फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी
मुंबई:
इस शुक्रवार फ़िल्म 'मांझी:द माउंटेन मैन' रिलीज़ हुई है। यह कहानी है बिहार के दशरथ मांझी की, जिसने अकेले 22 सालों में सिर्फ़ हथोड़े और छैनी से पहाड़ काटकर रास्ता बना डाला और 70 किलोमीटर की दूरी को एक किलोमीटर में समेट दिया।
फ़िल्म में दशरथ मांझी की भूमिका में हैं नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी, उनकी पत्नी के क़िरदार में हैं राधिका आप्टे, मुखिया बने हैं तिग्मांशु धूलिया और मांझी के पिता के क़िरदार में हैं अशरफ़ उल हक़। फ़िल्म के निर्देशक हैं केतन मेहता।
कहानी में दशरथ मांझी पहाड़ काटने का फ़ैसला तब लेते हैं, जब उनकी पत्नी पहाड़ से गिर जाती हैं और 70 किमी दूर अस्पताल तक उसे पहुंचने में इतनी देरी हो जाती है कि वह उन्हें खो बैठते हैं। सबसे पहले सलाम उस इरादे को जो पहाड़ से बुलंद थे।
अब बात फ़िल्म की ख़ामियों और ख़ूबियों की। फ़िल्म का पहला भाग दशरथ मांझी के क़िरदार को समझाने और उनकी पत्नी से मोहब्बत को दर्शाने में निकल जाता है। हालांकि कहानी छोटी है और उसे बड़े पर्दे पर फैलाना मुश्किल काम है, पर इस सच्ची कहानी में ज़रा फ़िल्मी होने से बचा जा सकता था। फ़िल्म के पहले भाग में दशरथ मांझी का जुनून और उनके दर्द को महसूस करना ज़रा मुश्किल लगा। बैकग्राउंड स्कोर फ़िल्म के मर्म के मुताबिक नहीं लगे, जिसके कारण वह कई जगह शोर की तरह चुभता है।
अब बात खूबियों की। इंटरवल के बाद आप फ़िल्म से जुड़े रहेंगे। आपको दशरथ का दर्द भी महसूस होगा और सिस्टम से लड़ने में उसकी लाचारी भी, फ़िल्म में मांझी का जुनून भी दिखता है और सनक भी। पहाड़ काटने की पूरी प्रक्रिया में कुछ ऐसे लम्हें और सीन्स हैं जो आपको हिला देंगे।
फ़िल्म में छुआ-छूत, इमरजेंसी और भ्रष्टाचार तीनों को ही दशरथ मांझी की कहानी के ज़रिए निर्देशक ने बड़ी खूबसूरती से पेश किया है। ये बातें कहीं भी ज्ञान की तरह नहीं लगतीं, जिसका अकसर डर होता है।
फ़िल्म में दशरथ के क़िरदार में नवाज़ ने सराहनीय काम किया है। वहीं राधिका आप्टे मांझी की पत्नी के रोल को ठीक से अंजाम तक पहुंचाती हैं। फ़िल्म के दो गाने, 'फगुनिया', 'ओ राही' अच्छे लगे।
पहाड़ काटकर नदियां बहाने की कहानियां हमने सिर्फ़ पढ़ी और सुनी थीं पर दशरथ मांझी की दास्तां अब उन कहानियों पर विश्वास करने के लिए मजबूर करती है।
यूं तो 'मांझी: द माउंटेन मैन' वह स्टार हैं, जिन्हें समीक्षकों के स्टार्स की ज़रूरत नहीं, पर पर्वत हिलाने की कहावत को अगर सच होते देखना है तो यह फ़िल्म ज़रूर देखें। इस फ़िल्म को 3.5 स्टार्स...
फ़िल्म में दशरथ मांझी की भूमिका में हैं नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी, उनकी पत्नी के क़िरदार में हैं राधिका आप्टे, मुखिया बने हैं तिग्मांशु धूलिया और मांझी के पिता के क़िरदार में हैं अशरफ़ उल हक़। फ़िल्म के निर्देशक हैं केतन मेहता।
कहानी में दशरथ मांझी पहाड़ काटने का फ़ैसला तब लेते हैं, जब उनकी पत्नी पहाड़ से गिर जाती हैं और 70 किमी दूर अस्पताल तक उसे पहुंचने में इतनी देरी हो जाती है कि वह उन्हें खो बैठते हैं। सबसे पहले सलाम उस इरादे को जो पहाड़ से बुलंद थे।
अब बात फ़िल्म की ख़ामियों और ख़ूबियों की। फ़िल्म का पहला भाग दशरथ मांझी के क़िरदार को समझाने और उनकी पत्नी से मोहब्बत को दर्शाने में निकल जाता है। हालांकि कहानी छोटी है और उसे बड़े पर्दे पर फैलाना मुश्किल काम है, पर इस सच्ची कहानी में ज़रा फ़िल्मी होने से बचा जा सकता था। फ़िल्म के पहले भाग में दशरथ मांझी का जुनून और उनके दर्द को महसूस करना ज़रा मुश्किल लगा। बैकग्राउंड स्कोर फ़िल्म के मर्म के मुताबिक नहीं लगे, जिसके कारण वह कई जगह शोर की तरह चुभता है।
अब बात खूबियों की। इंटरवल के बाद आप फ़िल्म से जुड़े रहेंगे। आपको दशरथ का दर्द भी महसूस होगा और सिस्टम से लड़ने में उसकी लाचारी भी, फ़िल्म में मांझी का जुनून भी दिखता है और सनक भी। पहाड़ काटने की पूरी प्रक्रिया में कुछ ऐसे लम्हें और सीन्स हैं जो आपको हिला देंगे।
फ़िल्म में छुआ-छूत, इमरजेंसी और भ्रष्टाचार तीनों को ही दशरथ मांझी की कहानी के ज़रिए निर्देशक ने बड़ी खूबसूरती से पेश किया है। ये बातें कहीं भी ज्ञान की तरह नहीं लगतीं, जिसका अकसर डर होता है।
फ़िल्म में दशरथ के क़िरदार में नवाज़ ने सराहनीय काम किया है। वहीं राधिका आप्टे मांझी की पत्नी के रोल को ठीक से अंजाम तक पहुंचाती हैं। फ़िल्म के दो गाने, 'फगुनिया', 'ओ राही' अच्छे लगे।
पहाड़ काटकर नदियां बहाने की कहानियां हमने सिर्फ़ पढ़ी और सुनी थीं पर दशरथ मांझी की दास्तां अब उन कहानियों पर विश्वास करने के लिए मजबूर करती है।
यूं तो 'मांझी: द माउंटेन मैन' वह स्टार हैं, जिन्हें समीक्षकों के स्टार्स की ज़रूरत नहीं, पर पर्वत हिलाने की कहावत को अगर सच होते देखना है तो यह फ़िल्म ज़रूर देखें। इस फ़िल्म को 3.5 स्टार्स...
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