप्पन' पर चटपटी नहीं, जाने रेटिंग
प्रतीकात्मक फोटो
मुंबई: इस फिल्मी फ्राइडे रिलीज हुई फिल्मों में से एक है 'वीरप्पन' जिसका निर्देशन राम गोपाल वर्मा ने किया है और निर्माता हैं रैना सचिन जोशी। फिल्म में संदीप भारद्वाज वीरप्पन के किरदार में हैं और इनके साथ मुख्य भमिकाओं में हैं सचिन जोशी, लीसा रे और ऊषा जाधव।

दक्षिण भारत के कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन की कहानी है 'वीरप्पन'। फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह वह इतना बड़ा तस्कर बना। उसने कितने लोगों और पुलिसवालों को मौत के घाट उतारा। साथ ही दिखाया गया है कि कितनी बार वह पुलिस को चकमा देने में कामयाब रहा। फिल्म के ज्यादातर हिस्से में दिखती है वीरप्पन को तलाश करके उसे मारने की कहानी।

स्क्रिप्ट कमजोर है...
खामियों की बात करें तो इसे मसाला फिल्म की तरह बनाया तो गया है, पर फिल्मांकन में चटपटापन नहीं। फिल्म देखने से पहले लगा था कि एक अच्छे रीसर्च के साथ फिल्म को वास्तविकता के करीब रखने की कोशिश की गई होगी, पर अफ़सोस ऐसा नहीं हुआ। स्क्रिप्ट कमजोर है साथ ही स्क्रीनप्ले भी। फिल्म के ज़्यादातर किरदारों का अभिनय भी कमज़ोर है। वीरप्पन के क़िरदार में संदीप वीरप्पन तो दिखते हैं पर अदाकारी में नहीं। डायलॉग डिलिवरी सपाट है और हाव भाव भी ज़्यादातर एक जैसे दिखते हैं।

कई अच्छे लोकेशन्स देखने मिलेंगे...
बैकग्राउंड स्कोर शोर मचाता है। बैकग्राउंड में वीरप्पन-वीरप्पन सुनते ही मन में सवाल उठते हैं कि एक अपराधी की आरती क्यों उतारी जा रही है। फिल्म में कई मोंटाज यानी छोटे छोटे सीन्स का संग्रह, फ़िल्म की गति को कम करता है। बात ख़ूबियों की करें तो पहली ख़ूबी है फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफ़ी जिसमें लोकेशन्स को बेहतरीन ढंग से फ़िल्माया गया है यानी फ़िल्म में आपको कई अच्छे लोकेशन्स देखने मिलेंगे।

एक्टिंग की छाप छोड़ती हैं ऊषा जाधव...
फ़िल्म की दूसरी ख़ूबी हैं ऊषा जाधव जो जब-जब स्क्रीन पर आती हैं एक्टिंग की छाप छोड़ती हैं। फ़िल्म में मुझे ख़ूबियां सिर्फ़ इतनी ही नज़र आईं। राम गोपाल वर्मा ने 'सत्या', 'शिवा' और 'कंपनी' जैसी फ़िल्में उस वक्त बनाईं जब हिंदी फ़िल्में घिसे-पिटे ढर्रे पर बन रही थीं। तब इनकी फ़िल्में और उनके क़िरदार भी रियल लगते थे। उन फ़िल्मों का फ़िल्मांकन वास्तविकता के क़रीब दिखता था तो सवाल है कि रामू यह हुनर अब कैसे और क्यों भूल गए?

रामू क्यों पुराने घिसे-पिटे फ़ॉर्म्यूले की ओर लौट रहे हैं। उनकी हालिया रिलीज़ फ़िल्मों को देखें तो लगता है कि वो फ़िल्म की शुरुआत में बेहद उत्साहित रहते हैं और शूटिंग के दौरान फ़िल्म से रूचि खो बैठते हैं। उम्मीद करते हैं वो अपने फ़ॉर्म में जल्द ही वापसी करेंगे।

मेरी ओर से फिल्म को 2 स्टार्स...

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