मुंबई:
भारतीय बॉक्स ऑफिस पर 'द अमेज़िन्ग स्पाइडरमैन' के सामने उतारी गई है, 'सुपरमैन ऑफ मालेगांव'... हालांकि यह एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म है, लेकिन इसे फीचर फिल्म की तरह रिलीज़ किया गया है... यह डॉक्यूमेंट्री बताती है कि कैसे मुंबई से 300 किलोमीटर दूर मालेगांव शहर में 'मालेगांव का सुपरमैन' नाम की फिल्म बनाई गई थी, जिसमें हॉलीवुड की सुपरमैन फिल्मों का मज़ाक उड़ाया गया था...
डायरेक्टर फैज़ा अहमद ने अपनी यह डॉक्यूमेंट्री 'मालेगांव का सुपरमैन' की शूटिंग के दौरान ही फिल्माई थी, जिसमें मालेगांव की, छोटी-सी, गरीब, तकनीक और सुविधाओं से कोसों दूर फिल्म इंडस्ट्री दिखाई गई है, लेकिन ये मुसीबतें फिल्म 'मालेगांव का सुपरमैन' के डायरेक्टर शेख नासिर, राइटर फरोघ जाफरी और बाकी टीम का हौसला नहीं तोड़ पातीं, और ये लोग हैन्डीकैम पर अपनी फिल्म शूट करते हैं...
इस डॉक्यूमेंट्री में जानिए कि कैसे पॉवरलूम इंडस्ट्री का मजदूर शफ़ीक छुट्टी लेकर सुपरमैन का रोल करता है, जो पिछले साल कैंसर की वजह से नहीं रहा... जिस ढंग से मालेगांव वाले रिक्शा, मोटरसाइकिल, ट्रॉली और खंभे की मदद से अपने सुपरमैन को हवा में उड़ाते हैं, उसे देखकर आप हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएंगे... यह शख्स सुपरमैन का रोल भी करता है, और अपनी फिल्म टीम का सामान भी ढोता है... आप यह भी जानेंगे कि कैसे मालेगांव की फिल्मों में लड़कों को लड़कियों के रोल करने पड़ते हैं...
दिलचस्प बात यह है कि जहां ओरिजनल फिल्म 'मालेगांव का सुपरमैन' सिर्फ एक लाख रुपये में बन गई थी, वहीं उसकी मेकिंग पर बनी यह डॉक्यूमेंट्री 'सुपरमैन ऑफ मालेगांव' 24 लाख रुपये में बनी है... 'सुपरमैन ऑफ मालेगांव' सिनेमा स्टूडेंट्स और फिल्ममेकिंग में दिलचस्पी रखने वालों के लिए तो है ही, इससे भी ज़्यादा आम आदमी के लिए देखने लायक है फिल्म बनाने को लेकर मालेगांव वालों का जज़्बा... 'सुपरमैन ऑफ मालेगांव' के लिए हमारी रेटिंग है - 3 स्टार...
डायरेक्टर फैज़ा अहमद ने अपनी यह डॉक्यूमेंट्री 'मालेगांव का सुपरमैन' की शूटिंग के दौरान ही फिल्माई थी, जिसमें मालेगांव की, छोटी-सी, गरीब, तकनीक और सुविधाओं से कोसों दूर फिल्म इंडस्ट्री दिखाई गई है, लेकिन ये मुसीबतें फिल्म 'मालेगांव का सुपरमैन' के डायरेक्टर शेख नासिर, राइटर फरोघ जाफरी और बाकी टीम का हौसला नहीं तोड़ पातीं, और ये लोग हैन्डीकैम पर अपनी फिल्म शूट करते हैं...
इस डॉक्यूमेंट्री में जानिए कि कैसे पॉवरलूम इंडस्ट्री का मजदूर शफ़ीक छुट्टी लेकर सुपरमैन का रोल करता है, जो पिछले साल कैंसर की वजह से नहीं रहा... जिस ढंग से मालेगांव वाले रिक्शा, मोटरसाइकिल, ट्रॉली और खंभे की मदद से अपने सुपरमैन को हवा में उड़ाते हैं, उसे देखकर आप हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएंगे... यह शख्स सुपरमैन का रोल भी करता है, और अपनी फिल्म टीम का सामान भी ढोता है... आप यह भी जानेंगे कि कैसे मालेगांव की फिल्मों में लड़कों को लड़कियों के रोल करने पड़ते हैं...
दिलचस्प बात यह है कि जहां ओरिजनल फिल्म 'मालेगांव का सुपरमैन' सिर्फ एक लाख रुपये में बन गई थी, वहीं उसकी मेकिंग पर बनी यह डॉक्यूमेंट्री 'सुपरमैन ऑफ मालेगांव' 24 लाख रुपये में बनी है... 'सुपरमैन ऑफ मालेगांव' सिनेमा स्टूडेंट्स और फिल्ममेकिंग में दिलचस्पी रखने वालों के लिए तो है ही, इससे भी ज़्यादा आम आदमी के लिए देखने लायक है फिल्म बनाने को लेकर मालेगांव वालों का जज़्बा... 'सुपरमैन ऑफ मालेगांव' के लिए हमारी रेटिंग है - 3 स्टार...
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
फिल्म समीक्षा, फिल्म रिव्यू, Film Review, Vijay Vashishtha, विजय वशिष्ठ, विजय दिनेश वशिष्ठ, सुपरमैन ऑफ मालेगांव, मालेगांव का सुपरमैन, Malegaon Ka Superman, Superman Of Malegaon