फिल्म फोबिया का एक दृश्य।
मुंबई:
इस शुक्रवार को रिलीज़ हुई फिल्मों में 'फोबिया' दर्शकों के बीच बेहद चर्चा में शुरू से है। इरोज इंटनेशनल के नेक्स्ट जेन फिल्म्स के बैनर तले बनी 'फोबिया' को डायरेक्ट किया है पवन कृपलानी ने और निर्माता हैं विक्की रजानी। फिल्म के अहम किरदारों में शामिल हैं राधिका आप्टे, सत्यदीप मिश्रा और अंकुर विकल। फोबिया का मतलब है डर जिस पर फिल्म आधारित है।
भय का गहरा असर बनाया विषय
महक यानी राधिका आप्टे एक पेंटर हैं। एक दिन अपनी प्रदर्शनी के बाद रात में टैक्सी से घर लौटते वक्त ड्राइवर उनका बलात्कार करने की कोशिश करता है। यह हादसा उन्हें भय की दुनिया में ले जाता है। इस हादसे का असर उन पर इतना गहरा होता है कि वे घर से निकलने में भी डरती हैं। यह पूरी कहानी नहीं बल्कि कहानी की महज शुरुआत है क्योंकि असल किस्सा यहां से शुरू होता है जिसमें आप महक के फोबिया यानी डर से वाकिफ होंगे और अंत तक बिना उठे दिमागी जद्दोज़हद से गुजरेंगे।
कुछ गैरजरूरी प्रतीकात्मक दृश्य
खामियों की बात करें तो ज्यादा नहीं पर थोड़ी खिंची हुई फिल्म नजर आती है, यानी ढीली पड़ती है, क्योंकि स्क्रीन पर परतें आहिस्ता-आहिस्ता खुलती हैं। फिल्म के कुछ दृश्य प्रतीकात्मक हैं जिनमें से एक-दो मुझे अटपटे लगे जिनकी जरूरत फिल्म में नहीं थी। उदाहरण के तौर पर एक सीन जहां टैक्सी ड्राइवर ज़ॉम्बीज़ यानी जिंदा लाश की तरह नजर आते हैं। फिल्म में ऐसे दृश्य इसलिए डाले जाते हैं ताकि दर्शकों को डराया जा सके। पर ऐसा हॉरर फिल्में करती आई हैं इसलिए इस थ्रिलर फिल्म में इससे बचा जा सकता था। वैसे यह सीन इतना लंबा भी नहीं इसलिए आपको शायद महसूस भी न हो।
दर्शकों को बांधे रखने की क्षमता
अब बात ख़ूबियों की, 'फोबिया' एक बेहतरीन साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्म है जिसके फिल्मांकन से लेकर लिखाई तक एक ताज़गी महसूस होती है। इशारों-इशारों में हमारे सामाजिक ढांचे पर भी फिल्म सवाल उठाती है। फिल्म में कई ऐसी घटनाओं का जिक्र भी है जो हम अखबार में पढ़कर नजरअंदाज कर देते हैं। निर्देशन की बात करें तो पवन कृपलानी ने खूबसूरत ढंग से दो जौनर साइकोलॉजिकल और हॉरर का बेहतरीन मिश्रण किया है वह भी तथ्यों के साथ। फिल्म का स्क्रीनप्ले कमाल का है जो आपको बांधकर रखेगा।
राधिका का दमदार अभिनय
सोने पर सुहागा है फिल्म की सिनेमेटोग्राफी जो आपकी नजरें को भटकने नहीं देती। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के सीन और उसके भाव का पूरी तरह साथ देता है। पर इन सबके बीच राधिका आप्टे की जितनी तारीफ की जाए कम है जिन्होंने बेहतरीन अभिनय किया है। पूरी फिल्म में डर का जो ग्राफ उन्होंने बनाए रखा वह किसी मंजे हुए कलाकार से ही उम्मीद की जा सकती है। साथ ही सत्यदीप मिश्रा, यशस्विनी दयामा और अंकुर विकल सह-कलाकार के तौर पर पूरी ईमानदारी से उनका साथ देते हैं। आखिर में कह सकते हैं कि 'फोबिया' एक नए अंदाज का डर है जो आपको फिल्म में सही लगेगा।
