’रज्जो’ को डायरेक्ट किया है, विश्वास पाटिल ने। फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई है, कंगना रानाउत, पारस अरोड़ा, महेश मांजरेकर और प्रकाश राज ने।
फिल्म की कहानी का ताना-बाना बुना गया है, ’रज्जो’ यानी कंगना रानाउत के इर्द-गिर्द, जो पर्दे पर एक मुजरा करने वाली का किरदार निभा रही हैं और जिस इलाके में उनका कोठा है, वहां की मुखिया हैं बेगम, जिसका किरदार निभाया है महेश मांजरेकर ने।
कहानी आगे बढ़ती है, चंदू यानी पारस अरोड़ा की वजह से। चंदू और उनकी टीम एक क्रिकेट मैच जीत जाती है, जिसका जश्न मनाने के लिए वे 'रज्जो' के कोठे पर जा पहुंचते हैं और चंदू को 'रज्जो' से इश्क हो जाता है। इसके अलावा और भी साइड प्लॉट्स हैं कहानी में, लेकिन वह आपको फिल्म देखने के बाद की पता लगेंगे।
बात फिल्म में खामियों और खूबियों की। तो सबसे पहले खामियां, यह कहानी एक 80 के दशक की कहानी लगती है। स्किप्ट कमजोर है और स्क्रीनप्ले यानी जो कुछ स्क्रीन पर आपको घटते दिखेगा, उससे शायद आप खुद को बांध नहीं पाएं। अच्छा होता अगर डायरेक्टर विश्वास पाटिल एक ही कहानी पर ध्यान देते।
सीन्स ड्रामा या इमोशन पनपने से पहले ही खत्म हो जाते हैं। फिल्म की एडिटिंग भी आपको झटका देती है। डायलॉग हर जगह बहुत कमजोर लगते हैं।
अब बात फिल्म की खूबियों की। कंगना का अभिनय अच्छा है। उनके अभिनय और किरदार दोनों में ठहराव लगता है और वह स्क्रीन पर काफी कॉन्फिडेंट नजर आती हैं, पर यह सब एक कमजोर कहानी और स्क्रिप्ट के चलते खो जाता है। फिल्म में कंगना का डांस काबिल−ए−तारीफ है। कंगना के डांस की बारीकियों ने मुझे चौंका दिया।
उत्तम सिंह का म्यूजिक फिल्म के कैरेक्टर के साथ जाता है। ’ज़ुल्मी रे ज़ुल्मी’ के अलावा कुछ और गाने हैं जो आपको अच्छे लग सकते हैं मसलन कैसे ’मिलुं मैं’ जो मुझे पसंद आया। पारस अरोड़ा भी स्क्रीन पर कॉन्फिडेंट नजर आ रहे हैं, उन्होंने अच्छा काम किया है, पर जब फिल्म की बुनियाद ही कमजोर हो तो इमारत कौन बचा सकता है? मेरी तरफ से इस फिल्म को 2 स्टार्स।
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