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This Article is From Jul 21, 2017

Movie Review: दमदार किरदारों के आसपास घूमती कहानी है 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का'

फिल्‍म की सबसे बड़ी खूबी है इसका स्क्रीन्प्ले, जिसे काफी खूबसूरती से लिखा गया है. दूसरी मजबूत कड़ी है इस फिल्‍म के किरदार जिन्हें शानदार तरीके से गढ़ा गया है.

Movie Review: दमदार किरदारों के आसपास घूमती कहानी है 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का'
'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' की निर्देशक अलंकृता श्रीवास्‍तव हैं.
नई दिल्‍ली:

डायरेक्‍टर अलंकृता श्रीवास्‍तव की फिल्‍म 'ल‍िपस्टिक अंडर माई बुर्का' महिलाओं की आकांक्षाओं की कहानी कहती है, फिर चाहे वो किसी भी उम्र, धर्म या समाज की हों.  इस फिल्‍म में एक महिला की पूरी जिंदगी की कहानी चार पात्रों द्वारा कही गयी है जो उम्र के अलग पड़ाव पर हैं. किस तरह यह महिलाएं समाज, परिवार और रवायतों की बंदिशों में जकड़ी हुई अपनी आकांक्षाओं का गला घोंट कर उन्हें जीने को मजबूर करती हैं. इस फिल्‍म में रिहाना ( पलाबिता बोरठाकुर) बुर्के में कैद, अपने सपनों और चाहतों को परिवार की परंपराओं के बंधनों से आजाद करना चाहती हैं, वहीं दूसरी तरफ लीला (आहाना कुमरा) एक ब्यूटी पार्लर चलती है, पर उसके सपने भोपाल की तंग गलियों से निकलना चाहते हैं.

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तीसरी महिला हैं बुआ जी (रत्ना पाठक शाह ) जो की विधवा हैं और उन्हें अकेलेपन से छुटकारा पाने की चाहत है. चौथी महिला है शीरीन ( कोंकणा सेन) जो की कमाल की सेल्स गर्ल हैं. शीरीन तीन बच्चों की मां हैं और उन्हें सिर्फ एक महिला की तरह इस्तेमाल होना नामंजूर है. यह हैं फिल्‍म की चार मुख्‍य किरदार और इन्‍हीं के आसपास फिल्‍म की कहानी घूमती है. इसके अलावा फिल्‍म में एक्‍टर विक्रांत मैसी और  सुशांत सिंह भी नजर आएंगे. अलंकृता श्रीवास्तव की इस फिल्‍म में जेबुनिस्सा बंगेश और मंगेश धाकड़े ने अपना संगीत दिया है और इसके सिनेमेटोग्राफर हैं अक्षय सिंह.

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फिल्‍म की खामियों की बात करें तो, मैं इसे फिल्‍मकार की नहीं, बल्कि समय की कमी मानता हूं क्‍योंकि इस तरह के विषय पर पहले भी फिल्‍में बन चुकी हैं और जो हाल ही की फिल्‍म मुझे याद आती है, वह है 'पार्च्ट'. तुलना की जाए तो उस फिल्‍म में भी कहानी की आत्मा 'ल‍िपस्टिक अंडर माई बुर्का' जैसी ही थी, लेकिन हर फिल्‍मकार को अपनी तरह से अपनी कहानी कहने का हक है पर बतौर आलोचक मेरी मुश्किल ये हो जाती है की विषय में फिर उतना नयापन नहीं लगता. 
 

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इसके अलावा फिल्‍म की दूसरी कमी है फिल्‍म में इंटरवेल के बाद का थोड़ा सा हिस्सा, जहां फिल्‍म की कहानी की गति कम हो जाती है. इसके अलावा अगर देखें तो यह  फिल्‍म समाज के सिर्फ एक वर्ग यानी मध्‍यम वर्ग या नीचले माध्यम वर्ग की कहानी कहती है. अगर उच्च वर्ग की भी बात होती तो शायद रेंज और बढ़ जाती.

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फिल्‍म की खूबियों की बात करें तो इसकी सबसे बड़ी खूबी है इसका स्क्रीन्प्ले, जिसे काफी खूबसूरती से लिखा गया है. दूसरी मजबूत कड़ी है इस फिल्‍म के किरदार जिन्हें शानदार तरीके से गढ़ा गया है. जैसा मैंने कहा की फिल्‍म का विषय 'पार्च्‍ड' जैसा है पर भोपाल में घटती ये फिल्म और इसके किरदार आपको शायद ही अहसास होने देंगे की इस तरह की कहानी आप पहले भी देख चुके हैं.

कहते हैं किसी भी फिल्‍म की कहानी को अगर अच्छे ऐक्टर मिल जाएं तो किरदारों में जान आ जाती है और ऐसा ही दमदार अभिनय किया है रत्ना, कोंकणा, आहाना और पलाबिता ने. इन सब के ऊपर हैं इस फिल्‍म की निर्देशक अलंकृता, जिन्‍होंने एक शानदार निर्देशन किया है. इसके अलावा फिल्‍म का संगीत भी मुझे अच्छा लगा, खासकर बैकग्राउंड स्कोर. इस फिल्‍म को मेरी तरफ से मिलते हैं 3.5 स्‍टार.

VIDEO: 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' के कलाकारों से खास मुलाकात.



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