मुंबई:
'इंग्लिश विंग्लिश' से श्रीदेवी 15 साल बाद फिल्मों में वापसी कर रही हैं और गौरी शिंदे बतौर डाइरेक्टर डेब्यू कर रही हैं। 'इंग्लिश विंग्लिश' कहानी है एक गृहणी शशि गोडबोले (श्रीदेवी) की जो अपने पति और बच्चों के साथ एक खुशहाल जिंदगी बिता रही है।
घर की देखरेख के साथ शशि लड्डू बनाने का साइड बिज़नेस भी करती हैं, लेकिन शशि की ज़िंदगी में बस एक ही कमी है...उन्हें अंग्रेजी नहीं आती, जिसकी वजह से कई बार उनके पति और बच्चे उनका मज़ाक उड़ाते हैं। इसके चलते वह अपमानित महसूस करती है।
यही है इस फ़िल्म की कहानी की नींव…आगे की कहानी मैं नहीं बताऊंगा, लेकिन यह ज़रूर कहूंगा कि श्रीदेवी ने धमाकेदार वापसी की है। फिल्म में श्रीदेवी की बेहतरीन परफ़ॉर्मेंस है। कहानी साधारण है, पर फ़िल्म में कई खूबसूरत मोमेंट्स हैं। यह गौरी शिंदे का डाइरेक्शन ही है, जिसने एक साधारण सी कहानी को एक अच्छी फ़िल्म में तब्दील कर दिया।
सभी क़िरदार अपनी जगह पर बखूबी जंचे हैं, पर फ्रेंच एक्टर मेहदी नेब्बोऊ के बेहतरीन अभिनय ने श्रीदेवी के क़िरदार को और निखारा है। अमिताभ बच्चन की गेस्ट अपीयरेंस चेहरे पर मुस्कान ले आती है। बड़ी आसानी से निर्देशक ने यह संदेश भी दे दिया कि भाषा ज़रूरी है, लेकिन इतनी नहीं कि वह भावनाओं को मोहताज बनाए। यह संदेश आपको मेहदी और श्रीदेवी के साथ फ़िल्माए गए कई सीन्स में मिलेगा।
अब बात कुछ खामियों की... आज की 'फास्ट पेस' और 'ग्लॉसी' फ़िल्मों के मुकाबले इस फ़िल्म की रफ्तार थोड़ी धीमी है। दूसरा, फ़िल्म में श्रीदेवी की बेटी का क़िरदार थोड़ा अटपटा लगा, क्योंकि हिंदुस्तान में इस उम्र के बच्चे अपनी मां से इतना अभद्र व्यवहार नहीं कर सकते, जैसा फ़िल्म में दिखाया गया है। क्लाइमैक्स सीन को थोड़ा और दमदार बनाने की ज़रूरत थी, पर कुल मिलाकर एक अच्छी पारिवारिक फ़िल्म...इसके लिए मेरी रेटिंग है 3 स्टार...
घर की देखरेख के साथ शशि लड्डू बनाने का साइड बिज़नेस भी करती हैं, लेकिन शशि की ज़िंदगी में बस एक ही कमी है...उन्हें अंग्रेजी नहीं आती, जिसकी वजह से कई बार उनके पति और बच्चे उनका मज़ाक उड़ाते हैं। इसके चलते वह अपमानित महसूस करती है।
यही है इस फ़िल्म की कहानी की नींव…आगे की कहानी मैं नहीं बताऊंगा, लेकिन यह ज़रूर कहूंगा कि श्रीदेवी ने धमाकेदार वापसी की है। फिल्म में श्रीदेवी की बेहतरीन परफ़ॉर्मेंस है। कहानी साधारण है, पर फ़िल्म में कई खूबसूरत मोमेंट्स हैं। यह गौरी शिंदे का डाइरेक्शन ही है, जिसने एक साधारण सी कहानी को एक अच्छी फ़िल्म में तब्दील कर दिया।
सभी क़िरदार अपनी जगह पर बखूबी जंचे हैं, पर फ्रेंच एक्टर मेहदी नेब्बोऊ के बेहतरीन अभिनय ने श्रीदेवी के क़िरदार को और निखारा है। अमिताभ बच्चन की गेस्ट अपीयरेंस चेहरे पर मुस्कान ले आती है। बड़ी आसानी से निर्देशक ने यह संदेश भी दे दिया कि भाषा ज़रूरी है, लेकिन इतनी नहीं कि वह भावनाओं को मोहताज बनाए। यह संदेश आपको मेहदी और श्रीदेवी के साथ फ़िल्माए गए कई सीन्स में मिलेगा।
अब बात कुछ खामियों की... आज की 'फास्ट पेस' और 'ग्लॉसी' फ़िल्मों के मुकाबले इस फ़िल्म की रफ्तार थोड़ी धीमी है। दूसरा, फ़िल्म में श्रीदेवी की बेटी का क़िरदार थोड़ा अटपटा लगा, क्योंकि हिंदुस्तान में इस उम्र के बच्चे अपनी मां से इतना अभद्र व्यवहार नहीं कर सकते, जैसा फ़िल्म में दिखाया गया है। क्लाइमैक्स सीन को थोड़ा और दमदार बनाने की ज़रूरत थी, पर कुल मिलाकर एक अच्छी पारिवारिक फ़िल्म...इसके लिए मेरी रेटिंग है 3 स्टार...
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