'फ़ोबिया' को मेरी ओर से 3.5 स्टार
भय का गहरा असर बनाया विषय
महक यानी राधिका आप्टे एक पेंटर हैं। एक दिन अपनी प्रदर्शनी के बाद रात में टैक्सी से घर लौटते वक्त ड्राइवर उनका बलात्कार करने की कोशिश करता है। यह हादसा उन्हें भय की दुनिया में ले जाता है। इस हादसे का असर उन पर इतना गहरा होता है कि वे घर से निकलने में भी डरती हैं। यह पूरी कहानी नहीं बल्कि कहानी की महज शुरुआत है क्योंकि असल किस्सा यहां से शुरू होता है जिसमें आप महक के फोबिया यानी डर से वाकिफ होंगे और अंत तक बिना उठे दिमागी जद्दोज़हद से गुजरेंगे।
कुछ गैरजरूरी प्रतीकात्मक दृश्य
खामियों की बात करें तो ज्यादा नहीं पर थोड़ी खिंची हुई फिल्म नजर आती है, यानी ढीली पड़ती है, क्योंकि स्क्रीन पर परतें आहिस्ता-आहिस्ता खुलती हैं। फिल्म के कुछ दृश्य प्रतीकात्मक हैं जिनमें से एक-दो मुझे अटपटे लगे जिनकी जरूरत फिल्म में नहीं थी। उदाहरण के तौर पर एक सीन जहां टैक्सी ड्राइवर ज़ॉम्बीज़ यानी जिंदा लाश की तरह नजर आते हैं। फिल्म में ऐसे दृश्य इसलिए डाले जाते हैं ताकि दर्शकों को डराया जा सके। पर ऐसा हॉरर फिल्में करती आई हैं इसलिए इस थ्रिलर फिल्म में इससे बचा जा सकता था। वैसे यह सीन इतना लंबा भी नहीं इसलिए आपको शायद महसूस भी न हो।
दर्शकों को बांधे रखने की क्षमता
अब बात ख़ूबियों की, 'फोबिया' एक बेहतरीन साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्म है जिसके फिल्मांकन से लेकर लिखाई तक एक ताज़गी महसूस होती है। इशारों-इशारों में हमारे सामाजिक ढांचे पर भी फिल्म सवाल उठाती है। फिल्म में कई ऐसी घटनाओं का जिक्र भी है जो हम अखबार में पढ़कर नजरअंदाज कर देते हैं। निर्देशन की बात करें तो पवन कृपलानी ने खूबसूरत ढंग से दो जौनर साइकोलॉजिकल और हॉरर का बेहतरीन मिश्रण किया है वह भी तथ्यों के साथ। फिल्म का स्क्रीनप्ले कमाल का है जो आपको बांधकर रखेगा।
राधिका का दमदार अभिनय
सोने पर सुहागा है फिल्म की सिनेमेटोग्राफी जो आपकी नजरें को भटकने नहीं देती। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के सीन और उसके भाव का पूरी तरह साथ देता है। पर इन सबके बीच राधिका आप्टे की जितनी तारीफ की जाए कम है जिन्होंने बेहतरीन अभिनय किया है। पूरी फिल्म में डर का जो ग्राफ उन्होंने बनाए रखा वह किसी मंजे हुए कलाकार से ही उम्मीद की जा सकती है। साथ ही सत्यदीप मिश्रा, यशस्विनी दयामा और अंकुर विकल सह-कलाकार के तौर पर पूरी ईमानदारी से उनका साथ देते हैं। आखिर में कह सकते हैं कि 'फोबिया' एक नए अंदाज का डर है जो आपको फिल्म में सही लगेगा।
'फ़ोबिया' को मेरी ओर से 3.5 स्टार
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