पुलिस की बर्बरता को दिखाती है फिल्म 'विसरानई'.
नई दिल्ली:
हाल के दिनों में दक्षिण भारतीय फिल्मों को उतनी चर्चा नहीं मिली जितनी ‘कोर्ट’ या ‘सैराट’ को मिली. अब ‘विसरानाई’ जैसी फिल्म पर लोगों का ध्यान इसलिए गया है क्योंकि इसे ऑस्कर में भारत के प्रतिनिधित्व के लिए चुना गया है. यह फिल्म 2015 में सर्वश्रेष्ठ तमिल फीचर फिल्म, सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ संपादन के लिए तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत चुकी है. फिल्म का निर्देशन वेत्रीमारन ने किया है और अभिनेता धनुष फिल्म के निर्माता हैं.
इस फिल्म को 29 फिल्मों में से चुना गया है जिसमें ‘उड़ता पंजाब’, ‘तिथि’, ‘सैराट’, ‘नीरजा’, ‘फैन’, ‘सुल्तान’ ‘एयरलिफ्ट’ जैसी फिल्में थी. ऑस्कर के लिये भारत की तरफ से चुनी जाने वाली यह नौवीं फिल्म है. इससे पहले 2000 में आई तमिल फिल्म ‘हे राम’ को नामित किया गया था.
ऑटो ड्राइवर द्वारा लिखे उपन्यास पर आधारित है कहानी
फिल्म के निर्देशक वेत्रीमारन ने फिल्म की पटकथा खुद लिखी है जो कोयंबटूर के ऑटो ड्राइवर एम चंद्रकुमार द्वारा लिखे नॉवल 'लॉक अप' पर आधारित है. एम चंद्रकुमार कोयंबटूर में ऑटो चंद्रन के नाम से जाने जाते हैं. अंग्रेज़ी अखबार द हिन्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक फिल्म को ऑस्कर में एंट्री मिलने के बाद अब तक वह 350 से ज्यादा फोन कॉल अटेंड कर चुके हैं और 10 हजार से ज्यादा कॉलेज स्टूडेंट्स से मिल चुके हैं. वह अब भी कोयंबटूर की सड़कों पर ऑटो चलाते हैं.
ऑटो चंद्रन की आपबीती है 'लॉक अप'
जिस नॉवल पर फिल्म बनी है वह लेखक एम रामचंद्रन की आपबीती है. आंध्र प्रदेश में काम करने के दौरान साल 1983 में उन्हें एक झूठे केस में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. उन्होंने लॉक अप में 15 दिन गुज़ारे थे, इस दौरान पुलिसवाले बर्बर तरीके से उनकी पिटाई करते थे. पुलिस उन पर वह अपराध स्वीकार करने का लगातार दबाव बनाती थी जो उन्होंने किया ही नहीं था. इसके बाद करीब साढ़े पांच महीने उन्हें गुंटूर जेल में भी रहना पड़ा. साल 2006 में आए इस उपन्यास को उन्होंने 1997 में लिखना शुरू किया था, लेकिन लॉक अप के उनके अनुभव इतने भयावह थे कि इसे पूरा करने में उन्हें पांच साल का वक्त लगा.
पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान हुई संपादक की मौत
'विसरानाई' के संपादक किशोर टे को सम्पादन के लिए दूसरी बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला था. फ़िल्म के पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी. इससे पहले उन्हें 'आडुकलाम' के लिए पुरस्कार मिला था, उसका निर्देशन भी वेत्रीमारन ने किया था.
