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फिल्म देखने के बाद चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है और दिल में खुशी महसूस होती है, इसलिए दर्शक छोटी-मोटी कमियों को नज़रअंदाज़ कर देता है...
रूसी के पिता देबू, यानी बोमन ईरानी किसी जमाने में मशहूर क्रिकेटर रहै हैं, सो, रूसी क्रिकेट का ही वास्ता देकर सचिन के घर फेरारी मांगने जाता है, लेकिन सचिन की गैरमौजूदगी में वह इतनी आसानी से कार चुरा लेता है, जैसे शोरूम से खरीदकर निकला हो... गलत ट्रैफिक सिग्नल क्रॉस कर जब यह ईमानदार क्लर्क खुद का चालान बनाने की जिद करता है, तब भी फिल्म उतनी ही अनरियलिस्टिक और इम्प्रैक्टिकल लगती है... समझना कठिन है, क्यों राइटर राजकुमार हिरानी सिर्फ अच्छी-अच्छी बातें दिखाना चाहते हैं... तीन करोड़ की कार चोरी के बाद भी क्रिकेटर के नौकर और सिक्योरिटी गार्ड चोरी की रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाते...
लेकिन कहानी की इन कमियों को डायरेक्टर राजेश मापुसकर ने ढेरों स्ट्रॉन्ग इमोशनल और कॉमिक सीन्स से ढक दिया है... खासकर तब, जब दादाजी के रोल में बोमन ईरानी अपने पोते को क्रिकेटर बनने से रोकते हैं... फिर यही दादा गली में पोते की क्रिकेटिंग क्षमता का इम्तिहान लेता है... क्रिकेट की टिप्स देते-देते रुक जाता है, और पोते के लिए मदद मांगने धोखेबाज दोस्त के दर पर चला जाता है... बोमन की एक्टिंग की जितनी तारीफ की जाए कम है, शरमन ने नपी-तुली एक्टिंग की है, लेकिन कॉर्पोरेटर और उसके बेटे के रोल में नीलेश दिवेकर ज़्यादा इम्प्रेसिव हैं...
'मुन्नाभाई एमबीबीएस', 'लगे रहे मुन्नाभाई' और '3 इडियट्स' के मेकर्स द्वारा बनाई गई यह फिल्म फेरारी कार को बैलगाड़ी से खींचने वाले सीन की वजह से पिछले दिनों विवादों में भी रही, लेकिन फिल्म देखने के बाद मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट और दिल में खुशी थी और ऐसे में हर दर्शक छोटी-मोटी कमियों को नज़रअंदाज़ कर देता है... सो, 'फेरारी की सवारी' के लिए हमारी रेटिंग है 3 स्टार...
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