मुंबई:
इस फिल्मी फ्राइडे रिलीज़ हुई है संघर्षों से जूझते एक सितारे की अनकही कहानी 'बुधिया सिंह- बॉर्न टू रन', जिसका निर्देशन किया है सौमेंद्र पाधी ने और फिल्म में अहम भूमिकाओं में हैं मनोज बाजपेयी, मयूर पटोले, तिलोत्तमा शोम, और श्रुति मराठे...
यह फ़िल्म वन्डर बॉय बुधिया की कहानी पर आधारित है, जिसने 5 साल की उम्र में 48 मैराथन दौड़ने का कीर्तिमान हासिल किया. बुधिया की इस कामयाबी के पीछे हाथ था उसके कोच बिरंची दास यानी मनोज बाजपेयी का जिसने बुधिया के हुनर को पहचाना और उसे प्रेरित किया मैराथन धावक बनने के लिए, जिसके बाद बुधिया का नाम यंगेस्ट मैराथन रनर के तौर पर लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया. यही है कहानी इस फ़िल्म की.
अब बात फ़िल्म की ख़ूबियों और ख़ामियों की, जिनमें सबसे पहले बात करते हैं ख़ामियों की...फ़िल्म का स्क्रीन प्ले थोड़ा डगमगाया दिखता है, जिसकी वजह से फिल्म कहीं-कहीं धीमी पड़ती है, हालांकि इस विषय को परदे पर उतारना मुश्किल काम था क्योंकि फिल्म में ज़्यादातर कहानी बुधिया की दौड़ और बिरंची के संघर्ष पर आधारित है जिसमें हर दौड़ को रोचक बनाना मुश्किल काम था. कहीं-कहीं ये दौड़ फिल्मांकन के तौर पर ढ़ीली पड़ती है और वह भी इंटरवल से पहले, इसके अलावा मुझे लगता है लेखक और निर्देशक अगर फ़िल्म का क्लाइमैक्स पकड़कर फ़लैश बैक में गए होते तो फिल्म ज्यादा कसी हुई साबित होती. ये थीं फिल्म की खामियां पर इस फिल्म में ख़ामियों पर ख़ूबियां हावी हैं इसलिए अब बात ख़ूबियां की, फिल्म का विषय और इसकी कहानी अपने आप में बहुत प्रभावशाली है...यह कहानी है विश्वास, जुनून, भूख और कुछ कर ग़ुज़रने की चाह की, जिसमें भोलेपन का मिश्रण भी है.
मनोज बाजपेयी एक मंझे हुए कलाकार हैं और उनका अभिनय इस फ़िल्म में मुझे और भी बेहतर लगा साथ ही बुधिया के किरदार में मयूर आपके दिल में घर कर जाते हैं, कमाल का काम किया है मयूर ने. फ़िल्म में मयूर और मनोज के बीच का तालमेल भी ग़ज़ब का है. सबसे अच्छी बात जो मुझे लगी वह यह कि फिल्म में बुधिया को भागते देख उसके प्रति आपका प्रेम भी छलकेगा और तरस भी आएगा पर कोच के किरदार में मनोज से आपको घृणा भी नहीं होती और इसके लिए निर्देशक सौमेंन्द्र को फ़ुल मार्क्स मिलते हैं. फ़िल्म में बुधिया की कहानी और बिरंची का संघर्ष आपको थामे रखता है. फिल्म के बाक़ी किरदार भी असरदार हैं. फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर, सिनेमैटोग्राफ़ी सब सुर में है जिसकी वजह से जो निर्देशक कहना चाहता है वह ठीक उसी तरह से आप तक पहुंचता है जैसी उसकी मंशा थी. तो कुल मिलाकर 'बुधिया सिंह- बॉर्न टू रन' एक बेहतरीन फ़िल्म है, ये भी बता दूं कि इस फ़िल्म को इस साल 'बेस्ट चिल्ड्रंन्स फ़िल्म' का नेशनल अवार्ड भी मिल चुका है. मेरी तरफ़ से भी इस फ़िल्म को 4 स्टार्स.
यह फ़िल्म वन्डर बॉय बुधिया की कहानी पर आधारित है, जिसने 5 साल की उम्र में 48 मैराथन दौड़ने का कीर्तिमान हासिल किया. बुधिया की इस कामयाबी के पीछे हाथ था उसके कोच बिरंची दास यानी मनोज बाजपेयी का जिसने बुधिया के हुनर को पहचाना और उसे प्रेरित किया मैराथन धावक बनने के लिए, जिसके बाद बुधिया का नाम यंगेस्ट मैराथन रनर के तौर पर लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया. यही है कहानी इस फ़िल्म की.
अब बात फ़िल्म की ख़ूबियों और ख़ामियों की, जिनमें सबसे पहले बात करते हैं ख़ामियों की...फ़िल्म का स्क्रीन प्ले थोड़ा डगमगाया दिखता है, जिसकी वजह से फिल्म कहीं-कहीं धीमी पड़ती है, हालांकि इस विषय को परदे पर उतारना मुश्किल काम था क्योंकि फिल्म में ज़्यादातर कहानी बुधिया की दौड़ और बिरंची के संघर्ष पर आधारित है जिसमें हर दौड़ को रोचक बनाना मुश्किल काम था. कहीं-कहीं ये दौड़ फिल्मांकन के तौर पर ढ़ीली पड़ती है और वह भी इंटरवल से पहले, इसके अलावा मुझे लगता है लेखक और निर्देशक अगर फ़िल्म का क्लाइमैक्स पकड़कर फ़लैश बैक में गए होते तो फिल्म ज्यादा कसी हुई साबित होती. ये थीं फिल्म की खामियां पर इस फिल्म में ख़ामियों पर ख़ूबियां हावी हैं इसलिए अब बात ख़ूबियां की, फिल्म का विषय और इसकी कहानी अपने आप में बहुत प्रभावशाली है...यह कहानी है विश्वास, जुनून, भूख और कुछ कर ग़ुज़रने की चाह की, जिसमें भोलेपन का मिश्रण भी है.
मनोज बाजपेयी एक मंझे हुए कलाकार हैं और उनका अभिनय इस फ़िल्म में मुझे और भी बेहतर लगा साथ ही बुधिया के किरदार में मयूर आपके दिल में घर कर जाते हैं, कमाल का काम किया है मयूर ने. फ़िल्म में मयूर और मनोज के बीच का तालमेल भी ग़ज़ब का है. सबसे अच्छी बात जो मुझे लगी वह यह कि फिल्म में बुधिया को भागते देख उसके प्रति आपका प्रेम भी छलकेगा और तरस भी आएगा पर कोच के किरदार में मनोज से आपको घृणा भी नहीं होती और इसके लिए निर्देशक सौमेंन्द्र को फ़ुल मार्क्स मिलते हैं. फ़िल्म में बुधिया की कहानी और बिरंची का संघर्ष आपको थामे रखता है. फिल्म के बाक़ी किरदार भी असरदार हैं. फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर, सिनेमैटोग्राफ़ी सब सुर में है जिसकी वजह से जो निर्देशक कहना चाहता है वह ठीक उसी तरह से आप तक पहुंचता है जैसी उसकी मंशा थी. तो कुल मिलाकर 'बुधिया सिंह- बॉर्न टू रन' एक बेहतरीन फ़िल्म है, ये भी बता दूं कि इस फ़िल्म को इस साल 'बेस्ट चिल्ड्रंन्स फ़िल्म' का नेशनल अवार्ड भी मिल चुका है. मेरी तरफ़ से भी इस फ़िल्म को 4 स्टार्स.
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