नई दिल्ली:
शौचालय की कमी पर फिल्म बना रहे निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा वास्तव में उन झोपड़ियों में शौचालय बना रहे हैं जहां वह शूटिंग कर रहे है. फिल्मकार अपनी अगली फिल्म 'मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर' को घाटकोपर की एक झुग्गी बस्ती में फिल्मा रहे हैं. ऐसे में जिन झुग्गियों को बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) से एनओसी मिल गई है, वहां शौचालयों का निर्माण करने जा रहे है. राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने अब अगले 4 सालों में 800 टाॅयलेट बनाने का टारगेट रखा है. 'रंग दे बसंती' और 'भाग मिल्खा भाग' जैसी फिल्मों के लिए प्रसिद्ध राकेश ओम प्रकाश मेहरा, पिछले चार सालों से एनजीओ युवा अनस्टॉपबल के साथ मिलकर काम कर रहे है.
जब इस विषय पर उनसे सवाल किया गया, तो इस बात पर जोर देते हैं कहा कि उनका योगदान 'सागर में एक बूंद भी नहीं है. उन्होंने कहा, ' हम सिर्फ शौचालय का निर्माण कर वहां से चले नहीं जाते, बल्कि हम यह भी ध्यान रखते हैं कि स्थानीय लोग सही से उसकी देख-रेख भी करें. हम क्षेत्र के झुग्गी-झोपड़ियों और नगरसेवकों के साथ बैठक कर रहे हैं, जिसमें हम उन्हें एक रुपया दान देने के लिए कह रहे हैं ताकि समुदाय के कर्मचारियों को उनके बकाया दे सकें.
साबरमती आश्रम में गांधी के आदर्श शौचालयों से प्रेरित हो कर अब अगर 4 सालों में 800 शौचालयों का निर्माण करने का मन बना चुके मेहरा ने कहा कि, 'नए शौचालय प्राइवेट इमारतों जितने अच्छे है. उचित पाइपलाइन और एक्सटेंशन नल के साथ वे स्वच्छ पेयजल प्राप्त कर सकते हैं. झुग्गी निवासियों के पास टीवी सेट और मोबाइल फोन हैं लेकिन कोई शौचालय नहीं है और ऐसे में मानसून के दौरान रेलवे ट्रैक पर शौच करने पर मजबूर हो जाते है.'
राकेश ओमप्रकाश मेहरा अब पवई झील के पीछे एक झुग्गी बस्ती में शूटिंग कर रहे हैं. उनकी फिल्म मुंबई की झोपड़ी में रह रहे चार बच्चों के चारों ओर घूमती है. उनमें से एक बच्चा अपनी मां के लिए शौचालय बनाना चाहता है और इसलिये प्रधानमंत्री से अपील करता है. मेहरा के लिए सबसे बड़ी बाधा यह थी कि शहर की झोपड़ियां बीएमसी के स्वामित्व वाली अनधिकृत भूमि पर बनाई गई हैं और इसिलए वे कानूनी रूप से वहां शौचालय नहीं बना सकते थे. क्योंकि वहां न तो पाइपलाइन थी न पानी.
जब इस विषय पर उनसे सवाल किया गया, तो इस बात पर जोर देते हैं कहा कि उनका योगदान 'सागर में एक बूंद भी नहीं है. उन्होंने कहा, ' हम सिर्फ शौचालय का निर्माण कर वहां से चले नहीं जाते, बल्कि हम यह भी ध्यान रखते हैं कि स्थानीय लोग सही से उसकी देख-रेख भी करें. हम क्षेत्र के झुग्गी-झोपड़ियों और नगरसेवकों के साथ बैठक कर रहे हैं, जिसमें हम उन्हें एक रुपया दान देने के लिए कह रहे हैं ताकि समुदाय के कर्मचारियों को उनके बकाया दे सकें.
साबरमती आश्रम में गांधी के आदर्श शौचालयों से प्रेरित हो कर अब अगर 4 सालों में 800 शौचालयों का निर्माण करने का मन बना चुके मेहरा ने कहा कि, 'नए शौचालय प्राइवेट इमारतों जितने अच्छे है. उचित पाइपलाइन और एक्सटेंशन नल के साथ वे स्वच्छ पेयजल प्राप्त कर सकते हैं. झुग्गी निवासियों के पास टीवी सेट और मोबाइल फोन हैं लेकिन कोई शौचालय नहीं है और ऐसे में मानसून के दौरान रेलवे ट्रैक पर शौच करने पर मजबूर हो जाते है.'
राकेश ओमप्रकाश मेहरा अब पवई झील के पीछे एक झुग्गी बस्ती में शूटिंग कर रहे हैं. उनकी फिल्म मुंबई की झोपड़ी में रह रहे चार बच्चों के चारों ओर घूमती है. उनमें से एक बच्चा अपनी मां के लिए शौचालय बनाना चाहता है और इसलिये प्रधानमंत्री से अपील करता है. मेहरा के लिए सबसे बड़ी बाधा यह थी कि शहर की झोपड़ियां बीएमसी के स्वामित्व वाली अनधिकृत भूमि पर बनाई गई हैं और इसिलए वे कानूनी रूप से वहां शौचालय नहीं बना सकते थे. क्योंकि वहां न तो पाइपलाइन थी न पानी.
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