गीतकार इरशाद कामिल
नई दिल्ली:
एनडीटीवी यूथ फॉर चेंज कॉनक्लेव के “म्यूजिक आजकल” सेशन में गीतकार इरशाद कामिल ने कहा कि वे हमेशा उस तरह के गाने लिखते हैं, जिस तरह के कैरेक्टर होते हैं. मंच का संचालन नगमा सहर ने किया जबकि इस सेशन में इरशाद के अलावा गायिका नीति मोहन, गायक अरमान मलिक और संगीतकार जोड़ी सचिन-जिगर भी मौजूद थे. इरशाद कामिल ने कहा, “जैसा कैरेक्टर होता है वैसे ही मैं उसको आगे बढ़ाता हूं. कहानियां आपको किरदार देती हैं. बतौर गीतकार आपको वह किरदार बार-बार बनना पड़ता है. बिना किरदार को जाने मेरे लिए गीत लिखना बहुत मुश्किल होता है. इसलिए न तो मैं आइटम सॉन्ग लिखता हूं और न ही रोमांटिक सॉन्ग. मैं किरदार के लिए गाना लिखता हूं.”
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जैसी फिल्में, वैसे गीत
गीतों में आ रहे बदलाव के बारे में इरशाद ने कहा, “मुझे सबसे पहले यह लगता है कि जिस तरह की फिल्में बन रही हैं. उसी तरह का संगीत बन रहा है. आजकल जमीन से उठी हुई कहानियां आ रही हैं और मौजूदा समाज को दिखाया जा रहा है. पहले सोशल मैसेज देने वाली कहानियां वह बनती थीं जो इतिहास का हिस्सा होती थीं. आज ज्यादा फिल्में समाज से निकली हुई कहानियां हैं. जैसे पिंक और दंगल. हकीकत के काफी करीब हैं. इस तरह की फिल्मों में म्यूजिक का स्कोप कम हो जाता है.”
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किससे सीखा
उन्होंने बताया, "कोई एक गीतकार नहीं है. कई सारे लोगों से थोड़ा-थोड़ा सीखा. जैसे साहिर साहेब में रूमानियत में फिलॉसफी डालने का जो तरीका है वह बहुत खूबसूरत है. शैलेंद्र साहेब फोक लेकर आते हैं. मजरूह अपने लिखने के हुनर में बहुत पक्के हैं. विरासत को लेकर आगे जाना आपकी जिम्मेदारी नहीं है. लेकिन अपने लेवल पर अच्छा काम करना आपकी जिम्मेदारी है. जो आपको बेहतर इंसान नहीं बनाता उस पर सवाल उठना चाहिए. जो गीत सुनकर आपको सुकून मिलता हो वह किसी का भी लिखा हो वह अच्छी ही चीज है."
एक बड़ा काम
"बतौर गीतकार मैंने शुरुआत चमेली से की थी. 2007 में जब वी मेट आई और चीजें पूरी तरह बदल गईं. एक्टर फिल्म हिट हो जाए तो सुपरस्टार बन जाता है. लेकिन गीतकार के गाने हिट हो जाए तो वह सुपरस्टार नहीं होता. लफ्ज के चेहरे नहीं होते. लफ्ज सिर्फ एहसास होता है. गाना किसने लिखा है उसे जानने में मेहनत करनी पढ़ती है.
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जैसी फिल्में, वैसे गीत
गीतों में आ रहे बदलाव के बारे में इरशाद ने कहा, “मुझे सबसे पहले यह लगता है कि जिस तरह की फिल्में बन रही हैं. उसी तरह का संगीत बन रहा है. आजकल जमीन से उठी हुई कहानियां आ रही हैं और मौजूदा समाज को दिखाया जा रहा है. पहले सोशल मैसेज देने वाली कहानियां वह बनती थीं जो इतिहास का हिस्सा होती थीं. आज ज्यादा फिल्में समाज से निकली हुई कहानियां हैं. जैसे पिंक और दंगल. हकीकत के काफी करीब हैं. इस तरह की फिल्मों में म्यूजिक का स्कोप कम हो जाता है.”
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किससे सीखा
उन्होंने बताया, "कोई एक गीतकार नहीं है. कई सारे लोगों से थोड़ा-थोड़ा सीखा. जैसे साहिर साहेब में रूमानियत में फिलॉसफी डालने का जो तरीका है वह बहुत खूबसूरत है. शैलेंद्र साहेब फोक लेकर आते हैं. मजरूह अपने लिखने के हुनर में बहुत पक्के हैं. विरासत को लेकर आगे जाना आपकी जिम्मेदारी नहीं है. लेकिन अपने लेवल पर अच्छा काम करना आपकी जिम्मेदारी है. जो आपको बेहतर इंसान नहीं बनाता उस पर सवाल उठना चाहिए. जो गीत सुनकर आपको सुकून मिलता हो वह किसी का भी लिखा हो वह अच्छी ही चीज है."
एक बड़ा काम
"बतौर गीतकार मैंने शुरुआत चमेली से की थी. 2007 में जब वी मेट आई और चीजें पूरी तरह बदल गईं. एक्टर फिल्म हिट हो जाए तो सुपरस्टार बन जाता है. लेकिन गीतकार के गाने हिट हो जाए तो वह सुपरस्टार नहीं होता. लफ्ज के चेहरे नहीं होते. लफ्ज सिर्फ एहसास होता है. गाना किसने लिखा है उसे जानने में मेहनत करनी पढ़ती है.
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