फिल्म की कहानी
‘विसरानाई’ की कहानी पुलिसिया टार्चर या पूछ्ताछ के इर्द गिर्द घुमती है जो इसके तमिल नाम के अर्थ से ही स्पष्ट है. फिल्म आंध्र प्रदेश के गुंटुर से शुरू होती है जहां एक प्रभावशाली व्यक्ति के यहां चोरी हुई है. पुलिस पर केस साल्व करने का दबाव है. पुलिस चार गैर तेलुगु भाषी अप्रवासी तमिल कामगारों को उठा लेती है क्योंकि यहां वे ही सबसे बाहरी दिखते हैं. पुलिसिया टार्चर के जोर पर जुर्म कबूल कराने का वीभत्स दौर चलता है. हिंसा के अमानवीय दौर से गुजरने के बाद ये थाने में जुर्म कबूल कर लेते हैं लेकिन कोर्ट में मुकर जाते हैं. वहां इनकी मदद एक तमिल पुलिस इंसपेक्टर मुथुवेल करता है जो एकाउंटेंट के.के. को पकड़ने आया है जिसकी जरूरत उसके राज्य की राजनीति को है. कोर्ट से कस्टडी लेने में असफल रहने के बाद मुथुवेल पांडी और उसके साथियों की मदद से आडिटर को किडनैप करते हैं. उसको पकड़ा भी गया है राज्य की राजनीति को साधने के लिये. इस के बाद शक्ति और व्यवस्था का हिंसक खेल सामने आता है, सत्ता को चलाने वाले काले धन का खेल भी सामने आता है जिसकी छाया आज की व्यवस्था पर है.
ट्रीटमेंट
वेत्रीमारन का कैमरा हिंसा और पुलिसिया चरित्र को ब्यौरे में दर्ज करता है. लेकिन सिनेमाई हिंसा की प्रचलित अश्लील पुनर्प्रस्तुति की तरह नहीं. नारियल का डंडा जब कैदियों की पीठ की खाल पर पड़ता है तो पड़ने की आवाज और उधड़ती हुई खाल देखते हुये लगता है कि मानो हम उस हिंसा का शिकार हो रहे हैं. यह हिंसा समाज के निचले स्तर पर रहने वाले लोगो के साथ की जा रही है क्योंकि ऐसा करना सहज है. ऊंची पहुंच वाले सफेदपोश और ‘वैध’ अपराधियों के साथ उस तरह की हिंसा करना आसान नहीं है. उसके साथ पूछताछ और टार्चर का तरीका अलग है. वेत्रीमारन टार्चर के वर्ग विभेदी चरित्र को दिखाकर पुलिसिया विरोधाभास भी रचते हैं. फिल्म सिस्टम द्वारा उपजाए गए भय और असहायता के बोध से भरी हुई है. 'विसरानाई’ मनुष्य के बीच परस्पर विश्वास और सहयोग की भावना को अपने सबटेक्स्ट में उभारती है.
इस फिल्म को 29 फिल्मों में से चुना गया है जिसमें ‘उड़ता पंजाब’, ‘तिथि’, ‘सैराट’, ‘नीरजा’, ‘फैन’, ‘सुल्तान’ ‘एयरलिफ्ट’ जैसी फिल्में थी. ऑस्कर के लिये भारत की तरफ से चुनी जाने वाली यह नौवीं फिल्म है. इससे पहले 2000 में आई तमिल फिल्म ‘हे राम’ को नामित किया गया था.
ऑटो ड्राइवर द्वारा लिखे उपन्यास पर आधारित है कहानी
फिल्म के निर्देशक वेत्रीमारन ने फिल्म की पटकथा खुद लिखी है जो कोयंबटूर के ऑटो ड्राइवर एम चंद्रकुमार द्वारा लिखे नॉवल 'लॉक अप' पर आधारित है. एम चंद्रकुमार कोयंबटूर में ऑटो चंद्रन के नाम से जाने जाते हैं. अंग्रेज़ी अखबार द हिन्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक फिल्म को ऑस्कर में एंट्री मिलने के बाद अब तक वह 350 से ज्यादा फोन कॉल अटेंड कर चुके हैं और 10 हजार से ज्यादा कॉलेज स्टूडेंट्स से मिल चुके हैं. वह अब भी कोयंबटूर की सड़कों पर ऑटो चलाते हैं.
