इस हफ्ते रिलीज़ हुई है सत्याग्रह जिसे डायरेक्ट किया है प्रकाश झा ने। ये फिल्म कहानी है द्वारका यानी की अमिताभ बच्चन की जिनका बेटा है अखिलेश यानी इंद्रनील सेन गुप्ता जो कि एक इंजीनियर है और अखिलेश के दोस्त हैं मानव यानी अजय देवगन जो कि एक बिज़नेस टायकून हैं। अखिलेश की पत्नी के किरदार में हैं अमृता राव और करीना कपूर निभा रही हैं एक पत्रकार की भूमिका।
सत्याग्रह कहानी है अंबिकापुर की जहां अमिताभ बच्चन के बेटे अखिलेश एक इंजीनियर हैं और जिस पुल का डिज़ाइन उन्होंने बनाया है वह टूट जाता है और फिर अखिलेश की एक एक्सीडेंट में मौत हो जाती है। मंत्री बलराम बने मनोज बाजपेयी अखिलेश के परिवार को 25 लाख का मुआवज़ा देते हैं पर भ्रष्टाचार के चलते यह पैसा अखिलेश के परिवार को नहीं मिल पाता और फिर इस भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाते हैं अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, अमृता राव और छुटभैया नेता के किरदार में अर्जुन रामपाल। इनका साथ देती हैं यास्मीन यानि करीना कपूर बतौर पत्रकार और शुरू होता है सत्याग्रह।
सबसे पहली बात प्रोमोज़ देखकर लग रहा था कि कहीं यह फिल्म हमें सिर्फ वही न परोसे जो गुजरे वक्त में हम न्यूज़ चैनल पर देखते आ रहे हैं पर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ। डायरेक्टर प्रकाश झा ने ख़ूबसूरती के साथ अन्ना के आंदोलन जैसी घटनाओं को इंसानी रिश्तों के साथ पिरोया है। फिल्म देखते वक्त एक लाचार बाप का दुख और एक दोस्त की पीड़ा आपकी आंखों को नम होने पर मज़बूर कर देगी। वास्तविकता को जब भी पर्दे पर उतारा गया है कहीं न कहीं सेट पर ये सीन नकली लगते हैं लेकिन प्रकाश झा को यहा पर फुल मार्क्स।
अन्ना के आंदोलन में आपने बहुत सा गाना-बजाना, बैंड और संगीत देखा होगा और ऐसी ही चीज़ों को प्रकाश झा ने फिल्म मे पूरी सच्चाई के साथ इस्तेमाल किया है। यहां तक कि एक सीन में उन्होंने इंडियन ओसेन बैंड का भी इस्तेमाल किया है। फिल्म की फिलॉसफी आपको भारी नहीं लगती बल्कि इमोशन के साथ बड़ी आसानी के साथ उसे पचा लेते हैं। अभिनय की बात करें तो अजय देवगन, अमिताभ बच्चन और मनोज वाजपेयी की ज़बरदस्त परफॉरमेंस है। साथ ही करीना कपूर का भी बेहतरीन काम है और अमृता राव और अर्जुन रामपाल फिल्म को मज़बूत करते हैं। गानों में मधुरता है।
खटकने की बात है कि करीना कपूर एक पत्रकार होने के बावजूद कई बार फिल्म में अमिताभ बच्चन और अजय देवगन की टीम का हिस्सा लगती हैं। बतौर पत्रकार उनके कई सीन सत्याग्रह के मंच पर दिखे जहा द्वारका यानी अमिताभ बच्चन अनशन कर रहे हैं। एक और बात… क्लाइमैक्स की तरफ जाते हुए कहानी थोड़ी सी डगमगाती है... और वहां दर्शक वास्तविकता और कल्पना के बीच में उलझ जाते हैं। मेरी ओर से इस फिल्म को 3.5 स्टार्स।
सत्याग्रह कहानी है अंबिकापुर की जहां अमिताभ बच्चन के बेटे अखिलेश एक इंजीनियर हैं और जिस पुल का डिज़ाइन उन्होंने बनाया है वह टूट जाता है और फिर अखिलेश की एक एक्सीडेंट में मौत हो जाती है। मंत्री बलराम बने मनोज बाजपेयी अखिलेश के परिवार को 25 लाख का मुआवज़ा देते हैं पर भ्रष्टाचार के चलते यह पैसा अखिलेश के परिवार को नहीं मिल पाता और फिर इस भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाते हैं अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, अमृता राव और छुटभैया नेता के किरदार में अर्जुन रामपाल। इनका साथ देती हैं यास्मीन यानि करीना कपूर बतौर पत्रकार और शुरू होता है सत्याग्रह।
सबसे पहली बात प्रोमोज़ देखकर लग रहा था कि कहीं यह फिल्म हमें सिर्फ वही न परोसे जो गुजरे वक्त में हम न्यूज़ चैनल पर देखते आ रहे हैं पर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ। डायरेक्टर प्रकाश झा ने ख़ूबसूरती के साथ अन्ना के आंदोलन जैसी घटनाओं को इंसानी रिश्तों के साथ पिरोया है। फिल्म देखते वक्त एक लाचार बाप का दुख और एक दोस्त की पीड़ा आपकी आंखों को नम होने पर मज़बूर कर देगी। वास्तविकता को जब भी पर्दे पर उतारा गया है कहीं न कहीं सेट पर ये सीन नकली लगते हैं लेकिन प्रकाश झा को यहा पर फुल मार्क्स।
अन्ना के आंदोलन में आपने बहुत सा गाना-बजाना, बैंड और संगीत देखा होगा और ऐसी ही चीज़ों को प्रकाश झा ने फिल्म मे पूरी सच्चाई के साथ इस्तेमाल किया है। यहां तक कि एक सीन में उन्होंने इंडियन ओसेन बैंड का भी इस्तेमाल किया है। फिल्म की फिलॉसफी आपको भारी नहीं लगती बल्कि इमोशन के साथ बड़ी आसानी के साथ उसे पचा लेते हैं। अभिनय की बात करें तो अजय देवगन, अमिताभ बच्चन और मनोज वाजपेयी की ज़बरदस्त परफॉरमेंस है। साथ ही करीना कपूर का भी बेहतरीन काम है और अमृता राव और अर्जुन रामपाल फिल्म को मज़बूत करते हैं। गानों में मधुरता है।
खटकने की बात है कि करीना कपूर एक पत्रकार होने के बावजूद कई बार फिल्म में अमिताभ बच्चन और अजय देवगन की टीम का हिस्सा लगती हैं। बतौर पत्रकार उनके कई सीन सत्याग्रह के मंच पर दिखे जहा द्वारका यानी अमिताभ बच्चन अनशन कर रहे हैं। एक और बात… क्लाइमैक्स की तरफ जाते हुए कहानी थोड़ी सी डगमगाती है... और वहां दर्शक वास्तविकता और कल्पना के बीच में उलझ जाते हैं। मेरी ओर से इस फिल्म को 3.5 स्टार्स।
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