बेगम जान में विद्या बालन
मुंबई:
फिल्म 'बेगम जान' की कहानी है हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे के समय की, जहां बॉर्डर के बीचोंबीच एक कोठा आ जाता है और उस कोठे को तोड़ने के आदेश आते हैं. इस कोठे की मालकिन हैं, बेगम जान जो इसे खाली करना नहीं चाहतीं क्योंकि इस 'बेगम जान' ने कई बेसहारा और समाज से सताई हुई लड़कियों को सहारा दिया है. बेगम जान की भूमिका निभा रही हैं, विद्या बालन. इस फिल्म में विद्या के अलावा इला अरुण, गौहर खान, आशीष विद्यार्थी, रजत कपूर, विवेक मुशरान, चंकी पांडे और नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकारों ने अहम भूमिकाएं निभाई हैं.
श्रीजीत मुखर्जी निर्देशित फिल्म 'बेगम जान' बांग्ला फिल्म 'राज कहिनी' का रीमेक है, जिसे श्रीजीत ने ही बनाया था. 'बेगम जान' आज़ादी के समय दो देशों के बीच हुए बंटवारे के दौरान के कई दर्द में से एक दर्द को बयां करती है. यह फिल्म 'बेगम जान' नाम की एक महिला की बहादुरी की कहानी कहती है जिसे बंटवारे या आजादी से कोई फर्क नहीं पड़ता, बस वह अपना घर सही सलामत चाहती है, जहां उसने कई बेसहारा लड़कियों को सहारा देकर अपने परिवार का सदस्य बनाया है और कोठा चलाती हैं. फिल्म में कुछ अच्छे डायलॉग्स हैं. कुछ दर्द भरे गाने हैं. देश के बंटवारे के समय दो दोस्तों के अलग होने का ग़म भी है.
बेशक- 'बेगम जान' की भूमिका में विद्या बालन ने जान डाल दी है. फिल्म में कई दृश्य दिल को छूते हैं, लेकिन इस फिल्म की सबसे बड़ी कमज़ोरी है कि यह बहुत ही लाउड है. मनोरंजन कम है. ज़रूरत से ज्यादा ड्रामा क्रिएट किया गया है और ज़रूरत से ज्यादा डायलॉगबाजी है. कई सीन में ज़बरदस्ती के लड़ाई-झगड़े भी मालूम पड़ते हैं जैसे खाना खाते समय कोठे की लड़कियां आपस में लड़ रही हैं. फिल्म में होली का गाना अचानक से कैसे आ जाता है समझ नहीं आता. फिल्म की लंबाई भी मुझे ज़रूरत से कुछ ज्यादा लगी.
फिल्म 'बेगम जान' में सबसे पहले दृश्य में दर्शाया गया है कि 2016 में दिल्ली में एक बस पर कुछ मनचले गुंडे एक लड़की पर हमला करते हैं, बलात्कार की कोशिश करते हैं और एक बूढ़ी महिला अजीबोगरीब अंदाज़ से उसे बचाती है और यहां से फिल्म फ्लैशबैक में जाती है, यानी फिल्म यह भी बता रही है कि जैसे कल औरतों पर अत्याचार होते थे वैसे ही आज भी अत्याचार होते हैं. फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 3 स्टार, जिसमे आधा स्टार विद्या बालन के ज़बरदस्त अभिनय के लिए है.
श्रीजीत मुखर्जी निर्देशित फिल्म 'बेगम जान' बांग्ला फिल्म 'राज कहिनी' का रीमेक है, जिसे श्रीजीत ने ही बनाया था. 'बेगम जान' आज़ादी के समय दो देशों के बीच हुए बंटवारे के दौरान के कई दर्द में से एक दर्द को बयां करती है. यह फिल्म 'बेगम जान' नाम की एक महिला की बहादुरी की कहानी कहती है जिसे बंटवारे या आजादी से कोई फर्क नहीं पड़ता, बस वह अपना घर सही सलामत चाहती है, जहां उसने कई बेसहारा लड़कियों को सहारा देकर अपने परिवार का सदस्य बनाया है और कोठा चलाती हैं. फिल्म में कुछ अच्छे डायलॉग्स हैं. कुछ दर्द भरे गाने हैं. देश के बंटवारे के समय दो दोस्तों के अलग होने का ग़म भी है.
बेशक- 'बेगम जान' की भूमिका में विद्या बालन ने जान डाल दी है. फिल्म में कई दृश्य दिल को छूते हैं, लेकिन इस फिल्म की सबसे बड़ी कमज़ोरी है कि यह बहुत ही लाउड है. मनोरंजन कम है. ज़रूरत से ज्यादा ड्रामा क्रिएट किया गया है और ज़रूरत से ज्यादा डायलॉगबाजी है. कई सीन में ज़बरदस्ती के लड़ाई-झगड़े भी मालूम पड़ते हैं जैसे खाना खाते समय कोठे की लड़कियां आपस में लड़ रही हैं. फिल्म में होली का गाना अचानक से कैसे आ जाता है समझ नहीं आता. फिल्म की लंबाई भी मुझे ज़रूरत से कुछ ज्यादा लगी.
फिल्म 'बेगम जान' में सबसे पहले दृश्य में दर्शाया गया है कि 2016 में दिल्ली में एक बस पर कुछ मनचले गुंडे एक लड़की पर हमला करते हैं, बलात्कार की कोशिश करते हैं और एक बूढ़ी महिला अजीबोगरीब अंदाज़ से उसे बचाती है और यहां से फिल्म फ्लैशबैक में जाती है, यानी फिल्म यह भी बता रही है कि जैसे कल औरतों पर अत्याचार होते थे वैसे ही आज भी अत्याचार होते हैं. फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 3 स्टार, जिसमे आधा स्टार विद्या बालन के ज़बरदस्त अभिनय के लिए है.
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