ऑटो चंद्रन की आपबीती है 'लॉक अप'
जिस नॉवल पर फिल्म बनी है वह लेखक एम रामचंद्रन की आपबीती है. आंध्र प्रदेश में काम करने के दौरान साल 1983 में उन्हें एक झूठे केस में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. उन्होंने लॉक अप में 15 दिन गुज़ारे थे, इस दौरान पुलिसवाले बर्बर तरीके से उनकी पिटाई करते थे. पुलिस उन पर वह अपराध स्वीकार करने का लगातार दबाव बनाती थी जो उन्होंने किया ही नहीं था. इसके बाद करीब साढ़े पांच महीने उन्हें गुंटूर जेल में भी रहना पड़ा. साल 2006 में आए इस उपन्यास को उन्होंने 1997 में लिखना शुरू किया था, लेकिन लॉक अप के उनके अनुभव इतने भयावह थे कि इसे पूरा करने में उन्हें पांच साल का वक्त लगा.
पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान हुई संपादक की मौत
'विसरानाई' के संपादक किशोर टे को सम्पादन के लिए दूसरी बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला था. फ़िल्म के पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी. इससे पहले उन्हें 'आडुकलाम' के लिए पुरस्कार मिला था, उसका निर्देशन भी वेत्रीमारन ने किया था.
फिल्म की कहानी
‘विसरानाई’ की कहानी पुलिसिया टार्चर या पूछ्ताछ के इर्द गिर्द घुमती है जो इसके तमिल नाम के अर्थ से ही स्पष्ट है. फिल्म आंध्र प्रदेश के गुंटुर से शुरू होती है जहां एक प्रभावशाली व्यक्ति के यहां चोरी हुई है. पुलिस पर केस साल्व करने का दबाव है. पुलिस चार गैर तेलुगु भाषी अप्रवासी तमिल कामगारों को उठा लेती है क्योंकि यहां वे ही सबसे बाहरी दिखते हैं. पुलिसिया टार्चर के जोर पर जुर्म कबूल कराने का वीभत्स दौर चलता है. हिंसा के अमानवीय दौर से गुजरने के बाद ये थाने में जुर्म कबूल कर लेते हैं लेकिन कोर्ट में मुकर जाते हैं. वहां इनकी मदद एक तमिल पुलिस इंसपेक्टर मुथुवेल करता है जो एकाउंटेंट के.के. को पकड़ने आया है जिसकी जरूरत उसके राज्य की राजनीति को है. कोर्ट से कस्टडी लेने में असफल रहने के बाद मुथुवेल पांडी और उसके साथियों की मदद से आडिटर को किडनैप करते हैं. उसको पकड़ा भी गया है राज्य की राजनीति को साधने के लिये. इस के बाद शक्ति और व्यवस्था का हिंसक खेल सामने आता है, सत्ता को चलाने वाले काले धन का खेल भी सामने आता है जिसकी छाया आज की व्यवस्था पर है.
ट्रीटमेंट
वेत्रीमारन का कैमरा हिंसा और पुलिसिया चरित्र को ब्यौरे में दर्ज करता है. लेकिन सिनेमाई हिंसा की प्रचलित अश्लील पुनर्प्रस्तुति की तरह नहीं. नारियल का डंडा जब कैदियों की पीठ की खाल पर पड़ता है तो पड़ने की आवाज और उधड़ती हुई खाल देखते हुये लगता है कि मानो हम उस हिंसा का शिकार हो रहे हैं. यह हिंसा समाज के निचले स्तर पर रहने वाले लोगो के साथ की जा रही है क्योंकि ऐसा करना सहज है. ऊंची पहुंच वाले सफेदपोश और ‘वैध’ अपराधियों के साथ उस तरह की हिंसा करना आसान नहीं है. उसके साथ पूछताछ और टार्चर का तरीका अलग है. वेत्रीमारन टार्चर के वर्ग विभेदी चरित्र को दिखाकर पुलिसिया विरोधाभास भी रचते हैं. फिल्म सिस्टम द्वारा उपजाए गए भय और असहायता के बोध से भरी हुई है. 'विसरानाई’ मनुष्य के बीच परस्पर विश्वास और सहयोग की भावना को अपने सबटेक्स्ट में उभारती है.
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